Hindi science

Virus structure and function in Hindi. Living and nonliving properties of virus

वाइरस की संरचना और क्रियाप्रणाली 

व्हिटेकर द्वारा सुझाए गए पाँच जगत वर्गीकरण में अकोशिक जीवों जैसे वाइरस, वायरॉइड्स ,प्रायोन्स आदि को स्थान नहीं दिया गया है ।
वाइरस – वाइरस अकोशिक जीव होते है ,जो परपोषी कोशिका के बाहर रवेदार होते है । एक बार जब वाइरस परपोषी कोशिका को संक्रमित कर देते है तो वे मेजबान (परपोषी) कोशिका की मशीनरी का उपयोग अपनी प्रतिकृति बनाने में करते हैं और मेजबान को मार देते है ।

 
वाइरस को अर्थ है विष अथवा विषैला तरल अथवा अथवा विष अणु । डी.जे. इबानोवस्की (1892) ने तंबाकू के मौजेक रोग के रोगाणुओं को पहचाना था ,जिन्हें वाइरस नाम दिया गया । इनका माप बैक्टिरिया से भी छोटा होता है क्योंकी ये बैक्टिरिया प्रूफ फिल्टर से भी निकल जाते है ।
एम.डब्ल्यू. बैजेरिनेक (1898) ने पाया कि संक्रमित तंबाकू के पौधे का रस स्वस्थ तंबाकू के पौधे को भी संक्रमित करने में सक्षम है । उन्होंने ने इस रस (तरल) को ” कंटेजियम वाइनम फ्लुयइडम (संक्रामक जीवित तरल) ” कहा ।
डब्ल्यू.एम. स्टानले (1935) ने बताया कि वाइरस को रवेदार बनाया जा सकता है और इस रवे मे मुख्यतः प्रोटीन होता है । वाइरस विशिष्ट मेजबान कोशिका बाहर निष्क्रीय होते है । वाइरस अविकल्पी परजीवी है । स्टानले को तंबाकू के मौजेक विषाणु का सफलतापूर्वक क्रिस्टलीकरण करने तथा उन्हें न्यूक्लियोप्रोटीन के रूप में प्राप्त करने के लिए 1935 में नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया ।

विषाणुओं की प्रकृति (nature of viruses) – विषाणुओं की प्रकृति के विषय मे कवकद्रव्य वाद (mycoplasm theory ), जीवाण्विक वाद (bacterial theory ), ऑक्सीकारक एंजाइम वाद (oxidising enzyme theory ), विषाणु वाद (virus theory ) आदि अनेक मत प्रचलित है । इनमें विषाणु वाद अधिक प्रचलित है ।
विषाणु वाद (virus theory) – इसके अनुसार –
i) विषाणु कणिकामय (granular) संरचना है जिन्हें साधारण सूक्ष्मदर्शी द्वारा नहीं देखा जा सकता है ।
ii) अधिकांश विषाणु जीवाणुज फिल्टर (bacterial filter) द्वारा पृथक नहीं किए जा सकते है ।
iii) विषाणुओं का संवर्धन कृत्रिम माध्यम (artificial medium) में नहीं किया जा सकता है ।
iv) विषाणु अपने विशिष्ट परपोषी (specific host) लाक्षणिक लक्षण उत्पन्न करते है ।
v) ये ताप तथा आर्द्रता के प्रति अनुक्रिया (response) प्रकट करते है ।
vi) विषाणुओं को रसायन तथा ताप उपचार (chemo and thermo theory) से निष्कृत (inactive) किया जा सकता है ।
vii) परपोषी उत्तक में विषाणु जीवित जीव के लक्षण प्रदर्शित करते है ।
viii) ये अविकल्पी आन्तरकोशिक परजीवी (obligate interacellular parasite) है ।
ix) इनमें प्रकार्यक स्वायत्तता (functional autonomy) का अभाव होता है ।

