NCERT/CBSE Class 11 Biology chapter-3- Kingdom Plantae/Plant Kingdom in Hindi part-2
⦁ शैवाल (Algae) –
i. विज्ञान की वह शाखा जिसमें शैवालों का अध्ययन किया जाता है उसे Phycology/Algology कहते हैं । ‘शैवाल’ शब्द कैरोलस लीनियस ने दिया था ।
ii. शैवाल पर्णहरित युक्त, सरल , सूकायक (थैलायड) ,असंवहनीय पौधे हैं । ये प्रायः जलीय होते है और केवल कुछ शैवाल नमी युक्त पत्थर, मिट्टी तथा लकड़ी में भी पाए जाते हैं ।
iii. इस समूह के कुछ सदस्य कवकों के साथ सहजीवी संबंध दर्शाते है जिसे लाइकेन कहते है तथा कुछ प्राणियों के संगठन में भी पाए जाते है जैसे स्लोथ बीयर (स्लोथ रीछ) ।
iv. शैवाल के माप तथा आकार में बहुत विभिन्नता होती है । इनका माप सूक्ष्मदर्शी एक कोशिक शैवाल जैसे क्लैमाइडोमोनॉस से कॉलोनीय जैसे वॉल्वॉक्स (इसकी कॉलोनी में कोशिकाओं की संख्या निश्चित होती है और ऐसी कोलोनी को सीनोबियम कहते है ।) तथा तंतुमयी जैसे यूलोथ्रिक्स, स्पाइरोगायरा तक हो सकता है । इनमें से कुछ शैवाल जैसे केल्प, बहुत विशालकाय होते है ।
v. शैवालों की कोशिका भित्ति में सेल्यूलोज के अलावा गेलेक्टोज (गेलेक्टेन्स) तथा मेनोस (मेनेन्स) के बहुलक भी पाए जाते है ।
vi. F.E. फ्रिश्च को फाइकोलोजी के पितामाह माना जाता है । इन्होंने शैवालों के अध्ययन हेतु एक प्रसिद्ध पुस्तक ( स्ट्रक्चर एण्ड रीप्रॉडक्शन ऑफ एल्गी) लिखी थी ।
vii. भारत में M.O.P. अययंगर को फाइकोलोजी के पितामाह माना जाता है ।
शैवालों में जनन (Reproduction in Algae) – एल्गी में तीन प्रकार का जनन होता है –
1. कायिक जनन
2. अलैंगिक जनन
3. लैंगिक जनन
1. कायिक जनन (Vegetative reproduction) – इस प्रकार के जनन में जीव शरीर का कोई भाग टूटकर नये जीव का निर्माण करता है । कायिक जनन निम्न प्रकार का हो सकता है –
i. द्विखण्डन – इसमें किसी जीव का शरीर दो बराबर भागों में बंट जाता है और नये जीव का निर्माण करता है । यह प्रक्रिया एक कोशिकीय शैवालों में पाई जाती है ।
ii. खण्डन (फ्रेग्मेंटेशन) – इसमें जीव का शरीर खंडों में विभक्त हो जाता है और प्रत्येक खंड नए जीव का निर्माण करता है । यह प्रक्रिया सभी तंतुमयी (बहुकोशिकीय) शैवालों में पायी जाती है ।
2. अलैंगिक जनन (Asexual Reproduction) – अनुकूल परिस्थितियों में अलैंगिक जनन की प्रक्रिया जूस्पोर जैसे माइक्रोजूस्पोर , मेक्रोजूस्पोर से संपन्न होती है ।
प्रतिकूल परिस्थितियों में अलैंगिक जनन अचल बीजाणुओं जैसे अप्लेनोस्पोर (पतली भित्ति वाले तथा जीवद्रव्य के विदलन से बनते है ) , हिप्नोस्पोर (मोटी भित्ति वाले ) , एकाइनीट (संपूर्ण कोशिका एक जननीय संरचना के रूप में व्यवहार करती है । यह सबसे प्रतिरोधी संरचना है ) आदि बीजाणुओं द्वारा होती है ।
3. लैंगिक जनन (Sexual Reproduction) – लैंगिक जनन में दो युग्मक संगलित होते है जो कि कशाभिका युक्त अथवा कशाभिका विहिन हो सकते है । लैंगिक जनन को यहाँ तीन भागों में बांट सकते है –
i. समयुग्मकी जनन (Isogamy Reproduction) – जब संगलित होने वाले युग्मक आकार तथा माप में समान होते हैं तो इसे समयुग्मकी जनन कहते है । उदाहरण – क्लैमाइडोमोनास (युग्मक फ्लैजिला युक्त) , स्पाइरोगायरा (युग्मक फ्लैजिला विहिन) , क्लैडोफोरा, यूलोथ्रिक्स, एक्टोकार्पस ।
