Cellular Structure and General Characters of Mycoplasma in Hindi || Mycoplasmal diseases of human beings
माइकोप्लाज्मा की कोशिकीय संरचना व सामान्य लक्षण
माइकोप्लाज्मा – ये जीवाणुओं से भी छोटे आमाप के जीव हैं । यद्यपि इनकी खोज पाश्चर द्वारा पशुओं के प्लुरोनिमोनिया (borine pleuropneumonia) रोग के रोगकारक के रूप में की गई । 1898 में फ्रांसीसी वैज्ञानिक नौकार्ड एंव रौक्स ने उन्हें संवर्धन माध्यम(जिसमें कार्बनिक पदार्थ प्रचुर मात्रा में हो ) में उगाने में सफलता प्राप्त की ।
इनका नाम प्लुरोनिमोनिया सदृश्य जीव (Pleuro Pneumonia Like Organisms = PPLO) रखा गया ।
माइकोप्लाज्मा के लाक्षणिक गुण –
1. ये ऐसे जीवधारी है जिनमें कोशिकाभित्ति बिल्कुल नहीं पाई जाती है । अतः इन्हे पादप जगत के जोकर भी कहते है ।
2. ये सबसे छोटी जीवित कोशिकाएँ है जो O2 के बिना भी जीवित रह सकती है (मीजोसोम के अभाव के कारण) ।
3. यह अचल ,एककोशिकीय, सूक्ष्मतम प्रोकेरियोटिक जीव हैं जिसकी कोशिका का व्यास 0.1माइक्रोमीटर से 0.3 माइक्रोमीटर होता है ।
4. ये प्रायः गोलाभ अथवा अण्डाकार समूह बनाते है । ये मिट्टी ,वाहितमल (sewage) , सड़े-गले पदार्थों तथा पौधों व प्राणियों में पाए जाते है ।
5. ये बहुरूपी (plemorphic) जीव है । जो गोलाभ ,तंतुल ,ताराकार अथवा अनियमित पिण्ड के रूप में मिलते है । इनका रूप प्रायः संवर्धन माध्यम की प्रकृति पर निर्भर करता है ।
6. ये परजीवी(parasitic) अथवा मृतजीवी(saprophytic) होते है ।
7. यह कोशिकाभित्ति पर क्रिया करने वाले ऐन्टिबायोटिक्स जैसे पेनिसिलिन, वेनकोमाइसीन, सिफेलोरीडीन आदि से प्रभावित नहीं होते है । परन्तु उपापचयी प्रक्रियोओं (metabolic processes) को प्रभावित करने वाले प्रतिजैविक (जैसे टेट्रासाइक्लीन) इन्हें प्रभावित करते है । ये ग्राम अभिरंजन (gram stain) के प्रति अनुक्रिया प्रदर्शित नहीं करते है (अर्थात् ग्राम नेगेटिव है) ।
माइकोप्लाज्मा की कोशिकीय संरचना –
1. इन जीवों के कोशिकाद्रव्य में राइबोसोम कणिकीय (ग्रेन्यूलर) रूप में पाए जाते है । राइबोसोम आमाप में जीवाणुओं के राइबोसोम से समानता दर्शाते है । इनका कोशिकाद्रव्य लिपोप्रोटीन की एकक झिल्ली से ढ़का होता है ।
2. इनमे दोनों प्रकार के न्युक्लिक अम्ल DNA (लगभग 4%) तथा RNA (लगभग 8%) पाए जाते है ।
3. कोशिका के मध्य भाग में प्रारंभिक केन्द्रक (न्युक्लियोड) पाया जाता है ।
4. माइकोप्लाज्मा संरचना में L- Form जीवाणुओं के समान होते है ।
NOTE- L-रूपी जीवाणु एवं माइकोप्लाज्मा में मुख्य अन्तर यह है कि पोषण की अनुकूलतम परिस्थितियों में L-रूपी जीवाणु अपने चारों ओर कोशिका भित्ति विकसित कर लेते है जबकि माइकोप्लाज्मा में कभी-भी कोशिका भित्ति का निर्माण नहीं होता है ।
कुछ महत्वपूर्ण माइकोप्लाज्मीय रोग (some important mycoplasmal diseases) – पौधों व प्राणियों के कुछ भयंकर रोग माइकोप्लाज्मा के द्वारा होते है ।
I. जानवरों के माइकोप्लाज्मीय रोग (mycoplasmal diseases of animals) –
क्रं.सं. | रोग | रोगकारक |
1. | गौ-प्लुरोनिमोनिया | माइकोप्लाज्मा माइक्रोइडिस |
2. | पशुओं का जननांग शोथ | माइकोप्लाज्मा बोवीजैनिटेलियम |
3. | भेड़, बकरी का ऐगैलैक्टिया | माइकोप्लाज्मा एगैलेक्टी |
II. मनुष्य के माइकोप्लाज्मीय रोग (Mycoplasmal diseases of human beings) – रोगजनक माइकोप्लाज्मा (pathogenic mycoplasma) मनुष्यों के श्वसन तंत्र (respiratory system) ,केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र (central nervous system) , जननमूत्रांगों (urinogenitals) व हृदय वाहिका तंत्र (cardio vescular system) को प्रभावित करते है ।
माइकोप्लाज्मा निमोनी से अप्रारूपिक निमोनिया व श्वसन तंत्र के अन्य रोग होते है । जबकि माइकोप्लाजमा होमिनिस , जननांग शोथ व प्लूरोनिमोनिया का कारक है ।
III. पौधों के माइकोप्लाज्मीय रोग (Mycoplasmal diseases of Plants) –
1. बैंगन का लघुपर्ण रोग (little leaf diseases of brinjal)
2. वामनित क्लोवर (clover dwarf)
3. क्लोवर पर्णाभता (clover phyllody)
4. क्लोवर हरीतिमागन (clover virescence)
5. पपीते का गुच्छित चूड़ (bunchy top of papaya)
NOTE- विभिन्न प्रकार के रोगकारकों का साइजक्रम
माइकोप्लाज्मा >विरियोन(पूर्ण वायरस)> विरियोइड> प्रायोन
माइकोप्लाज्मा की प्रकृति (Nature of mycoplasma) – माइकोप्लाज्मा ऐसे माध्यम में वृद्धि कर सकते है जिसमें जीवित कोशिकीय पूर्णतः अनुपस्थित हों । ये अनेक प्रकार के ऐसे फिल्टरों से ,जिसमें जीवाणु कोशिका नहीं निकल सकती है , निकल सकते है । इन दो लक्षणों के आधार पर इन्हें जीवाणु एवं विषाणुओं के बीच का जीव माना जाता है । रासायनिक लक्षणों में माइकोप्लाज्मा जीवाणु की अपेक्षा विषाणुओं से अधिक बंधुता (affinity) दर्शाते हैं ।