Hindi science

Economics Importance of Bacteria in Hindi part-2

जीवाणु की लाभदायक गतिविधियाँ
(useful activities of bacteria)

VI) कीटों का सूक्ष्मजीवी नियंत्रण (microbial control of insects) – अनेक जीवाणु क्रिस्टलीय प्रोटीन स्त्रावित करते है । जो लेपिडोप्टेरा गण से संबंधित कीटों व कैटरपिलर के लारवों के लिए अत्यधिक विषैले होते है । जबकि अन्य जंतुओं व पौधों के लिए ये विषैले नहीं होते हैं । अतः ये फसलों को क्षति पहुँचाने वाले अनेक गंभीर कीट पीड़कों (Insect pests) के नियंत्रण के लिए एक आदर्श कारक की भाँति कार्य करते है । क्रिस्टलीय प्रोटीन निर्माण करने वाले बैसिलाई को बड़े पैमाने पर उगाया जाता है तथा इनके बीजाणुओं को धूलि पाउडर (Dust powder) के साथ मिलाकर उस मिश्रण का खेत में छिड़काव कर दिया जाता है ।

VII) अपगलन प्रक्रिया (Retting process) – तंतुओं के समकालिक विघटन के बिना पैक्टिन का नियंत्रित सूक्ष्मजीवियों द्वारा विघटन अपगलन (Retting) कहलाता है । इसके फलस्वरूप तंतु अलग हो जाते है । सन (flax), भाँग (hemp) आदि के तनों को काफी समय के लिए पानी में डुबों के रख दिया जाता है जिससे उनका अपघटन हो सके । यह प्रक्रिया क्लॉस्ट्रिडियम बॉटूलिनम ,क्लॉस्ट्रिडियम टिटेनाई , क्लॉस्ट्रिडियम परफ़िरजैन्स नामक अवायुवीय ब्युटाइरिक अम्ल जीवाणुओं द्वारा त्वरित होती है । ये जीवाणु प्राथमिक रूप से पादप पैक्टिन को अपघटित करते है ,जिससे तंतु मुक्त हो जाते है ।
यदि अपगलन की प्रक्रिया काफी लम्बे समय तक चलती है तो सेल्युलोस किण्वनकारी जीवाणु विकसित हो जाते है तथा तंतुओं को नष्ट कर देते है ।
VIII) पैट्रोलियम हाइड्रोकार्बन का अपघटन (Degradation of petroleum hydrocarbons) – अनेक जीवाणुओं (जैसे स्यूडोमोनास ,एकोमोबैक्टर, माइक्रोकॉकस, कैन्डिडा आदि) में समुद्री व अलवणीय ,दोनों प्रकार के आवासों में पैट्रोलियम हाइड्रोकार्बनों को अपघटित करने की साम्थर्य होती है । इनमें से स्यूडोमोनास एक सबसे प्रमुख वंश है जो पैट्रोलियम हाइड्रोकार्बनों का उपयोग कर सकता है । अतः इन जीवाणुओं को तेल अधिप्लावन (oil spillage) के बाद प्रदूषण रोकने के लिए प्रयोग किया जा सकता है ।

IX) वाहितमल समापन (Sewage disposal) – घरेलु अथवा औद्योगिक जलोढ़ व्यर्थ पदार्थ वाहितमल कहलाता है । घरेलु वाहितमल में मानव उत्सर्ग पदार्थ व व्यर्थ पानी सम्मिलित होते है जो वाहितमल तंत्र में जाता है । इसी प्रकार औद्योगिक वाहितमल में कारखानों से विमुक्त अम्ल ,गैस तथा जंतु व पादप पदार्थ होते है । वाहितमल में लगभग 99-99.5% जल तथा शेष ठोस पदार्थ सूक्ष्मदर्शीय कणों , कोलॉयडो, कार्बनिक यौगिकों तथा सूक्ष्मजीवियों के रूप होते है । इसके अतिरिक्त अपरिष्कृत वाहितमल में कॉलीफॉर्म ,स्ट्रेप्टोकोकाई , अवायुवीय बीजाणु निर्माणकारी बैसिलाई तथा मानव के आंतीय क्षेत्र से उद्भव अनेक प्रकार के जीवाणुओं की संख्या प्रति मिलीलीटर में लाखों होती है । ये जीवाणु वाहितमल को अपघटित कर उसे समाप्त करते है ।

