Hindi science

White rust disease of crucifers in Hindi || A fungal disease of Cruciferae

क्रूसीफ़र का श्वेत किट्ट रोग

क्रूसीफ़र का श्वेत किट्ट रोग  – श्वेत किट्ट रोग से क्रूसीफेरी (Cruciferae) कुल की अनेक जातियाँ जैसे – सरसों ,मूली , गोभी ,शलजम आदि संक्रमित होती है । यह रोग भारतवर्ष के सभी भागों में पाया जाता है ।
1. रोग लक्षण (disease symptoms)


i. श्वेत किट्ट रोग के लक्षणों पौधे की पत्तियों ,तने ,पुष्प ,फल आदि वायवीय भागों में श्वेत स्फोटों (White pustules) के रूप में प्रकट होते है । ये लक्षण स्थानगत अथवा सर्वागीं (systemic) होते है ।
ii. स्फोट सामान्यतः पत्ती की निचली सतह पर विकसित होते है । परन्तु तीव्र संक्रमण की दशा में ये पत्ती की ऊपरी सतह व तने में भी फैल जाते है ।
iii. परपोषी के संक्रमित अंग अपसामान्य (abnormal) हो जाते है । और यह अपसामान्यता अतिवृद्धि (hypertrophy) , मॉसलता (fleshyness) व विकृति (distortion) के रूप में प्रकट होती है ।
iv. संक्रमित पत्तियाँ आमाप मे छोटी ,मोटी व मॉसल होती है और पुष्प बंध्य व बड़े हो जाते है ।
v. संक्रमित पौधों में पुष्पक्रम व तना प्रायः व्यावर्तित हो जाते है । और तीव्र संक्रमण की दशा में परपोषी के कोमल अंग विघटित हो जाते है ।
2. रोगकारक जीव (causal organism) – श्वेत किट्ट रोग का कारक एल्बूगो कैन्डिडा (Albugo candida) नामक अविकल्पी परजीवी कवक है । इसका कवकजाल परपोषी के अंतराकोशिक अवकाशों में फैलता है । कवकजाल पटहीन , बहुकेन्द्रकी एवं शाखित होता है । यह परपोषी से अपना पोषण चूषकांगो (haustoria) के द्वारा लेता है ।
3. रोग-चक्र (Disease cycle) –
i. श्वेत किट्ट रोग एक मृदोढ़ रोग (soil borne disease) है अर्थात् इसके कारक मिट्टी में रहते है । रोग का फैलाव निषिक्तांड (oospore) द्वारा होता है । जो खेत में पेड़ रोगी पौधे में होते है ।
ii. वायु में उपस्थित कोनेडिया रोग को तेजी से फैलाने में प्रभावकारी होते है । नम तथा ठंडे वातावरण में रोग तेजी से फैलता है ।
4. रोग नियंत्रण (control disease) – श्वेत किट्ट रोग का नियंत्रण निम्न विधियों से किया जा सकता है –
i. फसल के सस्यावर्तन (crop rotation) से ।
ii. संक्रमित पौधों को नष्ट करके ।
iii. बोर्दी मिश्रण (bordeaux mixture) के 0.8 % घोल का छिड़काव करके ।

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