Chapter-16 -Management of Natural Resources 10th class ncert/cbse science notes in Hindi part-2
⦁ वन एवं वन्य जीवों के संरक्षण में विभिन्न समुदायों की भूमिका –
1. विश्नोई समुदाय के लोगों की भूमिका – राजस्थान के विश्नोई समुदाय के लिए वन एंव वन्य प्राणियों का संरक्षण करना उनके धार्मिक अनुष्ठान का भाग बन गया है । भारत सरकार ने पिछले दिनों जीव संरक्षण हेतु अमृतादेवी विश्नोई राष्ट्रीय पुरूस्कार की व्यवस्था की है । यह पुरूस्कार अमृतादेवी विश्नोई की स्मृति में दिया जाता है जिन्होंने 1731 में राजस्थान के जोधपुर के पास खेजराली गाँव में खेजरी वृक्षों को बचाने हेतु 363 लोगों के साथ अपने आपको बलिदान कर दिया था ।
2. चिपको आन्दोलन – यह आन्दोलन हिमालय की ऊँची पर्वत श्रृंखला में गढ़वाल के रेनी नामक गाँव में एक घटना से 1970 के प्रारंभिक दशक में हुआ था । यह विवाद लकड़ी के ठेकेदार एंव स्थानीय लोगों के बीच प्रारंभ हुआ था । वहाँ की महिलाओं ने बिना किसी डर के पेड़ों को अपनी बाँहों में भरकर (चिपक कर) ठेकेदार के आदमियों को वृक्ष काटने से रोका । अंततः ठेकेदार को अपना काम बंद करना पड़ा । यह आंदोलन चिपको आन्दोलन के नाम से प्रसिद्ध है ।
3. स्थानीय समुदाय की सहमति एवं सक्रिय भागीदारी से 1983 तक अराबाड़ी का सालवन समृद्ध हो गया तथा पहले से बेकार कहे जाने वाले वन का मूल्य 12.5 करोड़ आँका गया ।
⦁ जल संग्रहण – भारत में जल संग्रहण करना बहुत ही पुरानी संकल्पना है । भारत में जल का संग्रहण विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न प्राचीन जल संग्रहण प्रणालियों से किया जाता है ,जिसे निम्न सारणी से समझ सकते है –
क्रं.सं. | राज्य का नाम | प्राचीन जल संग्रहण प्रणाली |
1. | राजस्थान | खादिन, बड़े पात्र, नाड़ी |
2. | महाराष्ट्र | बंधारस, ताल |
3. | जम्मू एवं कश्मीर | तालाब, कुल |
4. | कर्नाटक | कट्टा |
5. | उत्तरप्रदेश | बंधिश |
6. | हिमाचल प्रदेश | कुल्ह |
7. | बिहार | अहार, पाइन |
⦁ कुल्ह – लगभग 400 वर्ष पूर्व हिमाचल प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में नहर सिंचाई की स्थानीय प्रणाली (व्यवस्था) का विकास हुआ । इन्हें कुल्ह कहा जाता है ।
⦁ खादिन – खादिन जल संग्रहण की पारंपरिक विधि है ,जो भारत के राजस्थान राज्य में कृषि के उपयोग में लाई जाती है ।
खादिन विधि द्वारा जल संग्रहण से सूखे की समस्या पर काबू पाया जा सकता है, क्योंकि इस विधि के द्वारा पानी की बूँद-बूँद का संरक्षण किया जाता है । इससे भू-जल स्तर बढ़ जाता है । वस्तुतः खादिन ढ़ालू खेत के निचले भाग में निर्मित काफी लंबा मिट्टी का बना तटबंध होता है । आवाह क्षेत्र में जल ढलानों पर नीचे की ओर बहता है और बंध द्वारा रूककर जलाशय बना लेता है । एकत्र जल की कुछ मात्रा को कुएँ बनाकर भूमि में प्रवेश करा दिया जाता है । इन जलाशय के सूखने पर भी इनमें काफी नमी होती है , जहाँ फिर कृषि की जाती है ।
