Hindi science

Transmission of Viruses in Hindi || comparative study of viruses, viroids and prions in Hindi

विषाणुओं का संचरण

विषाणु अपनी अतिजीविता (survival) तथा अनुकूल परपोषी (suitable host) की खोज में एक से दूसरे परपोषी में जाते है परन्तु ये स्वयं गति नहीं कर सकते है । इनका संचरण अनेक बाह्य वाहकों (external carriers) द्वारा होता है । नीचे पादप विषाणुओं के संचरण की सामान्य विधियों का वर्णन किया गया है ।
I) रोपण द्वारा संचरण (Graft transmission) – रोपण प्रक्रिया में स्कन्ध(stock) व कलम (scion) में परस्पर सम्पर्क होने पर दोनों में से किसी भी एक में उपस्थित विषाणु दूसरे परपोषी को स्थानान्तरित हो जाते है । यह स्थानान्तरण कटी हुई सतहों पर उत्तकों के मिलने से होता है ।
II) अन्तः क्षेपण द्वारा संचरण (transmission by injection) – यांत्रिक संचरण (mechanical transmission) की यह सबसे सफल विधि है । संक्रमित पौधे के रस(sap) का स्वस्थ पौधे में संरोपण (inoculation) करने पर विषाणु स्वस्थ पौधे को संक्रमित कर देता है । विषाणुओं के संक्रमण की विधि प्रयोगशाला में सामान्य रूप से प्रयोग की जाती है ।
III) घर्षण द्वारा संचरण (transmission by friction and rubbing) – खेत में लगे पौधे जब हवा के कारण एक दूसरे से रगड़ते है तो संक्रमित पौधे से विषाणुओं का संचरण स्वस्थ पौधे को हो जाता है ।
IV) छिड़काव द्वारा संचरण (transmission by spraying) – वायरस से संक्रमित युक्त द्रव्यों का पौधों पर छिड़काव करने से पौधे संक्रमित हो जाते है ।
V) एकान्तर परपोषियों द्वारा संचरण (transmission through alternate hosts) – भिन्डी के पीली नाड़ी मौजेक आदि अनेक विषाणु रोगों का संचरण एकान्तर अथवा संपार्श्विक (collateral) परपोषियों द्वारा होता है ।
VI) मिट्टी तथा बीजों द्वारा संचरण (transmission through soil and seeds) – वे विषाणु जिनका संचरण संक्रमित तथा स्वस्थ पौधों के स्पर्श पर निर्भर न होकर प्राकृतिक भूमिगत विधियों द्वारा होता है ,उन्हें मृदोढ़ विषाणु (soil borne virus) कहते है । वायरस संक्रमित बीज व मिट्टी से भी वायरस का पौधों में संचरण होता है ।
VII) कायिक प्रवर्ध्यों द्वारा संचरण (transmission through vegetative propagules) – अनेक विषाणु रोगों का संचरण कायिक प्रवर्ध्यों जैसे कन्दों (tubers), प्रकन्दों (rhizomes), भूस्तारियों (suckers), घनकंदों(corms) द्वारा होता है ।
VIII) परागकणों द्वारा संचरण (transmission through pollen grains) – अनेक अध्ययनों में यह पाया गया है कि स्वस्थ पौधे के पुष्पों का परागण (pollination) विषाणु द्वारा संक्रमित पौधों के परागकणों (pollen grains) द्वारा हो तो उनसे उत्पन्न बीज विषाणु युक्त होते है ।
IX) कवकों द्वारा संचरण (transmission through fungi) – टीकल (1960) के अनुसार तंबाकू उत्तकक्षयी विषाणु (tobacco necrosis virus) का संचरण ओल्पिडियम ब्रेसिकी नामक कवक द्वारा होता है । इसके अतिरिक्त सिनकाइट्रियम एन्डोबायोटिकम तथा पॉलीमिक्सा ग्रेमीनिस कवक भी संभवतः आलू के विषाणु के सशक्त वाहक है ।
X) कीटों द्वारा संचरण (transmission through insects) – अनेक प्रकार के कीट जैसे श्वेत मक्खी ,पात फुदक(leaf hopper) ,पादप फुदक(plant hopper), ऐफिड आदि अनेक के कीट विषाणुओं के सशक्त वाहक है ।
XI) विषाणु ग्रस्त कृषि यंत्रों द्वारा (transmission by infected agriculture tools) – संक्रमित संक्रमित पौधों को काटने-छांटने पर उनमें उपस्थित विषाणु कृषि यंत्रों पर चिपक जाते है । विषाणुग्रस्त कृषि यंत्रों का उपयोग जब संक्रमण योग्य फसलों पर किया जाता है तो विषाणु उनको स्थानान्तरित हो जाते है । तंबाकू ,आलू ,कुकुरबिट्स आदि फसलों के विषाणु रोगों के संचरण की यह सामान्य विधि है ।

वाइरस , वाइरायड्स तथा प्रायोन्स का तुलनात्मक अध्ययन (comparative study of viruses, viroids and prions) –

क्रंसं. लक्षण वाइरस वाइरायड्स प्रायोन्स
1. न्युक्लिक अम्ल एकल अथवा द्विरज्जुकी RNA अथवा DNA एकल रज्जुकी RNA अनुपस्थित
2. प्रोटीन आवारण अथवा कैप्सिड उपस्थित अनुपस्थित अनुपस्थित
3. प्रोटीन उपस्थित अनुपस्थित उपस्थित
4. प्रोटीन विकृतिकारक का प्रभाव प्रोटीन विकृतिकरण कोई प्रभाव नहीं प्रोटीन विकृतिकरण
5. न्युक्लिक अम्ल पाचक एंजाइम का प्रभाव न्युक्लिक अम्ल का विकृतिकरण न्युक्लिक अम्ल का विकृतिकरण कोई प्रभाव नहीं
6. संक्रमण कारक न्युक्लिक अम्ल न्युक्लिक अम्ल प्रोटीन
7. परपोषी  बैक्टिरिया ,जन्तु एवं पौधे पौधे स्तनधारी

 

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