Hindi science

Cyanobacteria cell structure and Ecological importance in Hindi || water bloom or algal bloom

सायनोबैक्टिरिया (नील-हरित शैवाल)

सायनोबैक्टिरिया –
1. दो जगत प्रणाली के अनुसार इन जीवों को पहले शैवालों एक वर्ग साइनोफाइसी/मिक्सोफाइसी में सम्मिलित किया गया था । आधुनिक धारणा के अनुसार नील-हरित शैवाल प्रोकेरियोट प्रकृति के होते है । अतः इन्हें मोनेरा जगत के अन्तर्गत रखा गया है ।
2. जीवाणु नामकरण की अन्तर्राष्ट्रीय संहिता (International Code of Nomenclature of Bacteria) के आधार पर जीवाणु वैज्ञानिकों ने नील-हरित शैवाल का नाम सायनोबैक्टिरिया रखा है ।
3. ये जीवाणु (सायनोबैक्टिरिया) यूबैक्टिरिया से भिन्न ऑक्सीजेनिक प्रकाशसंश्लेषण दर्शाते है । अतः इन जीवाणुओं को पृथ्वी पर ऑक्सीजन उत्पन्न करने वाले प्रथम सजीव माना जाता है ।
4. इन जीवाणुओं में हरित पादपों की तरह क्लोरोफिल-a पाया जाता है ।
5. सायनोबैक्टिरिया सदैव नील-हरित नहीं होते है । उदाहरण- ट्राइकोडेस्मीयम ।

जीवाणु व सायनोबैक्टिरिया में समानता – सायनोबैक्टिरिया में कुछ ऐसे लक्षण पाए जाते है जो सायनोबैक्टिरिया को जीवाणुओं में सम्मिलित करने का समर्थन करते है । ये लक्षण निम्न है –
1. नील-हरित शैवाल एवं जीवाणु दोनों ही प्रोकेरियोटी कोशिका संरचना प्रदर्शित करते है ।
2. दोनों समूहों में केन्द्रक कला (nuclear membrane) ,केन्द्रिक (nucleolus) व परिबद्ध प्लैस्टिडों का अभाव होता है ।
3. जीवाणुओं के समान नील हरित शैवालों में भी कोशिका भित्ति के बाहर श्लेष्मीय आवरण पाया जाता है ।
4. अनेक नील हरित शैवालों में जीवाणुओं के समान आनुवांशिक पुनर्योजन (genetic recombination) पाया जाता है ।

सायनोबैक्टिरिया की कोशिकीय संरचना –

सायनोबैक्टिरिया की कोशिका प्रारूपिक प्रोकेरियोटी (typical prokaryotic) संरचना प्रदर्शित करती है । इसमें निम्न संरचनाएँ दिखाई देती है –
1. श्लेष्मी आच्छद (mucilagenous sheath) – कोशिका भित्ति एक पतली अथवा मोटी जिलेटनी आच्छद से ढ़की होती है । श्लेष्मीय आवरण तंतु की जल अवशोषण एवं जल धारण क्षमता बढ़ाते है ।
2. कोशिकाभित्ति (cell wall) – सायनोबैक्टिरिया की कोशिका भित्ति द्विस्तरीय होती है ।
अ) बाह्यकोशिका भित्ति – यह लाइपोपोलीसैकेराइड की बनी होती है ।
ब) आन्तरिक कोशिकाभित्ति – यह पेप्टीडोग्लाइकन की बनी होती है ।
3. कोशिकाद्रव्यी कला (Cytoplasmic membrane) – इन जीवों में कोशिका झिल्ली भी यूबैक्टिरिया की भाँति लाइपोप्रोटीन (लिपिड + प्रोटीन) की बनी होती है ।
4. कोशिकाद्रव्य (Cytoplasm) – नील-हरित शैवाल में कोशिकाद्रव्य को अध्ययन की दृष्टि से दो भागों में बाँटा गया है –
अ) क्रोमोप्लाज्म – इस भाग में गैस रिक्तिकाएँ तथा प्रकाशसंश्लेषी पट्टिलिकाएँ पाई जाती है । थाइलैकॉयड की सतह पर प्रकाशसंश्लेषी वर्णक पाए जाते है ।
ब) सेन्ट्रोप्लाज्म – इस भाग में आनुवांशिक पदार्थ पाया जाता है । केन्द्रक झिल्ली के अभाव में आनुवांशिक पदार्थ बिखरा रहता है ।
राइबोसोम 70S प्रकार के होते है ,जो क्रोमोप्लाज्म व सेन्ट्रोप्लाज्म दोनों में बिखरे रहते है ।
प्रोकेरियोट कोशिकाद्रव्य में झिल्ली युक्त कोशिकांगों का अभाव होता है लेकिन सायनोबैक्टिरिया में अपवाद स्वरूप थायलैकॉयड एवं गैस वेक्योल (गैस रिक्तिका) पाई जाती है ।
5. एल्फा व बीटा कणिकाएँ – सायनोबैक्टिरिया अपना भोजन का संग्रह एल्फा व बीटा कणिकाओं के रूप में करते है ।
एल्फा कणिकाएँ – ये सायनोफाइसियन स्टार्च की बनी होती है । यह संरचना की दृष्टि से ग्लाइकोजन के समान पदार्थ है ।
बीटा कणिकाएँ – ये वसा बिन्दूओं के बने होते है ।
6. न्युक्लियोड – आनुवांशिका पदार्थ(DNA) बिखरा रहता है , जिसे न्युक्लियोड कहते है । इसके चारों ओर केन्द्रक कला का अभाव होता है ।

