Hindi science

Economic importance of Algae in Hindi

शैवालों का आर्थिक महत्व

I) भोजन के रूप में (Algae as Food) – चीन ,जापान आदि तटीय देशों में समुद्री-घासों का भोजन के रूप में उपयोग प्राचीन काल से होता आ रहा है । पॉरफाइरा ,ऐलेरिया, अल्वा, क्लोरेला, कॉन्ड्रस, रोडीमेनिया, लैमिनेरिया, सारगैसम, आर्थोमस आदि अनेक वंश विभिन्न रूप में खाये जाते है ।
पॉरफाइरा (Porphyra) समुद्र के उथले जल में उगने वाला लाल शैवाल है । जापान में इसकी खेती की जाती है । इसमें प्रोटीन (30-35%) तथा कार्बोहाइड्रेट (40-45%) पर्याप्त मात्रा में होता है । इसके अतिरिक्त इसमें विटामिन A, B व C तथा नियासिन (niacin) भी प्रचुर मात्रा में पाए जाते है । यूरोपीय देशों में पॉरफाइरा का उपयोग एक पिट्ठी (paste) के रूप में किया जाता है , जिसे नॉरी कहते है ।
क्लोरेला (हरित शैवाल) पोषक मान के आधार पर पॉरफाइरा से अधिक उपयोगी है । इसमें प्रोटीन ,लिपिड व विटामिन की मात्रा पॉरफाइरा से अधिक होती है ।
भारतवर्ष के मणिपुर क्षेत्र में लीमेनिआ नामक लाल शैवाल एक स्वादिष्ट भोज्य पदार्थ के रूप में प्रयोग होता है । स्थानीय भाषा में इसे नूनगह्म (nungham) कहते है ।
लैमीनेरिया सैकेरिना (भूरा शैवाल) से प्राप्त भोजन कोम्बू के नाम से प्रचलित है । इसमें कार्बोहाइड्रेट प्रचुर मात्रा में (57%) होते है ।
जैलिडियम , कॉर्नियम व ग्रेसिलेरिया का उपयोग आइसक्रीम व जैली बनाने में किया जाता है ।
कोडियम, मोनोस्ट्रोमा ,अल्वा आदि कुछ हरे शैवाल सलाद (salad) के रूप में प्रयोग किये जाते है ।
II) चारे के रूप में (Algae as fodder) – इसमें फ्यूकस ,लैमीनेरिया , एस्कोफिलम, सारगैसम प्रमुख है । समुद्री शैवालों का चारे के रूप में प्रयोग उनमें विटामिन व पोषक तत्वों(nutrient elements) की प्रचुर मात्रा के कारण किया जाता है । पशुआहार में समुद्री घासों से तैयार भोजन मिला देने से पशुओं के दूध में वसा की मात्रा बढ़ जाती है ।
III) उद्योगों में उपयोग (Algae in industry) – शैवालों से अगार-अगार , कैरागीनिन, डायटोमाइट इत्यादि का वाणिज्य उत्पादन किया जाता है ।
1. अगार-अगार – यह जैली के समान जटिल पॉलिसैकेराइड है जिसे जैलिडियम, ग्रेसिलेरिया, फिलोफोरा आदि लाल शैवालों से प्राप्त किया जाता है । अगार-अगार का उपयोग निम्न है –
i) जीवाणु, कवक ,शैवाल तथा उत्तकों के लिए प्रयुक्त संवर्धन माध्यमों (culture medium) में आधार के रूप में ।
ii) भोजन, प्रसाधन(cosmetic) ,कपड़ा व औषधि उद्योगों में स्थायीकारक(stabilizer) अथवा इमल्सीकारक के रूप में ।
iii) फोटोग्राफिक फिल्म तथा टंगस्टन तारों में स्नेहक (lubricant) के रूप में ।
iv) औषधियों में सारक(laxative) के रूप में किया जाता है ।
2. कैरागीनिन – यह कॉन्ड्रस, क्रिसपस तथा गिगार्टिना की कोशिका भित्तियों में उपस्थित पॉलिसैकेराइड है ।
इसका उपयोग निम्न है –