⦁ बाँध बनाने में समस्याएँ – आज के युग में बड़े स्तर पर जल का संग्रहण बाँध बनाकर किया जाता है । बाँधों में जल संग्रहण करके किसानों और लोगों की जल की मांग की आपूर्ति की जा सकती है । बाँध बनाने के लिए एक बहुत बड़े क्षेत्र की आवश्यकता होती है । बाँध बनाने में निम्न समस्याएँ आती है –
1. सामाजिक समस्याएँ – बड़े बाँध बनने से बड़ी संख्या में किसान और आदिवासी विस्थापित होते है और इन्हें मुआवजा भी नहीं मिलता है ।
2. आर्थिक समस्याएँ – बड़े बाँध बनने से जनता का अधिक धन लगता है और उस अनुपात में लाभ अपेक्षित नहीं है ।
3. पर्यावरणीय समस्याएँ – बड़े बाँध बनने से बड़े स्तर पर वनों का विनाश होता है तथा जैव विविधता की क्षति होती है ।
⦁ भौम जल – भूमि के अन्दर उपस्थित जल के स्रोत को भौम जल कहते है ।
भौम जल के लाभ –
1. यह वाष्प बनकर उड़ता नहीं है परन्तु यह आस-पास में फैल जाता है ।
2. बड़े क्षेत्र में वनस्पति को नमी प्रदान करता है ।
3. इससे मच्छरों के जनन की समस्या भी नहीं होती है ।
4. भौम जल मानव एवं जन्तुओं के अपशिष्टों से संदूषित होने से अपेक्षाकृत सुरक्षित रहता है जबकि इसके विपरीत झीले व तालाब संदूषित हो जाते है ।
⦁ जीवाश्मी ईंधन – भूमि में उथल-पुथल से जीव व पेड़ -पौधे भूमि में दब जाते है और लाखों वर्षों में ये कोयला , पेट्रोलियम आदि में परिवर्तित हो जाते हैं ,इन्हें ही जीवाश्मी ईंधन कहते है ।
इनकी मात्रा सीमित है और इनके दहन से पर्यावरण प्रदूषित होता है इनको जलाने से विषैली गैसे जैसे नाइट्रोजन के ऑक्साइड व सल्फर के ऑक्साइड बनते है । अगर ये अपर्याप्त ऑक्सीजन की उपस्थिति में जले तो ये कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) उत्पन्न करते है । अतः इनके विवेकपूर्ण ढ़ंग से उपयोग करने की आवश्यकता है ।
⦁ ऊर्जा की खपत – आज के समय में जनसंख्या वृद्धि के साथ ही ऊर्जा की खपत की मांग भी बढ़ती जा रही है । अगर इस ओर ध्यान नहीं दिया गया तो मनुष्य का जीवन संकटमय हो जायेगा । अतः आवश्यक है कि ऊर्जा का विवेकपूर्ण ढ़ंग से उपयोग किया जाये । हम निम्न उपाय अपनाकर ऊर्जा की खपत को कम कर सकते है –
1. स्वयं के वाहन (मोटर साइकिल, स्कूटर) आदि के स्थान पर बस में यात्रा करना एवं पैदल या साइकिल से चलना ।
2. बल्ब के स्थान पर फ्लोरोसेंट ट्यूब का प्रयोग करना चाहिए ।
3. लिफ्ट के स्थान पर सीढ़ियों का उपयोग करना ।
4. सर्दी में हीटर आदि का प्रयोग न कर अतिरिक्त स्वेटर पहनना ।
⦁ IUCN का पूरा नाम – International Union for Conservation of Nature and Natural Resources (प्रकृति एवं प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण हेतु अन्तर्राष्ट्रीय संघ )
⦁ जल संभर प्रबंधन में मिट्टी एवं जल संरक्षण पर जोर इसलिए दिया जाता है ताकि जैव मात्रा उत्पादन में वृद्धि हो सके ।
⦁ सामाजिक वानिकी (Social forestry) – वन संरक्षण के लिए जन सहयोग हेतु एक अभिनव योजना प्रारंभ की गई जिसे सामाजिक वानिकी कहते है । इसके अन्तर्गत वृक्षों को लगाने व उनकी सुरक्षा से संबंधित कार्यक्रम किये जाते है ।
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