ii. असमयुग्मकी जनन (Anisogamy Reproduction) – जब संगलित होने वाले युग्मक आकार में समान तथा माप में भिन्न-भिन्न होते है तो इसे असमयुग्मकी जनन कहते है । उदाहरण – क्लैमाइडोमोनास की कुछ स्पीशीज (क्लैमाइडोमोनास ब्रूनाई )
iii. विषमयुग्मकी जनन (Oogamy Reproduction) – जब संगलित होने वाले युग्मक आकार तथा माप दोनों में विभिन्नता प्रदर्शित करते हैं तो इसे विषमयुग्मकी जनन कहते है । इस जनन में एक बड़े अचल मादा युग्मक से एक छोटा चलायमान नरयुग्मक संगलित होता है ।
उदाहरण- वॉलवॉक्स , फ्यूकस, सारगेसम, कारा , क्लैमाइडोमोनास कोक्सीफेरा
शैवालों में लैंगिक जनन से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य –
i. क्लैमाइडोमोनास के द्वारा लैंगिक जनन के क्रमिक विकास को दर्शाया जाता है क्योंकि इस शैवाल की जातियाँ तीनों ही प्रकार के लैंगिक जनन को प्रदर्शित करती है ।
ii. यूलोथ्रिक्स जोनेडा लैंगिक जनन की उत्पत्ति को दर्शाता है (इसमें लैगिक जनन की सबसे सरलतम विधि समयुग्मकी पाई जाती है ।
iii. शैवालों के नर जननांग को पुंधानी तथा मादा जननांग को अण्डधानी (उगोनियम) कहते है ।
iv. शैवालों में लैंगिक अंग एककोशिकीय होते है तथा बंध्य जैकेट आवरण का अभाव होता है ।
अपवाद – कारा (इसमें लैंगिक अंग बहुकोशिकीय तथा बंध्य जैकेट आवरण युक्त होते है ।)
शैवालों का आर्थिक महत्व (Economic Importance of Algae) –
i. पृथ्वी पर प्रकाश संश्लेषण के दौरान कुल स्थिरीकृत CO2 का लगभग आधा भाग शैवाल स्थिर करते हैं ।
ii. प्रकाशसंश्लेषी जीव होने के कारण ये अपने आस-पास के पर्यावरण में घुलित ऑक्सीजन का स्तर बढ़ा देते है ।
iii. ये उर्जा के प्राथमिक उत्पादक होने के कारण बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि ये जलीय प्राणियों के खाद्य चक्रों का आधार हैं ।
iv. पोरफाइरा ,लेमिनेरिया एवं सारगेसम की बहुत सी परजातियाँ समुद्र की उन 70 जातियों में से हैं जिन्हें भोजन के रूप में उपयोग किया जाता है ।
v. कुछ समुद्री भूरे शैवालों से एल्जीनिक एसिड प्राप्त होता है, जिसका व्यवसायिक उपयोग होता है ।
vi. कुछ लाल शैवाल से केराजीनिक नामक हाइड्रोकोलाइड्स प्राप्त होता है यह भी व्यवसायिक उपयोग में लाया जाता है ।
vii. जिलेडियम और ग्रेसीलेरिया नामक लाल शैवालों से अगार-अगार प्राप्त होता है जिसका उपयोग सूक्ष्म जीवों के संवर्धन में तथा आइसक्रीम और जैली को बनाने में किया जाता है । जिन शैवालों से अगार-अगार की प्राप्ति होती है उन्हें Agarophyte कहते हैं । अगार-अगार वास्तव में एगेरोज एवं एगेरोपेक्टिन का मिश्रण है ।
viii. स्पाईरूलिना एवं क्लोरेला एककोशिकीय शैवाल है जिनमें प्रोटीन की प्रचुर मात्रा होती है । अतः इनका उपयोग अन्तरिक्ष यात्री भोजन के रूप में करते है ।
स्पाईरूलिना एक नील-हरित शैवाल है जिसमें 71 % प्रोटीन (सबसे अधिक) पाया जाता है इसके पश्चात् दूसरे स्थान पर क्लोरेला में प्रोटीन प्रचुर मात्रा में पायी जाती है ।
