Hindi science

Structure and Classification of Lichens in Hindi

लाइकेन की संरचना एवं वर्गीकरण

लाइकेन असाधारण पौधों (curious plants) का एक छोटा-सा समूह है । ये शैवाल तथा कवक के साहचर्य (association) से निर्मित वनस्पतियाँ है । इनके शैवालीय घटक को शैवलांश (phycobiont) तथा कवकी घटक को कवकांश (mycobiont) कहते है । इन दोनों घटको का साहचर्य अत्यंत घनिष्ट होता है ।
लाइकेनों के लक्षण शैवाल तथा कवक दोनों से भिन्न होते है । लाइकेनों के कुछ मुख्य लक्षण निम्न है –
1. लाइकेन, शैवाल तथा कवक के साहचर्य से निर्मित संघटित थैलाभ संरचना (composite thalloid structure) है ।
2. लाइकेन के शैवाल घटक प्रकाशसंश्लेषण द्वारा कार्बोहाइड्रेट बनाते है जिसे वे स्वयं तथा कवक भोजन के रूप में प्रयोग करते है । कवकी घटक जलशोषण एवं प्रतिधारण (water absorption and retention) का कार्य करते है ।
3. आकारिकीय दृष्टि से लाइकेन के थैलस तीन प्रकार के होते है ।


i) पर्पटीय लाइकेन(crustose lichen) ii) पर्णिल लाइकेन(foliose lichen) iii) क्षुपिल लाइकेन (fruticose lichen) ।
4. इनमें अलैंगिक जनन अलैंगिक बीजाणुओं (asexual spores) जैसे ऑइडियम बीजाणु , पिक्रिडियम बीजाणु आदि द्वारा होता है ।
5. लाइकेन में लैंगिक जनन केवल इनके कवकी घटक द्वारा होता है । स्त्री जननांग जिन्हें कार्पोगोनियम (carpogonium) कहते है ,एक आधारीय कुंडलित एस्कोगोनियम (ascogonium) तथा लंबी बहुकोशिकीय ट्राइकोगाइन (trichogyne) में विभेदित होती है ।
6. नर जननांग फ्लास्क सदृश्य स्पर्मोगोनियम (spermogonium) बनाते है जो थैलस की ऊपरी सतह पर स्थित होते है । नर युग्मक अचल पुमणु (spermatium) कहलाते है ।
7. फलनपिण्ड (fruiting body) प्लेट सदृश्य एपोथीसियम(apothecium) अथवा फ्लास्क रूपी पेरीथीसियम(perithecium) बनाते है ।
8. प्रत्येक एस्कस में आठ एस्कोबीजाणु (ascospores) होते है । ऐस्कोबीजाणु अंकुरित होकर कवकतंतु बनाते है जो किसी उचित शैवाल के सम्पर्क में आकर नये लाइकेन का निर्माण करते है ।
9. इनकी वृद्धि अत्यंत धीरे-धीरे होती है । ये लंबी अवधी तक उच्च तापमान तथा शुष्क दशा में जीवित रह सकते है । अतः ये सूखे तथा ऊसर अधोस्तर पर सरलता से उग सकते है ।
10. इनमें लाइकेन अम्ल (lichen acid) नामक एक विशिष्ट अम्ल पाया जाता है ।

लाइकेन में शैवलांश तथा कवकांश की साहचर्य प्रकृति (nature of association of phycobiont and mycobiont in lichens) – लाइकेन के शैवालीय घटक क्लोरोफाइसी अथवा मिक्सोफाइसी वर्ग के सदस्य है , जबकी कवकीय घटक बेसीडियोमाइसीटीज अथवा ऐस्कोमाइसीटीज वर्ग के सदस्य है । बेसीडियोमाइसीटीज वर्ग के कवक लाइकेनों के केवल चार ही वंशों में पाए जाते है तथा शेष सभी वंशों में एस्कोमाइसीटीज वर्ग के कवक है । इसी प्रकार लगभग 75 प्रतिशत लाइकेनों में क्लोरोफाइसी वर्ग के शैवाल पाए जाते है ।
लाइकेनों के शैवालीय तथा कवकी घटकों के परस्पर संबंध प्रायः सहजीवी (symbiotic) प्रकृति के समझे जाते है , जिसमें शैवाल तथा कवक दोनों ही समान रूप से लाभान्वित होते है । ऐसा माना जाता है कि शैवाल कार्बनिक पदार्थों (कार्बोहाइड्रेट) का संश्लेषण करते है जो स्वयं तथा कवकी घटक के लिए पर्याप्त होता है । कार्बनिक भोजन के बदले में कवकी घटक शैवाल को जल व खनिज उपलब्ध कराते हैं इसके अतिरिक्त ये शैवाल की उच्च ताप व शुष्कन (desiccation) से भी रक्षा करते है ।

लाइकेनों का वर्गीकरण (classification of lichens) – लाइकेनों का पादपकाय थैलाभ (thalloid) होता है । थैलस का आकार अनियमित तथा रंग मटमेला अथवा मटमेला हरा होता है । कुछ जातियाँ पीले ,नारंगी ,भूरे अथवा लाल रंग की होती है ।
बाह्य आकारिकी (external morphology) अथवा थैलस के आकार के आधार पर लाइकेनों को निम्न तीन वर्गों में विभेदित किया गया है जो कि निम्न है –
1. पर्पटीय लाइकेन (crustose lichen) –

इस प्रकार के लाइकेन का थैलस चपटा व कठोर होता है । इसकी निचली सतह अधोस्तर पर पपड़ी (crust) की भाँति घनिष्ट रूप से चिपकी रहती है । थैलस पूर्णतः अथवा आंशिक रूप से अधोस्तर पर निमग्न होता है । इनमें फलनपिण्ड थैलस की ऊपरी सतह पर पाए जाते है । उदाहरण – ग्रेफिस, हीमेटोमा , लीकेनोरा , लेसीडिया, राइजोकार्पोन ,वेरूकेरिया आदि ।

2. पर्णिल लाइकेन (foliose lichen) –

इनके थैलस चपटे ,फैले हुए तथा पत्तियों की भाँति पालित व कटावदार होते हैं । पर्पटीमय लाइकेन की भाँति इनकी सम्पूर्ण निचली सतह आधार से चिपकी नहीं होती है । इनकी निचली सतह से मूलाभास सदृश्य तन्तुरूपी उद्वर्ध निकलते है जिन्हें राइजीन(rhizines) कहते है । इनकी सहायता से थैलस अधोस्तर पर चिपका होता है । उदाहरण – पारमेलिया , फाइसिया , पेल्टीगेरा, जैथोरिया ,गायरोफोरा आदि ।

3. क्षुपिल लाइकेन (fruticose lichen) –

इनका थैलस सुविकसित ,क्षुपिल (shrub like) , बेलनाकार तथा शाखित होता है । इनकी चपटी , फीतानुमा अथवा बेलनाकार शाखाओं की उर्ध्व वृद्धि होती है अथवा वे वृक्षों के स्तंभों से नीचे लटकी रहती है । इस प्रकार के लाइकेन अधोस्तर पर एक आधारी श्लेष्मक बिम्ब (basal mucilagenous disc) की सहायता से चिपके होते है ।
उदाहरण – एलेक्टोरिया , क्लैडोनिया, अस्नियॉ आदि ।

 

Economic importance of Lichens in Hindi

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