विषाणुओं के जैविक तथा अजैविक (निर्जीव) गुण – विषाणुओं में जीव तथा निर्जीव दोनों के गुण पाए जाते है –
1. विषाणुओं के जैविक गुण (living properties of viruses) – इसमें निम्नलिखित जैविक गुण होते है –
i) इनमें आनुवांशिक पदार्थ की पुनरावृति (replication) होती है ।
ii) विषाणुओं के उत्परिवर्ती रूप(mutant form) पाए जाते है ।
iii) यह ताप ,रसायनिक पदार्थों ,विकिरण आदि उद्दीपकों (stimulants) के प्रति अनुक्रिया प्रदर्शित करते है ।
iv) विषाणुओं में प्रतिजनी(antigenic) गुण होते है ।
v) इनमें आनुवांशिक पदार्थ (RNA अथवा DNA) पाया जाता है ।
vi) इनका प्रवर्धन (multiplication) केवल जीवित कोशिकाओं में ही होता है ।
vii) विषाणु परपोषी विशिष्टता (host specificity) दर्शाते है ।
2. विषाणुओं में निर्जीव पदार्थों के गुण (inanimate properties of viruses) – विषाणु निर्जीव पदार्थों के अनेक लक्षण दर्शाते है । इस प्रकार के कुछ लक्षण नीचे दिए गए हैं –
i) विषाणुओं का क्रिस्टलीकरण किया जा सकता है ।
ii) ये अपनी विशिष्ट परपोषी(specific host) कोशिका के बाहर अक्रिय (inert) होते है ।
iii) ये स्वोत्प्रेरक (autocatalytic) होते है तथा इनमें प्रकार्यक स्वायत्तता (functional autonomy) का अभाव होता है ।
iv) इनमें कोशिका कला तथा भित्ति (cell membrane and wall) का अभाव होता है ।
v) इनमें श्वसन नहीं होता है ।

पादप व जन्तु विषाणुओं में अन्तर (differences between plant and animal viruses) – पादप व जन्तु विषाणुओं में दो मुख्य अन्तर है –
1. सभी प्रकार के पादप विषाणुओं में आवरण का अभाव होता है जबकी जन्तु विषाणुओं में यह उपस्थित (जैसे एनफ्लुएंजा विषाणु ,मम्पस विषाणु अथवा अनुपस्थित (जैसे पोलियो मेरूरज्जु शोथ विषाणु) होता है ।
2. सभी पादप विषाणुओं में आनुवांशिक पदार्थ RNA होता है जबकी जन्तु विषाणुओं में यह RNA अथवा DNA होता है ।

विषाणुओं की संरचना (structure of viruses) –
1. आमाप (size) – विषाणुओं का अध्ययन साधारण संयुक्त सूक्ष्मदर्शी द्वारा नहीं किया जा सकता परन्तु इलेक्ट्रोन सूक्ष्मदर्शी द्वारा उनका सौ गुना आवर्धन (magnification) करने पर उनके आकार तथा आमाप में अत्यंत विविधता दिखाई देती है । सूक्ष्मत्तम विषाणुओं का आमाप लगभग 10μm (माइक्रोमीटर) होता है जबकी सबसे बड़े विषाणु 300 μm तक होते है । सामान्यतः पादप विषाणु जन्तु विषाणुओं से छोटे होते है ।

क्रं.सं. विषाणु आमाप
1. हर्पीज विषाणु 125 μm
2. Φ×174 230-300 μm
3. स्मॉल पॉक्स विषाणु 250-300 μm
4. तंबाकू मौजेक विषाणु 300 × 15  μm

 

2. आकार (shape) – विषाणुओं का आकार कुंडलित दंडिका (helical rod जैसे new castle virus, mumps virus, tobacco masaic virus आदि) , घनाभ (cuboid जैसे herpes virus, turnip yellow mosaic virus, Φ×174 आदि) अथवा जटिल (complex जैसे influeza virus) होता है ।
जीवाण्विक विषाणु जिन्हें जीवाणुभोजी (bacteriophage) कहते है , का आकार टैडपोल के समान होता है ।

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