X) जैव प्रोद्योगिकी में जीवाणु (Bacteria in Biotechnology) – आनुवांशिक अभियांत्रिकी (genetic engineering) पर कार्य करने के लिए जीवाणुओं का उपयोग व्यापक रूप से किया जाता है । कशेरूकी जीवों (मानव सहित) से प्राप्त एक जीन को आसानी से एक जीवाणु के DNA में समावेशित किया जा सकता है ।
एक विशेष अथवा विभिन्न जातियों के बीच जीनों का कृत्रिम हेर-फेर (Artificial manipulation) पुनर्योगज DNA प्रोद्योगिकी (Recombinant DNA technology) कहलाता है ।
जीवाणुओं का जैव प्रोद्योगिकी में उपयोग कर मानव इंसुलिन का उत्पादन किया गया है । इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए इंसुलिन अणु की दो पॉलिपेप्टाइड श्रंखला को कोडित करने वाले दो संश्लेषित जीनों को ईं.कोलाई नामक जीवाणु में समावेशित कर दिया जाता है । जिससे इंसुलिन का उत्पादन होता है ।
वृद्धि को सीमित करने से संबंधित हारमोन- सोमेटोस्टैटिन का व्यापारिक उत्पादन ई.कोलाई के सहयोग से किया जाता है । सोमेटोस्टेटिन के 5mg (5 मिलिग्राम) प्राप्त करने के लिए आनुवांशिक अभियांत्रिकी में ई.कोलाई संवर्धन के 8 लीटर मात्रा की आवश्यकता होती है । जबकि इस हारमोन की 5mg मात्रा को जंतु स्रोत से प्राप्त प्राप्त करने के लिए लगभग 5,00,000 भेड़ो के मस्तिष्क की आवश्यकता पड़ती है ।
इन्टरफेरॉन एक महत्वपूर्ण प्रतिविषाणु मानव प्रोटीन (antiviral human protein) है जो विषाणु संक्रमण के कारण निर्मित होती है । इन्टफेरॉन जीन को जीवाणु में सफलतापूर्वक स्थानांतरित किया जा सकता है । जिससे इन्टरफेरॉन प्रोटीन का उत्पादन होता है ।

XI) प्रदूषण नियंत्रण में जीवाणु (Bacteria in pollution control) – जीवाणु सर्वोत्तम प्रदूषण यौद्धा है । ये विविध औद्योगिक प्रक्रियाओं में निर्मित प्रदूषकों व विषैले पदार्थों को दूर कर वातावरण को शुद्ध करते है । जीवाणु या तो इन प्रदूषक पदार्थों को ऊर्जा स्रोत के रूप में परिवर्तित कर अपने प्रयोग में लाते है । अथवा एंजाइम उत्पन्न करते है जो विषैले पदार्थों को कम हानिकारक पदार्थों में परिवर्तित कर देते है ।
मृदा ,भूमिगत जल ,रासायनिक अधिप्लाव (chemical spills) से उत्पन्न प्रदूषकों का निम्नीकरण (degradation) बायोरिमैडिएशन कहलाता है । स्यूडोमोनास व बैसिलस नामक दो जीवाण्विक वंशों को सामान्यतः बायोरिमैडी सूक्ष्मजीवी की तरह प्रयुक्त किया जाता है ।
आज वैज्ञानिकों ने आनुवांशिक रूप से अभियांत्रिकी जीवाणुओं को विकसित करने में सफलता प्राप्त कर ली है जो नालियों को साफ करने में उपयोगी एंजाइम स्त्रावित कर सकते है ।

 

Economics Importance of Bacteria in Hindi part-1

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