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Chapter-16 -Management of Natural Resources 10th class ncert/cbse science notes in Hindi part-1

अध्याय-16

प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन

⦁ संसाधन – मानव की भौतिक ,आर्थिक ,सांस्कृतिक आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाले तत्व संसाधन कहलाते है ।
⦁ प्राकृतिक संसाधन – प्रकृति से प्राप्त ऐसे संसाधन जो मानव की भौतिक ,आर्थिक एवं सांस्कृतिक आवश्यकताओं की पूर्ति करने में सक्षम हो ,प्राकृतिक संसाधन कहलाते है । जैसे – वन, जल स्रोत, कोयला , पैट्रोलियम आदि ।
इन प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग आवश्यकतानुसार करना चाहिए अन्यथा ये अति दोहन के कारण शीघ्र ही समाप्त हो जायेंगे और मानव का जीवन अस्थ-व्यस्थ हो जायेगा ।
⦁ गंगा प्रदूषण – गंगा हिमालय में स्थित अपने उद्गम गंगोत्री से बंगाल की खाड़ी में गंगा सागर तक 2500 किलोमीटर तक की यात्रा करती है । इसके प्रदूषण के निम्न कारण है –
1. इसके किनारे पर स्थित विभिन्न शहरों (उत्तरप्रदेश , बिहार, बंगाल आदि) ने इसे एक नाले में बदल दिया है । इन शहरों द्वारा उत्सर्जित कचरा एवं मल इसमें प्रवाहित किया जाता है ।
2. मानव के क्रियाकलाप जैसे नहाना ,कपड़े धोना ,मृत व्यक्तियों की राख एवं शवों को बहाना भी इसके प्रदूषण का मुख्य कारण है ।
3. उद्योगों द्वारा उत्पादित रासायनिक उत्सर्जन ने गंगा का प्रदूषण स्तर बढ़ा दिया है । इससे मछलियाँ भी मरने लगी है ।
⦁ गंगा सफाई योजना – यह योजना करीब 1985 में इसलिए प्रारंभ की गई क्योंकि गंगा के जल की गुणवता बहुत कम हो गई थी और मछलियाँ मरने लगी थी । गंगा के जल की सफाई करना और उसकी गुणवता बढ़ाना इस योजना का मुख्य उद्देश्य है । कोलिफार्म जीवाणु का एक वर्ग है जो मानव की आंत्र में पाया जाता है । जल में इसकी उपस्थिति ,इस रोगजन्य सूक्ष्म जीवाणु द्वारा जल संदूषित होना दर्शाता है अर्थात् यदि यह जीवाणु जल में उपस्थित है तो जल संदूषित है ।
⦁ तीन R का सिद्धांत – कम उपयोग (Reduce) , पुनः चक्रण (Recycle) एवं पुनः उपयोग (Reuse) की नीति अपनाकर हम पर्यावरण पर पड़ने वाले दबाव को कम कर सकते है , इसे ही तीन R का सिद्धांत कहते है ।
इसे विस्तृत रूप से निम्न प्रकार से समक्ष सकते है –
1. कम उपयोग (Reduce) – इसका अर्थ है कि हमें कम से कम वस्तुओं का उपयोग करना चाहिए । जैसे हम बिजली के पंखे एवं हम टपकने वाले नल की मरम्मत करके जल की बचत कर सकते है और भी कई ऐसे तरीके अपना सकते है जैसे थाली में भोजन में आवश्यकतानुसार ही रखना चाहिए भोजन को व्यर्थ नहीं करना चाहिए ।
2. पुनः चक्रण (Recycle) – इसका अर्थ है कि हमें प्लास्टिक ,कागज, काँच ,धातु की वस्तुएँ तथा ऐसे ही पदार्थों का पुनःचक्रण करके उपयोगी वस्तुएँ बनानी चाहिए । जब तक अति आवश्यक न हो इनका नया उत्पादन या संश्लेषण विवेकपूर्ण नहीं है । इनके पुनः चक्रण के लिए पहले हमें अपद्रव्यों को अलग करना होगा जिससे कि पुनः चक्रण योग्य वस्तुएँ दूसरे कचरे के साथ भराव क्षेत्र में न फेंक दी जाए ।
3. पुनः उपयोग (Reuse) – यह पुनः चक्रण से भी अच्छा तरीका है क्योंकि पुनः चक्रण में कुछ ऊर्जा व्यय होती है । पुनः उपयोग के तरीके में हम किसी वस्तु का बार-बार उपयोग करते है । लिफाफों के फेंकने की अपेक्षा हम फिर से उपयोग में ला सकते है । विभिन्न खाद्य पदार्थों के साथ आई प्लास्टिक की बोतलें ,डिब्बे इत्यादि का उपयोग रसोईघर में वस्तुओं को रखने के लिए किया जा सकता है । और भी कई ऐसी वस्तुएँ है जिनका हम पुनः उपयोग कर सकते है ।

