Hindi science

Classification of Kingdom Monera in Hindi

मोनेरा जगत (Kingdom Monera)

मोनेरा जगत (Kingdom Monera) – सभी प्रोकेरियोटिक जीव मोनेरा जगत के अन्तर्गत आते है । जीवाणु सूक्ष्मजीवों में सबसे अधिक संख्या में होते है । और लगभग सभी स्थानों पर पाए जाते है । मुट्ठी भर मिट्टी में सेकड़ों जीवाणु पाए जाते है ।
जीवाणु प्रतिकूल आवासों मे भी पाए जाते है । जैसे गर्म पानी के झरनों में, मरूस्थल में , बर्फ में , गहरे समुद्र में इत्यादि ।

प्रोकेरियोटिक जीवों के उदाहरण – आद्यबैक्टिरिया(पुरातन जीवाणु ), यूबैक्टिरिया (सत्य जीवाणु ) , सायनोबैक्टिरिया ( ब्लू ग्रीन एल्गी ) (नील हरित शैवाल ) , माइकोप्लाज्मा, एक्टिनोमाइसीटीज ,रिकेट्सी , क्लैमाइडी ।

1. बैक्टिरिया – आकृति के आधार पर जीवाणुओं को चार समूहों गोलाकार (कोकस, बहुवचन कोकाई) , छड़ाकार (बैसिलस , बहुवचन बैसिलाई ) , कॉमा आकार (विब्रियम , बहुवचन विब्रिया) तथा सर्पिलाकार (स्पाइरिलम , बहुवचन स्पाइरिला ) आदि में बांटा गया है ।
बैक्टिरिया संरचना में अत्यंत सरल प्रतीत होते है परन्तु इनका व्यवहार अत्यंत जटिल होता है । चयपचाय (उपापचय) की दृष्टि से अन्य जीवधारियों की तुलना में बैक्टिरिया में बहुत अधिक विविधता पाई जाती है ।
1.1 आद्यबैक्टिरिया – i) ये विशिष्ट प्रकार के बैक्टिरिया होते है । यह प्राचीनतम जीवाणुओं का समूह है । उद्विकास की दृष्टि से ये सबसे आदिम है । और अपने आदिम लक्षणों के साथ आज भी उपस्थित है । इन्हें सबसे पराने जीवित जीवाश्म माना जाता है ।
ii) ये जीवाणु पृथ्वी पर सबसे पहले उत्पन्न हुए थे और इनमें अविकल्पी अनॉक्सी श्वसन पाया जाता है ।
iii) इन जीवाणुओं की कोशिका भित्ति की संरचना अन्य यूबैक्टिरिया से भिन्न होती है । यही लक्षण इन्हें प्रतिकूल अवस्थाओं {जैसे अत्यंत लवणीय क्षेत्र (हेलोफी) , गर्म झरनों (थर्मोएसिडोफिलस), कच्छ क्षेत्र (मेथेनोजेन) आदि } में जीवित रहने के लिए उत्तरदायी है ।
यहाँ कोशिका भित्ति पेप्टीडोग्लाइकन की बजाय जटिल पॉलीसैकेराइड तथा पॉलीपेप्टाइड की बनी होती है ।
iv) मेथेनोजेन अनेक रूमिनेंट पशुओं (जैसे गाय एवं भैंस) के आंत्र में पाए जाते है तथा इनके गोबर से मिथेन (जैव गैस ) का उत्पादन करते है ।
उदाहरण – थर्मोकोकस , मिथेनोकोकस, मिथेनोबैक्टिरियम
पुरातन जीवाणुओं के प्रकार –
a. हेलोफिलस – ये अत्यधिक लवणीयताा वाले स्थानों पर पाए जाते है । उदाहरण – हेलोबैक्टिरिया , हेलोकोकस
b. मिथेनोजन्स – ये दलदल अथवा कच्छ क्षेत्र में पाए जाते है । ये जीवाणु गोबर का किण्वन करके मिथेन गैस (जैव गैस ) का उत्पादन करते है ।
उदाहरण – मिथेनोबैक्टिरियम , मिथेनोकोकस, रूमीनोकोकस
c. थर्मोएसिडोफिल्स – ये गर्म पानी के गंधयुक्त झरनों में पाए जाते है । ये रसायन स्वपोषी होते है । इनमें अपवाद स्वरूप विकल्पी वायुवीय स्वसन भी पाया जाता है । उदाहरण – थर्मोप्लाज्मा, सल्फोलोगस

