NCERT/CBSE Class 11 Biology chapter-3- Kingdom Plantae/Plant Kingdom in Hindi part-1
अध्याय-3
वनस्पति जगत
⦁ परिचय- 1969 में अमेरिकन वर्गीकी वैज्ञानिक व्हिटेकर ने सजीवों को पाँच जगत में वर्गीकृत किया । पादप जगत को सामान्य रूप से वनस्पति जगत भी कहते है । समय के अनुसार इस जगत के विषय में कई परिवर्तन आए है जैसे प्रारंभ में फंजाई ,मोनेरा एवं प्रोटिस्टा में कोशिका भित्ति के कारण पादप जगत में माना गया था । लेकिन अब इन्हें पृथक जगत माना जाता है । प्रारंभ में सायनोबैक्टिरिया को नील हरित शैवाल माना जाता था लेकिन अब इन्हें प्रोकेरियोट माना जाता है ।
पादप जगत के अन्तर्गत बहुकोशिकीय, यूकैरियोटिक ,प्रकाशसंश्लेषी जीव आते है । वर्गीकरण की की परंपरागत पद्धति (इश्चलर, 1883) में पादप जगत को दो उपजगतों अपुष्पीय पादप (Cryptogamae) और पुष्पीय पादप (Phanerogamae) में विभक्त किया गया है । अपुष्पीय पादपों के अंतर्गत शैवाल ,ब्रायोफाइटा व टेरिडोफाइट्स आते है । पुष्पीय पादपों (बीजयुक्त) में अनावृतबीजी (जिम्नोस्पर्म) और आवृतबीजी (एंजियोस्पर्म) पादप सम्मिलित है ।
इस अध्याय में पादप जगत के अन्तर्गत शैवाल, ब्रायोफाइटा , टेरिडोफाइट्स ,जिम्नोस्पर्म, एंजियोस्पर्म के बारे में पढ़ेगे ।
⦁ बीजयुक्त पादपों के वर्गीकरण की मूलभूत पद्धतियाँ –
1. कृत्रिम वर्गीकरण – प्रारंभिक वर्गीकरण में आकारिकी गुणों जैसे प्रकृति, रंग, पत्तियों की संख्या, आकृति आदि के आधार पर वर्गीकरण किया गया था ।
प्रारंभिक वर्गीकरण कायिक गुणों एवं पुमंग की रचना के आधार पर दिए गये थे । इन वर्गीकरणों को कृत्रिम वर्गीकरण माना जाता है । क्योंकि यहाँ बहुत ही समीप वाली संबंधित स्पीशीज (जातियों) को अलग कर दिया गया था । इसका कारण था कि ये वर्गीकरण बहुत ही कम गुणों पर आधारित थे ।
कृत्रिम वर्गीकरण में कायिक एवं लैंगिक गुणों को समान मान्यता दी गई थी यह अब स्वीकार्य नहीं है क्योंकि कायिक गुणों में प्रायः पर्यावरण के अनुसार परिवर्तन हो जाते है ।
कृत्रिम वर्गीकरण के उदाहरण –
i) अरस्तु का वर्गीकरण – पादपों को तीन समूहों वृक्ष , झाड़ी (Shrub) ,शाक (Herb) में वर्गीकृत किया ।
ii) थीयोफ्रस्ट्स का वर्गीकरण – इन्होंने वृद्धि स्वभाव के आधार पर पादपों को चार समूहों (वृक्ष, शाक, क्षुप, उपक्षुप) में बांटा ।
iii) केरोलस लीनियस का वर्गीकरण – इन्होंने पादप जगत को पुंकेसर एवं वृतिका के आधार पर 24 वर्गों में वर्गीकृत किया –
अ) 1-23 वर्ग – इनमें पुष्पीय पादप आते है । इनको पुंकेसरों की संख्या के आधार पर बांटा गया है । जैसे –
1. Monoandria (एकपुंकेसरी)
2. Diandria (द्विपुंकेसरी)
3. Triandria (त्रिपुंकेसरी)
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23. Polyandria (बहुपुंकेसरी)
ब) 24 वाँ वर्ग – इस वर्ग में अपुष्पीय पादप (क्रिप्टोगेमिया) आते है । इनमें पुंकेसर नहीं पाए जाते है अतः इन्हें ननएंड्रिया भी कहते है ।
लीनियस का वर्गीकरण पुमंग की संरचना पर आधारित था अतः इसे लैंगिक तंत्र का वर्गीकरण कहते है । इन्होंने अपने वर्गीकरण में निम्नलिखित लैंगिक लक्षणों का उपयोग किया था ।
a) पुंकेसर की संख्या
b) पुतंतुओं की लंबाई
c) पुंकेसरों का संलयन
