Hindi science

Classification of Fungi in Hindi

कवकों का वर्गीकरण 

⦁ कवकों का वर्गीकरण – कवकजाल की आकारिकी , बीजाणु बनने तथा फलनकाय बनने की विधि के आधार पर कवकों को चार प्रमुख वर्गों में बांटा गया है –
1. फाइकोमाइसीटीज
2. ऐस्कोमाइसीटीज
3. बेसिडियोमाइसीटीज
4. ड्यूटिरोमाइसीटीज
चारों वर्गों का तुलनात्मक अध्ययन निम्न सारणी में दर्शाया गया है –

क्र.सं. लक्षण फाइकोमाइसीटीज ऐस्कोमाइसीटीज बेसिडियोमाइसीटीज ड्यूटिरोमाइसीटीज
1. एकान्तरित नाम शैवालीय कवक (जलीय कवक) थैलीनुमा कवक(शैक फंजाई) कलम्ब (मुग्धर) फंजाई फंजाई इम्प्रफेक्टाइल (अपूर्ण कवक)
2. आवास एवं पोषण यह जलीय आवासों में पायी जाती है । यह अपघटित होती हुई लकड़ी (नम एवं गीले स्थानों) में पायी जाती है । यह पादपों पर अविकल्पी परजीवी के रूप में पायी जाती है । यह स्थलीय आवासों में पायी जाती है । यह अपघटक ,मृतजीवी, परजीवी अथवा शमलरागी( पशु विष्टा पर उगने वाली) के रूप में पाई जाती है । यह स्थलीय आवासों में पायी जाती है । यह लकड़ी के लठ्ठों (लॉग्स) ,वृक्षों के तने में और पादप शरीर में परजीवी के रूप में पाई जाती है । स्थलीय आवासों में पायी जाती है । इस वर्ग के कुछ सदस्य मृतोपजीवी या परजीवी होते है अथवा अनेकों सदस्य लिटर (करकट) निर्माण और खनिज चक्रण में सहायता करते है ।
3. कवकजाल की प्रकृति कवकजाल पट् रहित एवं बहुकेन्द्रकीय (सीनोसाइटिक) होता है । कवकजाल पट्युक्त ,शाखित, द्विकेन्द्रकी(डाइकेरियोटिक = n + n) होता है । कवकजाल पट्युक्त ,शाखित, द्विकेन्द्रकी(डाइकेरियोटिक = n + n) होता है । कवकजाल पट्युक्त (सेप्टेट) , शाखित , एककेन्द्रकीय एवं बहुकेन्द्रकीय होता है
4. अलैंगिक जनन यह प्रक्रिया चल बीजाणु एवं अचल बीजाणु द्वारा होती है । ये बीजाणु ,बीजाणुधानी में अन्तर्जात रूप में बनते है । यह प्रक्रिया कोनेडिया द्वारा होती है । इनका निर्माण विशिष्ट कवकजाल पर बहिर्जात रूप से होता है । अलैंगिक बीजाणु नहीं पाए जाते है लेकिन कायिक जनन खण्डन द्वारा होता है । इस वर्ग में जनन की यह मुख्य विधि है यहाँ बनने वाले अलैंगिक बीजाणुओं को कोनिडिया कहते है ।
5. लैंगिक जनन युग्मकों के संलयन से जाइगोस्पोर (युग्माणु ) का निर्माण होता है । युग्मक आकारिकी में एक समान होते है तो संलयन की इस प्रक्रिया को आइसोगेमी कहते हैं । और जब युग्मक आकारिकी में भिन्न-भिन्न होते है तो संलयन की इस प्रक्रिया को असमयुग्मकी अथवा विषमयुग्मकी कहते है । लैंगिक बीजाणुओं को एस्कोस्पोर कहते है । जो थैलीनुमा संरचना में अन्तर्जात रूप से बनते है । लैंगिक अंग अनुपस्थित होते है । लेकिन प्लाज्मोगेमी द्वारा दो भिन्न विभेद के कवकतंतुओं में संलयन होता है और एक द्विकेन्द्रकी संरचना बनती है ,जिसे बेसिडियम कहते है । बेसिडियम में केन्द्रक संलयन तथा मिऑसिस होता है जिसके कारण चार बेसिडियम बीजाणु बनते है । बेसिडियम बीजाणु बेसिडियम पर बहिर्जात रूप से उत्पन्न होते है । बेसिडियम फलनकाय में लगे रहते है जिसे बेसिडियोकार्प कहते है । लैंगिक जनन का अभाव का होता है । अतः इस वर्ग को अपूर्ण कवक (फंजाई इम्प्रफेक्टाइल) कहते है । यह कवकों का विकसित वर्ग है । और इसमें लैंगिक जनन अनुपस्थित होने के कारण हम कह सकते है कि कवकों में प्रतिगामी (रिट्रोग्रेसिव) लैंगिक जनन पाया जाता है ।
6. उदाहरण म्यूकर , राइजोपस (रोटी वाले कवक) , एल्बूगोकेन्डीडा (सिस्टोपसकेन्डीडा अथवा white rust) ऐस्पर्जिलस , क्लेवीसेप , न्यूरोस्पोरा (ड्रोसोफिला ऑफ प्लान्ट किंगडम) , पेनिसिलियम , सेक्रोमाइसीज( यीस्ट = एककोशिकीय कवक) , मॉरल व बफल खाने योग्य सुस्वादु कवक है । एगैरिकस(मशरूम) , ऑस्टिलेगो (कंड) , पक्सिनिया (किट्ट फंगस) , ब्रेक्टफंजाई व पफबॉल । आल्टरनेरिया , कोलियोट्राइकम , ट्राइकोडर्मा
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