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Kingdom Fungi in Hindi || कवक (फंजाई) जगत

⦁ कवक (फंजाई) जगत – इस जगत में ऐसे जीव आते है जिनमें काइटिन की कोशिकाभित्ति पाई जाती है । कवकों की आकारिकी एवं आवासों में भिन्नता पाई जाती है ।
विज्ञान की वह शाखा जिसमें कवकों का अध्ययन किया जाता है , उसे माइकोलॉजी कहते है ।
सदाशिवन भारत के प्रसिद्ध कवकविज्ञानी है ।
P.A. माइकेली को माइकोलॉजी के पितामाह माना जाता है ।
बॉसपर्डबॉहिनी ने फंजाई नाम दिया था । भारत में माइकोलॉजी के पितामाह E.J. बटलर है ।
कवकों का आवास –
1. ये जीव उस मिट्टी में अधिक पाए जाते है जिसमें ह्यूमस की मात्रा अधिक होती है । नमी की स्थिति में कवक चमड़े के सामान , लकड़ी के टुकड़ों , आचार , ब्रेड इत्यादि पर उग जाते है । कुछ कवक पादप , जंतुओं तथा मनुष्यों में परजीवी के रूप में पाई जाती है ।
2. सरसों की पत्तियों पर सफेद धब्बे परजीवी कवक (एल्बूगोकेन्डीडा) के कारण पाए जाते है ।
3. कुछ एककोशिक कवकों का उपयोग डबलरोटी एवं बीयर बनाने में किया जाता है । उदाहरण – सेक्रोमाइसिस सेरीविसी
4. रोटी या संतरे के सड़ने की प्रक्रिया फंजाई के कारण होती है ।
5. कवक विश्वव्यापी है और ये वायु ,जल , मिट्टी में तथा जन्तु एवं पादपों पर पाए जाते है । ये जीव नम तथा गरम स्थानों पर सरलता से उग जाते है ।
6. कुछ कवक , शैवाल के साथ सहजीवी के रूप में पाए जाते है ऐसे दोहरे जीव को लाइकेन कहते है ।
7. कुछ कवक उच्च पादप (पाइनस) की जड़ों के साथ सहजीवी संबंध दर्शाते है , इसे माइकोराइजिया (कवकमूल) कहते है ।

NOTE- भोजन को जीवाणु तथा कवकों से खराब होने से बचाने के लिए रेफ्रिजरेटर में रखा जाता है । रेफ्रिजरेटर में निम्न ताप पर जीवाणु तथा कवक में उपस्थित एंजाइम निष्क्रीय हो जाते है और भोजन खराब नहीं होता है ।

कवकों में पोषण- कवकों में हरितलवक अनुपस्थित होते है अर्थात् ये विषमपोषी होते है । कवकों में संचित भोजन जंतुओं की भांति ग्लाइकोजन होता है । भोजन के स्रोत के आधार पर कवक दो प्रकार के होते है –
1. मृतोपजीवी कवक – ये कवक अपना भोजन मृत कार्बनिक पदार्थों जैसे ब्रेड, सड़े हुए फल एवं सब्जियों , गोबर इत्यादि से प्राप्त करते है । इनमें पोषण अवशोषणी या परासरणीय विधि से होता है ।
2. परजीवी कवक – ये अपना भोजन जीवित जीवों जैसे पादप ,जंतु एवं मनुष्यों से प्राप्त करते है । ये कवक रोग उत्पन्न करते है । परजीवी कवक अपना पोषण चूसकांगों के द्वारा प्राप्त करते है ।
कवकों की आकारिकी (Morphology) – कवक के शरीर को माइसिलियम (कवक जाल) कहते है । माइसिलियम एक जालनुमा संरचना है जो कई सारे कवक तंतुओं के मिलने से बनती है । कवक तंतु को कवक की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई कहते है ।
कवक तंतु के चारों ओर कोशिका भित्ति पाई जाती है जो काइटिन की बनी होती है । काइटिन के साथ कुछ मात्रा में सेल्युलोज, प्रोटीन एवं लिपिड पाए जाते है ।