i) टूथपेस्ट ,प्रसाधन, पेन्ट तथा चमड़ा उद्योग में ।
ii) मदिरा तथा चीनी उद्योग में निर्मलक (clearing agent) के रूप में ।
3. डायटोमाइट – डायटम की सिलिकामय कोशिका भित्तियों से बने भूखण्ड डायटोमाइट कहलाते है । तेल तथा अन्य रसायन उद्योगों में इसे निस्यंदक (filter) के रूप में प्रयोग किया जाता है । यह ताप प्रतिरोधक होती है । अतः इससे अग्निसह ईंटे (fire bricks) तैयार की जाती है ।
IV) खनिज एवं तत्व (minerals and elements) के रूप में – भूरे शैवालों में सोडा ,पोटाश, आयोडीन व ऐल्जिनिक अम्ल प्रचुर मात्रा में पाए जाते है । लैमीनेरिया, फ्यूकस, एक्लोनिया आदि कुछ वंश आयोडीन के प्रमुख स्रोत है ।
V) जैव उर्वरक के रूप में (Algae as biofertilizer) – धान के खेतों में नील-हरित शैवाल प्रमुख नाइट्रोजन स्थायीकारक (nitrogen fixing agent) है । धान के खेतों में नील-हरित शैवालों का संरोपण (inoculation) करने से पैदावार 30% तक बढ़ाई जा सकती है ।
बड़े आकार के भूरे व लाल शैवालों का उपयोग कार्बनिक खाद (organic manure) के रूप में किया जाता है ।
राजस्थान के साम्बर लवण झील में ऐनाबिनॉप्सिस ,स्पाइरूलाइना आदि शैवाल उगते हैं जिन्हें किसान खाद के रूप में प्रयोग करते है ।
VI) वाहितमल के समापन में (in disposal of sewage) – घरेलु अथवा औद्योगिक उत्सर्ग जिनमें निलंबित तथा विलीन कार्बनिक व अकार्बनिक पदार्थ प्रचुर मात्रा में हों, वाहितमल कहलाते है ।
वाहितमल के समापन में कुछ शैवाल जैसे क्लेमिडोमोनास, क्लोरेला, युग्लीना आदि महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है ।
VII) एन्टिबायोटिक व औषधि के रूप में (Algae as antibiotic and in medicines) – क्लोरेला, क्लैडोफोरा ,लिंगबया आदि कुछ शैवाल ऐन्टिबायोटिक पदार्थों का संश्लेषण करते है ,जो रोगाणुजनक जीवाणुओं के प्रति प्रभावी होते है । क्लोरेला से क्लोरेलीन नामक ऐन्टिबायोटिक प्राप्त किया जाता है ।
कैरेलीज गण के सदस्यों में डिम्भनाशी (larvicidal) गुण होते है अतः ये मच्छरों की रोकथाम में उपयोगी है ।
भूरे शैवालों में आयोडीन की प्रचुर मात्रा पायी जाती है । अतः इनका प्रयोग गलखण्ड औषधियों (goiter medicines) में किया जाता है । जैलिडियम पेट के रोगों में लाभदायक है । निज़ाशिया नामक डायटम में विटामिन-A प्रचुर मात्रा में पाया जाता है ।
VIII) प्रयोगात्मक सामग्री के रूप में शैवाल (Algae as experimental material) – आनुवांशिकी व कोशिका विज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण अनुसंधान एसीटाबुलेरिया नामक शैवाल पर ही हुए है । प्रकाश संश्लेषण के समय कार्बन पथ के अध्ययन के लिए क्लोरेला नामक शैवाल को व्यापक रूप से प्रयोग किया जाता है । कला पारगम्यता (membrane permeability) पर अनुसंधान के लिए वॉलवोनिया व हैलीसिस्टिस नामक शैवाल सर्वाधिक उपयुक्त है ।

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