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Chapter-15- Our Environment 10th class notes || 10th class ncert science notes in Hindi chapter-15

अध्याय – 15
हमारा पर्यावरण

⦁ पर्यावरण ( परि + आवरण ) – हमारे चारों के वातावरण को ,जिसमें सभी जीव व निर्जीव सम्मिलित हो, पर्यावरण कहते है ।
⦁ जैव निम्नीकरणीय पदार्थ (Biodegradable substance) – वे पदार्थ जो जैविक प्रक्रम द्वारा अपघटित हो जाते है , जैव निम्नीकरणीय पदार्थ कहलाते है । उदाहरण – शाक-सब्जी , फलों आदि के अवशेष तथा मल-मूत्र आदि ।
⦁ अजैव निम्नीकरणीय पदार्थ (Non-biodegradable substance) – वे पदार्थ जो जैविक प्रक्रम द्वारा अपघटित नहीं होते है , अजैव निम्नीकरणीय पदार्थ कहलाते है । ये पदार्थ सामान्यतः अक्रिय (inert) हैं तथा लंबे समय तक पर्यावरण में बने रहते है अथवा पर्यावरण के अन्य सदस्यों को हानि पहुँचाते है । उदाहरण – डी.डी.टी. , मानव निर्मित बहुत से ऐसे पदार्थ जो सूक्ष्मजीवों से अप्रभावित रहते है ।
⦁ पारितंत्र अथवा पारिस्थितिक तंत्र (Ecosystem) – किसी क्षेत्र विशेष के पादप, जंतु एंव पर्यावरणीय कारक संयुक्त रूप से पारितंत्र बनाते है । अतः एक पारितंत्र में सभी जैव व अजैविक घटक होते है । भौतिक कारक जैसे ताप, वर्षा , वायु, मृदा एंव खनिज इत्यादि अजैव घटक है ।
उदाहरण – वन , तालाब, झील आदि प्राकृतिक पारितंत्र है ।
बगीचा तथा खेत मानव निर्मित पारितंत्र है ।
⦁ उदपादक या स्वपोषी (Producers or Autotrophs) – पारिस्थितिक तंत्र में उपस्थित सभी सजीव हरे पौधे व नील-हरित शैवाल जिनमें प्रकाश संश्लेषण की क्षमता होती है , उत्पादक कहलाते है ।
⦁ उपभोक्ता या विषमपोषी (Consumers or Heterotrophs) – वे जीव जो उत्पादकों द्वारा उत्पादित भोजन पर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से निर्भर रहते है , उपभोक्ता कहलाते है ।
उपभोक्ताओं को मुख्यतः निम्न वर्गों में बांटा जा सकता है ।
1. शाकाहारी या प्राथमिक उपभोक्ता – ये अपने पोषण के लिए हरे पौधों अर्थात् उत्पादकों पर निर्भर रहते है । उदाहरण – बकरी , गाय , हिरण, खरगोश आदि ।
2. छोटे माँसाहारी या द्वितीय उपभोक्ता – ये शाकाहारी जंतुओं या प्राथमिक उपभोक्ताओं को भोजन के रूप में ग्रहण करते है । उदाहरण – मेढ़क, लोमड़ी, कुत्ता , बिल्ली आदि ।
3. बड़े माँसाहारी या तृतीय अपभोक्ता – कुछ माँसाहारी जीव जो दूसरे माँसाहारी जीवों या द्वितीय उपभोक्ता को मारकर अपना भोजन प्राप्त करते है , तृतीय उपभोक्ता कहलाते है । इन्हें उच्च उपभोक्ता कहते है । उदाहरण – गिद्ध, बाज , शेर आदि ।
4. सर्वाहारी अथवा सर्वभक्षी – वे जीव जो सजीव व उनके द्वारा उत्सर्जित पदार्थों तथा मृत जीवों को खाकर अपना भोजन प्राप्त करते है , सर्वाहारी कहलाते है । उदाहरण – कॉकरोच ।
5. परजीवी – वे जीव जो दूसरे जीवों को बिना मारे, उनके शरीर पर आश्रित होकर अपना पोषण प्राप्त करते हैं , परजीवी कहलाते है । उदाहरण – जूँ , मनुष्य की आंत में रहने वाले जीवाणु ।
6. अपघटक जीव या सूक्ष्म उपभोक्ता (Decomposers or microconsumers) – ये मृत जीवों अथवा सड़े-गले पदार्थों के जटिल कार्बनिक पदार्थों को सरल अकार्बनिक पदार्थों में परिवर्तित करते है । सरल कार्बनिक या अकार्बनिक पदार्थों को ये सूक्ष्म उपभोक्ता भोजन के रूप में अवशोषण करते है । इन्हें अपमार्जक भी कहते है । उदाहरण – अपघटक जीवाणु , कवक आदि ।
⦁ आहार श्रृंखला या खाद्य श्रृंखला (food chain) – जीवों की एक ऐसी श्रृंखला जिसके अन्तर्गत खाने व खाए जाने की पुनरावृति द्वारा खाद्य उर्जा का प्रवाह होता है , उसे खाद्य श्रृंखला कहते है ।

अथवा

पादप स्रोत से विभिन्न जीवों की श्रृंखला द्वारा खाद्य ऊर्जा का संचरण खाद्य श्रृंखला कहलाता है ।
⦁ पोषण स्तर (trophic level) अथवा पोषी स्तर अथवा ऊर्जा स्तर – खाद्य श्रृंखला के प्रत्येक स्तर अथवा कड़ी या जीव को पोषण स्तर कहते है ।

स्वपोषी या उत्पादकों को प्राथमिक पोषी स्तर , शाकाहारी या प्राथमिक उपभोक्ता को द्वितीय पोषी स्तर , छोटे माँसाहारी या द्वितीय उपभोक्ताओं को तृतीय पोषी स्तर तथा उच्च उपभोक्ता को चतुर्थ पोषी स्तर कहते है ।

प्राथमिक पोषी स्तर (उत्पादक) सूर्य की ऊर्जा को ग्रहण करके उसे रासायनिक ऊर्जा में बदलकर संग्रहित कर लेते है ,यही ऊर्जा विभिन्न पोषी स्तरों को स्थानान्तरित होती रहती है जो उनके जैविक क्रियाकलापों को करने में सहायक होती है ।
⦁ खाद्य जाल (food web) – पारिस्थितिक तंत्र में एक से अधिक खाद्य श्रृंखलायें आपस में किसी न किसी खाद्य क्रम (पोषण स्तर) में जुड़कर एक जटिल जाल सा बना लेती है ,जिसे खाद्य जाल कहते है ।


खाद्य जाल में एक जीव एक से अधिक जीवों द्वारा खाया जाता है । इससे जीवों को भोजन प्राप्ति के एक अधिक विकल्प मिल जाते है । इससे पारितंत्र में जीवों के मध्य संतुलन बना रहता है । उदाहरण – जैसे चूहे को बिल्ली व सांप द्वारा खाया जाता है इससे चूहों की संख्या नियंत्रित रहती है । अन्यथा चूहों की संख्या बढ़ जाती और पारितंत्र में अव्यवस्था हो जाती ।

 

अध्याय-15- हमारा पर्यावरण part-2

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