शैवालों का वर्गीकरण (Classification of Algae) – शैवालों को वर्णकों (मुख्य आधार) , संचित भोजन , कोशिका भित्ति संगठन, कशाभिका की संख्या तथा उनके निवेशन की स्थिति तथा आवास आदि के आधार तीन प्रमुख भागों में विभक्त किया गया है –
1. क्लोरोफाइसी (हरे शैवाल)
2. फीयोफाइसी (भूरे शैवाल)
3. रोडोफाइसी (लाल शैवाल)
1. क्लोरोफाइसी (हरे शैवाल) –
i. इनके सदस्यों को प्रायः ” हरा शैवाल ” कहते है । ये एककोशिक, कॉलोनीमय अथवा तंतुमय हो सकते हैं ।
ii. वर्णक सुस्पष्ट क्लोरोप्लास्ट में होते हैं । क्लोरोप्लास्ट डिस्क, प्लेट की तरह, जालिकाकार, कप के आकार, सर्पिल अथवा रिबन के आकार के हो सकते हैं ।
iii. इसके अधिकांश सदस्यों में एक अथवा एक से अधिक पाइरीनॉइड होते है । पाइरीनॉइड स्टार्च होते है ।
iv. इनमें संचित भोजन स्टार्च होता है । कुछ शैवाल तेल बूंदो के रूप में भी भोजन को संचित करते है ।
v. हरे शैवालों में प्रायः एक कठोर कोशिका भित्ति होती है । जिसकी भितरी सतह सेल्यूलोज की तथा बाहरी सतह पेक्टोज की बनी होती है ।
vi. हरित शैवालों को सबसे विकसित शैवाल माना जाता है । हरित शैवालों को उच्च पादपों का पूर्वज माना जाता है । क्लोरोफिल-a एवं b के प्रभाव के कारण इनका रंग हरी घास की तरह होता है ।
vii. कुछ शैवालों से प्रतिजैविकों का निर्माण भी होता है । उदाहरण – क्लोरेलिन
viii. उदाहरण – क्लैमाइडोमोनास, वॉलवॉक्स, यूलोथ्रिक्स ,स्पाइरोगायरा (हरितलवक रिबन की आकृति का ) तथा कारा आदि ।
हरि शैवाल में लैंगिक जनन –
i. कायिक जनन प्रायः तंतु के टूटने से अथवा विभिन्न प्रकार के बीजाणु (स्पोर) के बनने से होता है ।
ii. अलैंगिक जनन फ्लैजिला युक्त जूस्पोर से होता है । जूस्पोर स्पोरेंजिया में बनते है ।
iii. लैंगिक जनन में लैंगिक कोशिकाओं के बनने में बहुत विभिन्नता दिखाई देती है । लैंगिक जनन समयुग्मकी, असमयुग्मकी अथवा विषमयुग्मकी हो सकता है ।
2. फीयोफाइसी (भूरे शैवाल)
i. ये मुख्यतः समुद्री आवास में पाए जाते है । इनके माप तथा आकार में बहुत विभिन्नताएँ होती हैं ।
ii. ये सरल शाखित, तंतुमयी (एक्टोकार्पस) से लेकर सघन शाखित जैसे कैल्प तक हो सकते है । कैल्प की ऊँचाई 100 मीटर तक हो सकती है ।
iii. इनमें क्लोरोफिल-a एवं c ,कैरोटिनॉइड तथा जैंथोफिल होता है । भूरे शैवालों में भूरा रंग फ्यूकोजेंथीन की मात्रा पर निर्भर करता है ।
iv. इन शैवालों का रंग जैतूनी हरे (olive green) से लेकर भूरे रंग के विभिन्न शेड तक हो सकता है ।
v. इनमें जटिल कार्बोहाइड्रेट के रूप में भोजन संचित होता है । यह भोजन लैमिनेरिन अथवा मैनीटोल के रूप में हो सकता है ।
vi. कोशिका भित्ति सेल्यूलोज तथा एल्जिन की बनी होती है । एल्जिन का जिलेटिनी अस्तर बाहर की ओर होता है ।
vii. भूरी शैवाल के प्रोटोप्लास्ट में लवक के अतिरिक्त केन्द्र में रसधानी तथा केन्द्रक पाया जाता है ।
viii. यहाँ थैलस वाला भाग तीनों भागों में विभेदित होता है –
a. होल्डफास्ट – यह आधारीय भाग है जो धरातल से जुड़ने में मदद करता है ।
b. स्टाइप (स्टोक) – यह मध्यवर्ती भाग है इसमें भोजन संवहन के लिए लंबी नलिकाएँ पाई जाती हैं जिन्हें Trumpet hyphae कहते है ।