2. प्राकृतिक वर्गीकरण – वर्गीकरण की वह पद्धति जो अनेक लक्षणों पर आधारित होती है । प्राकृतिक वर्गीकरण जीवों में प्राकृतिक संबंध तथा बाह्य गुणों के साथ-साथ भीतरी गुणों जैसे परा-रचना, शारीर, भ्रूण विज्ञान तथा पादप रसायन के आधार पर विकसित हुआ था । पुष्पीय पादपों के इस वर्गीकरण को जॉर्ज बेंथम तथा जोसेफ डॉल्टन हूकर ने सुझाया था ।
Note- स्वीडन के रहने वाले जूसूयू ब्रदर्स ने सबसे पहले प्राकृतिक वर्गीकरण दिया था ।
जॉर्ज बेंथम तथा जोसेफ डॉल्टन हूकर की वर्गीकरण पद्धति – इनकी वर्गीकरण पद्धति के मुख्य बिन्दू निम्न है –
i. बेंथम तथा हूकर की वर्गीकरण पद्धति A.P. De कंडोले के वर्गीकरण पद्धति का संसोधित रूप थी ।
ii. कंडोले ने जिम्नोस्पर्म को द्विबीजपत्री के साथ रखा जबकि बेंथम तथा हूकर ने अपनी वर्गीकरण पद्धति में जिम्नोस्पर्म को एकबीजपत्री तथा द्विबीजपत्री पौधों के बीच में रखा ।
iii. बेंथम तथा हूकर ने अपनी वर्गीकरण पद्धति में बीजधारी पादपों को निम्न लक्षणों जैसे शारीरिक लक्षण, पर्ण विन्यास, शिरा विन्यास, पुष्पचक्र, बीजों का आवरण तथा बीजपत्रों की संख्या के आधार पर तीन वर्गों- द्विबीजपत्री ,जिम्नोस्पर्म एवं एकबीजपत्री में बांटा ।
iv. बेंथम तथा हूकर की वर्गीकरण पद्धति में वास्तविक कुलों की संख्या 199 है ।
3. जातिवृतिय (फाइलोजिनेटिक) वर्गीकरण पद्धति – वर्तमान में जातिवृतिय वर्गीकरण पद्धति स्वीकार्य है तथा यह जीवों में विकासीय संबंधों पर आधारित होती है ।
उदाहरण –
i. आइजक तख्ताजन का वर्गीकरण
ii. A.W. माइटलर का वर्गीकरण
iii. एंगलर एवं फ्रेंटल का वर्गीकरण
iv. ऑसवॉल टिप्पों का वर्गीकरण
⦁ Taxonomy (वर्गीकी) की अन्य शाखाएँ
i) संख्यात्मक वर्गीकी (Numerical Taxonomy) – टेक्सोनोमी की वह शाखा जिसे अब सरलता से कम्प्यूरीकृत किया जा सकता है एवं जो सभी प्रेक्षण योग्य गुणों पर आधारित होती है ,संख्यात्मक वर्गीकी कहलाती है ।
संख्यात्मक वर्गीकी सांख्यिकीय विधियों द्वारा समानताओं और असमानताओं या आदिमता और सुधार (उन्नति) का मूल्यांकन करती है ।
न्यूमेरिकल टेक्सोनोमी का अन्य नाम Phenetic अथवा Adansohian हो सकता है ।
ii) कोशिका वर्गीकी (Cytotaxonomy) – टेक्सोनोमी की वह शाखा जिसमें भ्रांतियों को दूर करने के लिए कोशिका विज्ञान की सूचनाएँ जैसे गुणसूत्रों की संख्या ,गुणसूत्रों की रचना और समसूत्रीय व्यवहार आदि का अध्ययन किया जाता है ,कोशिका वर्गीकी कहलाती है ।
iii) रसायन वर्गीकी (Chemotaxonomy) – पादपों के विभिन्न रसायनिक पदार्थों जैसे अमीनो अम्ल, पोलीसेकेराड्स ,न्यूक्लिक अम्ल, वसीय अम्ल, प्रोटीन , डी.एन.ए. अनुक्रम , एल्केलाइड्स आदि का उपयोग करके वर्गीकरण करने की पद्धति को रसायन वर्गीकी कहते है ।
iv) कैरियोटेक्सोनोमी – यह वर्गीकी की सबसे आधुनिक शाखा है जो केन्द्रक तथा गुणसूत्र के लक्षण पर आधारित होती है । इस शाखा का मुख्य आधार गुणसूत्रों पर पट्टिए व्यवस्था होती है ।
⦁ एक व्यक्ति जो पौधों के उदगम ,विकास, विभिन्नता तथा वर्गीकरण का अध्ययन करता है क्लासिकल टेक्सोनॉमिस्ट कहलाता है ।
⦁ एल्फा-टेक्सोनॉमिस्ट उस व्यक्ति को कहते है जो कृत्रिम वर्गीकरण का अध्ययन करता है ।
⦁ बीटा-टेक्सोनॉमिस्ट उस व्यक्ति को कहते है जो प्राकृतिक वर्गीकरण का अध्ययन करता है ।
⦁ हर्बल टेक्सोनॉमिस्ट उस व्यक्ति को कहते है जो जड़ी-बूटियों का अध्ययन करता है ।