सायनोबैक्टिरिया के विभिन्न रूप –
1. एककोशिकीय (unicelular) – कुछ नील-हरित शैवाल एकल कोशिका के रूप में भी पाए जाते है । उदाहरण – स्पाईरूलाइना (सिंगल सेल प्रोटीन = SCP)
2. निवही (Colonial) – कुछ नील-हरित शैवाल अनेक कोशिकाएँ बनाकर समूह में रहते है । उदाहरण – एनाबीना, माइक्रोसिस्टिस ।
इनकी निवह के चारों ओर श्लेष्म आच्छद होता है ।
3. तंतुमय नील-हरित शैवाल – कुल नील हरित शैवाल के शरीर में कई कोशिकाएँ एक कतार में व्यवस्थित होती है । नील हरित शैवाल के तंतु को ट्राइकोम कहते है । उदाहरण – ऑसिलैटोरिया, नॉस्टॉक

हेटेरोसिस्ट (Hetrocyst) – हेटेरोसिस्ट कुछ तंतुल सायनोबैक्टिरिया में पाई जाने वाली हल्की पीली रंग की अथवा अहरित विशिष्ट कोशिकाएँ होती है । इनकी कोशिका भित्ति अन्य कायिक कोशिकाओं की तुलना में अधिक मोटी होती है । इनमें जीवद्रव्य समांग(homogeneous) रूप से व्यवस्थित होता है । ये N2 स्थिरीकरण में सहायक होती है ।

सायनोबैक्टिरिया का आर्थिक एवं पारिस्थितिक महत्व ( economic and ecological importance of cyanobacteria) –
1. ये नाइट्रोजन स्थिरीकरण द्वारा मृदा को उपजाऊ बनाते है । उदाहरण – एनाबिना , नॉस्टॉक ।
2. ये पशुओं के लिए चारे के रूप में भी उपयोगी होते है । उदाहरण – स्पाईरूलाइना (71 प्रतिशत प्रोटीन प्राप्त ) ।
3. ये क्षारीय भूमि को अम्लीय पदार्थ के स्त्रावण द्वारा उसे उपजाऊ बना देते है ।
4. इनका प्रयोग हरी खाद के रूप में भी किया जाता है । उदाहरण – एनाबिना, स्पाईरूलाइना ।

जल प्रस्फुटन (Water bloom) अथवा एल्गल ब्लूम – यदि नील-हरित शैवाल पानी में जनसंख्या विस्फोट की स्थिति में पहुँच जाते है और विषैले पदार्थ स्त्रावित करते है तो जल में ऑक्सीजन की कमी होने लगती है और उसमें विभिन्न प्रकार के जीवाणु उत्पन्न हो जाते है ,जिससे उस पानी में उपस्थित जीवों जैसे मछलियों की संख्या कम होने लगती है । और पानी विशाख्त व बदबूदार हो जाता है । इस स्थिति को ही एल्गल ब्लूम कहते है ।

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