c. लेमिना (फलक) – यह पत्तिनुमा भाग है जो प्रकाशसंश्लेषी होता है । लेमिना एवं स्टाइप के कारण भूरी शैवाल पत्ती के समान दिखाई देता है अतः इसे पर्णिल शैवाल भी कहते है ।
ix. 70% भूरी शैवाल चारे के रूप में प्रयुक्त होती है ।
x. एल्जीनिक एसिड लेमीनेरिया ,फ्युक्स, मेक्रोसिस्टीस इत्यादि भूरी शैवाल से प्राप्त होता है और इसका प्रयोग साबुन, आइसक्रीम, पॉलिसक्रीम एवं प्लास्टिक बनाने में किया जाता है ।
xi. लेमीनेरिया एवं फ्यूकस से आयोडीन और ब्रोमीन की प्राप्ति होती है ।
xii. उदाहरण – एक्टोकार्पस, डिक्टयोटा, लैमीनेरिया, सरगासम तथा फ्यूकस आदि ।
भूरी शैवाल में जनन –
i. भूरी शैवाल में कायिक जनन विखंडन विधि द्वारा होता है ।
ii. अलैंगिक जनन नाशपाती के आकार वाले दो फ्लैजिला युक्त जूस्पोर द्वारा होता है । इसके फ्लैजिला असमान होते हैं तथा वे पार्श्वीय रूप से जुड़े होते हैं ।
iii. भूरी शैवाल में लैंगिक जनन समयुग्मकी ,असमयुग्मकी अथवा विषमयुग्मकी हो सकता है । युग्मकों का संगम जल में अथवा अंडधानी (विषमयुग्मजी स्पीशीज) में हो सकता है ।
युग्मक नाशपाती आकार (पाइरीफोर्म) के होते हैं और इसके पार्श्व में दो फ्लैजिला होते हैं ।
3. रोडोफाइसी (लाल शैवाल)
i. यह द्वितीय सबसे प्राचीन शैवाल है । अधिकांश लाल शैवाल समुद्र के गर्म क्षेत्रों में पाए जाते है ।
ii. ये शैवाल पानी की सतह पर (जहाँ अधिक प्रकाश होता है ।) और समुद्र की गहराई में (जहाँ कम प्रकाश होता है ) पाए जाते है ।
iii. अधिकांश लाल शैवाल समुद्री जल में पाए जाते है । अपवाद – पोरफाइरिडियम (स्थल पर) ।
iv. लाल शैवाल अधिकांशतः बहुकोशिकीय होते है । अपवाद – पोरफाइरिडियम (एककोशिक)
v. लाल शैवालों में क्लोरोफिल-a एवं d तथा फाइकोएरीथ्रीन वर्णक पाए जाते है । लाल शैवालों का लाल रंग वर्णक r-फाइकोएरीथ्रिन के कारण होता है ।
vi. इनमें भोजन फ्लोरिडियन स्टार्च के रूप में संचित होता है । इस स्टार्च की संरचना एमाइलोप्रोटीन तथा ग्लाइकोजन की तरह होती है ।
vii. कुछ लाल शैवालों की कोशिका भित्ति में कैल्सियम कार्बोनेट पाया जाता है जिससे उनका थैलस पथरीला हो जाता है और ये शैवाल चूना पत्थर (lime stone) एवं कोरल रीफ का निर्माण करते है । उदाहरण- कोरोलाइना, लीथोमेनियोन ।
viii. उदाहरण – पोलीसाइफोनिया, ग्रेसिलेरिया, पोरफाइरा तथा जिलेडियम आदि लाल शैवाल के उदाहरण है ।
NOTE – लाल शैवाल लाल रंग के होते है परन्तु समुद्र की गहराई के अनुसार इनका रंग परिवर्तित हो जाता है ,ग्वाडीकोव प्रभाव कहते है । (नील हरित शैवाल में भी यह गुण पाया जाता है )
लाल शैवाल जब समुद्र की सतह पर होते हैं तो इनका रंग नीला होता है क्योंकि इनमें r-फाइकोसायनिन की मात्रा अधिक होती है ।
लाल शैवाल जब समुद्र की गहराई में होते हैं तो इनका रंग लाल होता है क्योंकि इनमें r-फाइकोएरीथ्रिन की मात्रा अधिक होती है ।
लाल शैवालों में जनन –
i. लाल शैवालों में कायिक जनन विखंडन विधि द्वारा होता है ।
ii. लाल शैवालों में अलैंगिक जनन अचल स्पोर (बीजाणु) द्वारा होता है ।
iii. लाल शैवालों में लैंगिक जनन अचल युग्मकों द्वारा होता है । लैंगिक जनन विषमयुग्मकी होता है और इसके पश्चात् निषेचनोत्तर विकास होता है ।