Hindi science

Structure of Viroids and Prions and their diseases in plants and human in Hindi

वाइरायड्स और प्रायोन्स की संरचना व उनके द्वारा उत्पन्न रोग

 ⦁ वाइरायड्स(Viroids) – वाइरस को अब जीवन का सरलतम और सूक्ष्मत्तम स्वरूप नहीं माना जाता है । 1971 में टी.ओ. डाइनर ने वाइरस से भी सूक्ष्मत्तम संक्रामक कारकों (infectious agents) का आविष्कार किया और इन रोगाणुओं को उन्होंने वाइरायड्स कहा । प्रथम वाइरायड्स की खोज तब हुई जब आलू के तर्कूकंद रोग (spindle tuber disease) का अध्ययन किया जा रहा था । इससे पूर्व यह माना गया कि इस रोग के कारक वायरस है । परन्तु अध्ययनों से पता चला कि –
1) रोगकारक केवल RNA के रज्जुक (RNA strand) हैं और इनमें सामान्य वायरस की भाँति न्युक्लियोप्रोटीन का आवरण नहीं है ।
2) इस संक्रामक RNA का अणुभार सामान्य वाइरस में उपस्थित RNA के अणुभार की तुलना में बहुत कम पाया गया ।
इस अविष्कार के उपरांत अनेक पादप रोगों (जैसे सिट्रस एक्सोकार्टिस, क्राइसेन्थीमम स्टन्ट आदि) के कारक वाइरायड्स पाये गये । पौधों की तुलना में अभी बहुत कम ऐसे जन्तु रोग ज्ञात है जिनके कारक वाइरायड्स है (जैसे भेड़ का स्क्रपी रोग , मनुष्यों का एल्जिमर रोग) ।

वाइरायड्स की संरचना (structure of viroids) – वाइरायड्स RNA के एक सूक्ष्म रज्जुक से निर्मित होते है , इनमें न्युक्लियोप्रोटीन का आवरण नहीं होता है । तर्कुकंद रोग से संक्रमित आलू के कंद का अध्ययन करने पर इसके कारक (पोटेटो स्पिन्डल ट्यूबर वाइरायड्स = PSTV) में केवल RNA के सूक्ष्म रज्जुक पाए गए जो 250-350 न्युक्लियोटाइड्स से निर्मित थे, इनमें एडीनीन : यूरेसिल (A:U) तथा ग्वानीन : सायटोसीन (G:C) का अनुपात एक के लगभग था ।
वाइरायड्स एवं पादप रोग (Viroids and plant disease) – वाइरायड्स संक्रमण स्थायी होते है अर्थात् संक्रमित पौधों को वाइरायड्स से मुक्त करना संभव नहीं है । वाइरायड्स रोगों के लक्षण वाइरस रोगों से भिन्न होते है ,दोनों प्रकार के रोगों के लक्षण समान होते है । इस रोग के सामान्य लक्षण स्तंभित वृद्धि (stunted growth), शिरा हरिमहीनता (veinal discoloration), क्लोरोसिस, कर्बुरण (mottling), उत्तकक्षयी चकत्ते (necrotic spots) आदि है । वाइरायड्स संक्रमित पौधों में कुछ विशिष्ट प्रोटीन अपेक्षाकृत अधिक मात्रा में पाए जाते है ।
वाइरायड्स का पौधों में संचरण –
1) वाइरायड्स का एक पौधे से दूसरे पौधे को संचरण यांत्रिक विधियों से होता है ।
2) इसके अतिरिक्त संक्रमित पौधों के बीज व परागकण द्वारा भी संचरण होता है ।

⦁ प्रायोन्स (prions) – मनुष्य व जन्तु के अनेक रोग प्रोटीनी संक्रामक कणों (proteinaceous infectious particles) द्वारा होते है । स्टनले प्रूसनियर (1982) ने इन सूक्ष्म संक्रामक कणों का नाम प्रायोन रखा । 1987 में उन्हें प्रायोन्स पर किए गए कार्य के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया ।

प्रायोन्स की संरचना (structure of prions) –
1) प्रायोन्स केवल प्रोटीन से निर्मित होते है । इनमें न्युक्लिक अम्लों का अभाव होता है ।
2) प्रायोन्स का निर्माण करने वाली प्रोटीन को PrP (प्रायोन प्रोटीन) कहा जाता है । ये प्रोटीन लगभग 250 अमीनों अम्लों से निर्मित होते है ।
3) इनका आमाप सूक्ष्म वाइरस के आमाप का 100 वाँ भाग (1/100) होता है ।

प्रायोन्स के कुछ महत्वपूर्ण लक्षण –
1) प्रायोन्स को 90 डिग्री सेल्सियस ताप भी निष्क्रीय नहीं किया जा सकता है । जबकि वाइरस इस ताप पर निष्क्रीय हो जाते है ।
2) प्रायोन्स कण विकिरणों के उपचार से प्रभावित नहीं होते है । (जबकि वाइरस जीनोम को विकिरण प्रभावित करते है । )
3) DNA अथवा RNA को अपघटित अथवा पाचित करने वाले एंजाइम प्रायोन्स की क्रियाशीलता को प्रभावित नहीं करते है ।
4) प्रोटीन की क्रियाशीलता को प्रभावित करने वाले कारकों (जैसे फीनोल ,यूरिया आदि ) से प्रायोन्स की क्रियाशीलता प्रभावित होती है ।

प्रायोन्स से होने वाले रोग – प्रायोन्स केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र का प्रगामी अपह्रासन (progressive degeneration) करते है । इनके कारण होने वाले सभी रोग सम्मिलित रूप से संचरणशील स्पंजी मस्तिष्काविकृति (transmissable spongi form encephalopathies) कहलाती है । क्योंकि इस रोग में मस्तिष्क स्पंजी हो जाता है । जन्तुओं में प्रायोन्स के कारण उत्पन्न रोग उन्मत गाय का रोग (mad cow disease) है । मनुष्यों में भी प्रायोन्स के कारण कुछ रोग उत्पन्न होते हैं जो कि निम्न है –
1. कुरू रोग (kuru disease) – इस रोग के लक्षण संक्रमण के 1-15 वर्ष पश्चात् तेज सिरदर्द के रूप में प्रकट होते है । कुछ समय में समन्वय (coordination) समाप्त होने लगता है तथा चलने व खाना निगलने में कठिनाई होने लगती है ।
2. क्रियुटैजफेल्ड-जेकोब रोग (CJD) – इसमें मनुष्य का मस्तिष्क अपह्रासित हो जाता है तथा प्रेरक कार्य (motor functions) समाप्त होने लगते है । अन्ततः मनुष्य की मृत्यु होने लगती है ।

 

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