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Plant Tissue #पादप उत्तक #Science G.K.

पादप उत्तक के प्रकार

⦁ उत्तक (Tissue) – समान उत्पत्ति, संरचना एवं कार्यों वाली कोशिकाओं के समूह को उत्तक कहते हैं । उत्तक का अध्ययन जीव विज्ञान की जिस शाखा के अन्तर्गत किया जाता है, उसे औतिकी (Histology) कहते हैं ।

⦁ पादप उत्तक के प्रकार – उत्तक की कोशिकाओं की विभाजन क्षमता के आधार पर उत्तक दो प्रकार के होते हैं –


1. विभाज्योतकी ऊतक (Meristematic tissue)
2. स्थायी ऊतक (Permanent tissue)

1. विभाज्योतिकी ऊतक (Meristematic tissues): पौधे के वर्धी क्षेत्रों (Growing regions) को विभाज्योतक कहते हैं । इनसे बनी संतति कोशिकाएँ वृद्धि करके पौधे के विभिन्न अंगों का निर्माण करती हैं । यह प्रक्रिया पौधे में जीवनपर्यन्त चलती है ।
विभाज्योतकी उत्तक के विशिष्ट लक्षण निम्न हैं –
i. इनकी कोशिकाएँ गोल, अण्डाकार या बहुभुजाकार होती है ।
ii. इनकी भित्तियाँ पतली व एकसार (Homogenous) होती हैं ।
iii. जीवद्रव्य सघन, केन्द्रक बड़े तथा रसधानी छोटी होती है ।
iv. कोशिकाओं के बीच अंतरकोशिकीय स्थानों का अभाव होता है ।

यह ऊतक स्थिति (Position) के आधार पर निम्नलिखित तीन प्रकार का होता है-
(a) शीर्षस्थ विभाज्योतिकी ऊतक (Apical meristem)
(b) पार्श्वस्थ विभाज्योतिकी ऊतक (Lateral meristern)
(c) अन्तर्वेशी विभाज्योतिकी ऊतक (Intercalary meristem)

(a) शीर्षस्थ विभाज्योतिकी ऊतक (Apical meristem) – ये उत्तक जड़ो अथवा तनों के शीर्षों पर पाए जाते हैं तथा पौधे की प्राथमिक वृद्धि (विशेषकर लंबाई में) इन्हीं के कारण होती है ।

(b) पार्श्वस्थ विभाज्योतिकी ऊतक (Lateral meristern) – यह ऊतक जड़ तथा तने के पार्श्व भाग में होता है एवं द्वितीयक वृद्धि (Secondary growth) करता है अर्थात् इनमें विभाजन होने से जड़ तथा तने की मोटाई में वृद्धि होती है ।

(c) अन्तर्वेशी विभाज्योतिकी ऊतक (Intercalary meristem) – यह वास्तव में शीर्षस्थ विभाज्योतक का अवशेष है, जो बीच में स्थायी उत्तकों के आ जाने से अलग हो गये हैं । इनकी क्रियाशीलता से भी पौधा लंबाई में वृद्धि करता है । इसकी महत्ता उन पौधों के लिए है जिनके शीर्षाग्र (शीखाग्र) को शाकाहारी जानवर खा जाते हैं । शीर्षाग्र खा लिए जाने के कारण ये पौधे अन्तर्वेशी विभाज्योतक की सहायता से ही वृद्धि करते हैं । जैसे – घास

2. स्थायी ऊतक (Permanent tissue) – विभाज्योतकी ऊतक (अस्थायी ऊतक) की वृद्धि के फलस्वरूप स्थायी ऊतक (Permanent tissue) का निर्माण होता है । ये उन परिपक्व कोशिकाओं के बने होते है, जो विभाजन की क्षमता खो चुकी हैं तथा विभिन्न कार्यों को करने के लिए विभेदित हो चुकी हैं । इनकी कोशिकाएँ मृत अथवा जीवित हो सकती हैं ।
स्थायी उत्तक को निम्न भागों में बांट सकते हैं –
अ) सरल उत्तक (Simple tissue)
ब) जटिल उत्तक (Complex Tissue)

अ) सरल उत्तक (Simple tissue) – यदि स्थायी उत्तक एक ही प्रकार की कोशिकाओं के बने होते हैं ,तो इन्हें सरल उत्तक कहते हैं । इन्हें तीन भागों में बांटा गया है – (i) मृदुतक (Parenchyma), (ii) स्थूलकोण ऊतक (Collenchyma), (iii) दृढ़ ऊतक (Sclerenchyma)।

ब) जटिल उत्तक (Complex Tissue) – यदि स्थायी उत्तक एक से अधिक प्रकार की कोशिकाओं के बने होते हैं, तो इन्हें जटिल उत्तक कहते हैं । ये दो प्रकार के होते हैं –
(i) जाइलम (Xylem)
(ii) फ्लोएम (Phloem)

(i) जाइलम (Xylem) – इसे प्रायः काष्ठ (wood) भी कह देते हैं । यह संवहनी उत्तक है । इसके दो मुख्य कार्य हैं – 1. जल व खनिज लवणों का संवहन 2. यांत्रिक दृढ़ता प्रदान करना ।

Note – पौधे की आयु की गणना जाइलम उत्तक के वार्षिक वलय को गिनकर ही की जाती है । पौधे की आयु के निर्धारण की यह विधि डेन्ड्रोक्रोनोलॉजी (Dendrochronology) कहलाती है ।

(ii) फ्लोएम (Phloem) – यह भी एक संवहन उत्तक है । इसका मुख्य कार्य पत्तियों द्वारा बनाए गए भोजन को पौधे के अन्य भागों में पहुँचना है ।

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