⦁ प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन की आवश्यकता – प्राकृतिक संसाधनों का विवेकपूर्ण ढ़ंग से उपयोग करना चाहिए क्योंकि यह संसाधन असीमित नहीं अर्थात् सीमित है । स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के कारण हमारी जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि हो रही है । जनसंख्या में वृद्धि के कारण सभी संसाधनों की मांग भी कई गुना तेजी से बढ़ गयी है । इससे प्राकृतिक संसाधनों पर अधिक दबाव पड़ रहा है और प्राकृतिक संसाधनों की कमी हो रही है । अगर इसी तरह हम प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करते रहे तो भावी पीढ़ियों के उपयोग के लिए ये नहीं बचेंगे ,इससे जीवन अस्थ-व्यस्त व कठिन हो जायेगा । अतः हम इन प्राकृतिक संसाधनों का उचित प्रकार से उपयोग करके इनका प्रबंधन कर सकते है जो कि आज के समय की मांग भी है ।
⦁ वन – वृक्ष, झाड़ियों तथा काष्ठीय वनस्पति का एक सघन जैविक समुदाय वन कहलाता है ।
ये जैव विविधता के विशिष्ठ स्थल(Hotspots) हैं । जैव विविधता का आधार उस क्षेत्र में पाई जाने वाली विभिन्न स्पीशीज की संख्या है ।
⦁ स्टेकहोल्डर (दावेदार) – वन संसाधनों के विभिन्न दावेदार स्टेकहोल्डर कहलाते है , जो निम्नलिखित है –
1. वन के अन्दर एवं इसके निकट रहने वाले लोग अपनी अनेक आवश्यकताओं के लिए वन पर निर्भर रहते है ।
2. सरकार का वन विभाग ,जिसके पास वनों का स्वामित्व है तथा वे वनों से प्राप्त संसाधनों का नियंत्रण करते है ।
3. उद्योगपति जो तेंदू पत्ते का उपयोग बीड़ी बनाने से लेकर कागज मिल तक विभिन्न वन उत्पादों का उपयोग करते है । परन्तु वे वनों के किसी भी एक क्षेत्र पर निर्भर नहीं करते है ।
4. वन्य जीवन एवं प्रकृति प्रेमी जो प्रकृति का संरक्षण इसकी आद्य अवस्था में करना चाहते है ।
⦁ वन एवं वन्य जीवों के संरक्षण/प्रबंधन की आवश्यकता – वन एवं वन्य जीवन का संरक्षण करना आवश्यक है क्योंकि वनों से हमारी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति होती है और साथ अमूल्य उपहार जैसी वस्तुएँ प्राप्त होती है –
1. वनों से मानव को अनेक प्रकार की वस्तुएँ जैसे ईंधन की तथा इमारती लकड़ी , बाँस, बेंत, सेल्युलोज, चारा , गोंद, रबर, सुपारी, लाख, सूखा कोयला आदि प्राप्त होते है ।
2. वनों से हमें फल, मेवे ,सब्जियाँ ,औषधियाँ आदि प्राप्त होती है ।
3. वन कई उद्योगों जैसे कागज ,लाख, दिया सलाई, धागे ,वस्त्र, रंजक ,रबर इत्यादि के लिए कच्चा माल उपलब्ध करवाते है ।
4. वन प्राकृतिक संतुलन बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है । जो पर्यावरण की दृष्टि से पृथ्वी पर जीवन को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है ।
5. वनों से हमें विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थ व पेय पदार्थ प्राप्त होते है ।
6. वनों हमें प्राणवायु ऑक्सीजन प्राप्त होती है ।
अतः यह आवश्यक है कि हमें वन एवं वन्य जीवन का संरक्षण करना चाहिए ।
⦁ वन एवं वन्य जीवों के संरक्षण/प्रबंधन के उपाय – इसके लिए निम्न उपाय किए जाने चाहिए –
1. वनों के अतिदोहन पर रोक लगानी चाहिए ।
2. वन्य जीवों के शिकार पर प्रतिबंध लगाना चाहिए ।
3. प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन काल में एक वृक्ष लगाने का संकल्प लेना चाहिए ।
4. वनों से जितना आवश्यक हो उतना ही दोहन करना चाहिए ।
5. वनों को जलाना नहीं चाहिए ।
6. पर्यावरण प्रदूषण को कम करना चाहिए ।

 

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