1.2 यूबैक्टिरिया – इन्हें सत्य जीवाणु भी कहते है । इनकी पहचान एक कठोर कोशिका भित्ति एवं एक कशाभ (फ्लैजेलम) (चल बैक्टिरिया) द्वारा की जाती है ।
एन्टोनवॉन ल्यूवेहन हॉक ने सबसे पहले जीवाणुओं का परीक्षण बर्षात् के ठेहरे हुए पानी और दांतों के मैल( स्कम) में किया था । इन्होने ने इसे एनिमल क्यूल (animal cule) नाम दिया ।
परपोषी बैक्टिरिया प्रकृति में बहुलता से पाए जाते है । और इनमें अधिकतर मह्त्वपूर्ण अपघटक होते है । ये दूध से दही बनाने में , प्रतिजैविकों के उत्पादन में , लेग्यूम पादपों की जड़ों में नाइट्रोजन स्थिरीकरण में सहायता करते है ।
बैक्टिरिया में जनन – बैक्टिरिया प्रमुख रूप से कोसिका विभाजन द्वारा प्रजनन करते है । कभी- कभी विपरीत परिस्थितियों में ये बीजाणु बनाते है । ये लैंगिक प्रजनन भी करते है ,जिसमें एक बैक्टिरिया से दूसरे बैक्टिरिया में DNA का पुरातन स्थानांतरण करते है ।

2. सायनोबैक्टिरिया – इन्हों नील हरित शैवाल भी कहते है । इनमें हरित पादपों की तरह क्लोरोफिल-ए पाया जाता है तथा ये प्रकाश संश्लेषी स्वपोषी होते है ।


सायनोबैक्टिरिया की कोलोनी प्रायः जैलीनुमा आवरण से ढ़की रहती है जो प्रदूषित जल में बहुत फलते-फूलते है । सायनोबैक्टिरिया जैसे नॉस्टॉक एवं एनाबीना पर्यावरण के नाइट्रोजन को हेटरोसिस्ट नामक विशिष्ट कोशिकाओं द्वारा स्थिर कर सकते है ।
सायनोबैक्टिरिया के विभिन्न रूप –
i) एककोशिकीय (unicelular) – इनमें एकल कोशिका ही जीव की भाँति व्यवहार करती है । उदाहरण – स्पाईरूलिना (सिंगल सेल प्रोटीन = SCP)
ii) कोलोनियल (निवही ) – कुछ नील हरित शैवाल अनेक कोशिकाएँ बनाकर समूह बनाते है । उदाहरण – एनाबीना
iii) फिलामेंटशीय (तंतुमय) – कुछ नील हरित शैवाल में कई कोशिकाएँ एक कतार में व्यवस्थित होकर तंतुमय संरचना बनाती है । नील हरित शैवाल के तंतु को ट्राइकोम कहते है ।

3. माइकोप्लाज्मा –


i. ये ऐसे जीवधारी है जिनमें कोशिकाभित्ति बिल्कुल नहीं पाई जाती है । अतः इन्हें पादप जगत के जोकर भी कहते है ।
ii. ये सबसे छोटी जीवित कोशिकाएँ हैं जो ऑक्सीजन के बिना भी जीवित रह सकती है (मीजोसोम के अभाव के कारण)
iii. अनेक माइकोप्लाज्मा पादप एव प्राणियों के लिए रोगजनक होते है ।
iv. ये अचल , एककोशिकीय, सूक्ष्मत्तम प्रोकेरियोटिक जीव है ।

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