अधिकांश कवक विषम जालिक होते है । कवक तंतु सतत् नलिकाकार होते है जिनमें बहुकेन्द्रकीय कोशिकाद्रव्य भरा होता है जिन्हें सिनोसाइटिक कवक तंतु कहते है ।
कवक जाल के आधार पर कवक दो प्रकार के होते है –
1. विषमजालिक (हिटरोथैलिक) कवक – वे जातियाँ जिनमें निषेचन आनुवांशिक रूप से भिन्न युग्मकों के मध्य होता है अर्थात् निषेचित होने वाले युग्मक अलग-अलग कवक जाल पर बनते है, विषमजालिक कवक कहलाते है ।
उदाहरण – म्यूकर, राइजोपस, पक्सिनिया
2. समजालिक (होमोथैलिक) कवक – वे जातियाँ जिनमें निषेचन आनुवांशिक रूप से समान जातियों के मध्य होता है अर्थात् निषेचित होने वाले युग्मक एक ही कवकजाल पर बनते है उन्हें समजालिक कहते है । उदाहरण – कीटोमियम

कवकों में जनन – कवकों में कायिक जनन , अलैंगिक जनन व लैंगिक जनन पाया जाता है ।
1. कायिक जनन – यह निम्न प्रकार का होता है –
i) खण्डन (फ्रेग्मेंटेशन) – जब माइसिलियम किसी भी कारण से छोटे-छोटे टुकड़ों में टूट जाता है तो प्रत्येक टुकड़ा एक नये कवक तंतु या पूर्ण कवक का निर्माण कर लेता है , इसे ही खण्डन कहते है ।
ii) मुकुलन विधि – जब कवक में कलिका के समान उभार बनता है तो यह कलिका मातृ कवक से अलग होकर एक नये कवक के रूप में कार्य करने लगती है । इस प्रक्रिया में मातृकोशिका का अस्तित्व समाप्त नहीं होता है । उदाहरण – सेक्रोमाइसीज (यीस्ट)
iii) विखण्डन (fistion) – जब कवक कोशिका बीच में से दो भागों में विभक्त हो जाती है , साथ ही इनका केन्द्रक दो भागों में बंट जाता है । तो इसे विखण्डन कहते है । उदाहरण – साइजोसेक्रोमाइसीज
2. अलैंगिक जनन – यह प्रक्रिया विभिन्न प्रकार के बीजाणुओं जैसे स्पोरेंजियोस्पोर , चल बीजाणु (जूस्पोर) , अचल बीजाणु (Aplanospore) तथा कोनेडिया द्वारा होता है । कोनेडिया का निर्माण सीधे कवक तंतु पर बहिर्जात रूप से होता है । प्रत्येक कोनेडिया अंकुरित होकर एक नये कवक तंतु का निर्माण करता है ।
3. लैंगिक जनन – यह जनन निषिक्तांड(ऊस्पोर) , ऐस्कस बीजाणु तथा बेसिडियम बीजाणु द्वारा होता है । विभिन्न बीजाणु सुस्पष्ट संरचनाओं में उत्पन्न होते है , जिन्हें फलनकाय कहते है । लैंगिक चक्र में निम्नलिखित तीन सोपान होते है –
i) प्लाज्मोगेमी – दो चल अथवा अचल युग्मकों के प्रोटोप्लाज्म का संलयन होना प्लाज्मोगेमी कहलाता है ।
ii) केरियोगेमी – दो केन्द्रकों का आपस में संलयित हो जाना , केरियोगेमी कहलाता है ।
iii) अर्द्धसूत्री (मिऑसिस) विभाजन – युग्मनज में अर्द्धसूत्री विभाजन के कारण अगुणित बीजाणु बनते है जो अंकुरण के पश्चात् नए माइसिलियम का निर्माण करते है ।
लैंगिक जनन में संयोज्य संगम के दौरान दो अगुणित कवक तंतु पास-पास आते है और संलयित हो जाते है । इस संलयन के तुरंत बाद एक द्विगुणित (2n) कोशिका बन जाती है । जबकि अन्य फंजाई जैसे ऐस्कोमाइसीटीज तथा बेसिडियोमाइसीटीज में एक मध्यवर्ती द्विकेंद्रकी अवस्था (n+n) अर्थात् एक कोशिका में दो केंद्रक बनते है । ऐसी परिस्थिति को केन्द्रक युग्म (Dikaryon) कहते है तथा इस अवस्था को फंगस की द्विकेन्द्रकी प्रावस्था (Dikaryophase) कहते है । बाद में पैतृक केन्द्रक संलयित हो जाते है और कोशिका द्विगुणित बन जाती है । फंजाई फलनकाय बनाती है जिसमें न्यूनीकरण (अर्द्धसूत्री) विभाजन होता है जिसके कारण अगुणित बीजाणु बनते है ।

कवकों का वर्गीकरण –   Classification of fungi

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