Hindi science

Genetics: Mendel’s Law of Inheritance in Hindi (आनुवंशिकी: मेंडल के आनुवंशिकता के नियम)

आनुवांशिकी : मोनोहाइब्रिड क्रॉस एवं डाइहाइब्रिड क्रॉस और मेंडल के नियम

आनुवांशिकी (Genetics) – वे लक्षण जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी संचरित होते हैं, आनुवांशिक लक्षण कहलाते हैं । आनुवांशिक लक्षणों के पीढ़ी-दर-पीढ़ी संचरण की विधियों और कारणों के अध्ययन को आनुवांशिकी (Genetics) कहते हैं ।
आनुवांशिकता के बारे में सर्वप्रथम जानकारी आस्ट्रिया निवासी ग्रेगर जोहान मेंडल (1822-1884) ने दी थी । इसी कारण उन्हें आनुवांशिकता का पिता (Father of Genetics) कहा जाता है ।

नोट – आनुवांशिकता (Genetics) शब्द विलियम वाटसन (William Wateson) ने दिया जबकि जीन (gene) शब्द विलहेलम जोहान्सन (Wilhelm Johannsen) ने दिया ।

– आनुवांशिकी संबंधी प्रयोग के लिए मेंडल ने मटर के पौधे का चुनाव किया था ।
– मेंडल ने पहले एक जोड़ी फिर दो जोड़ी विपरीत गुणों की वंशागति का अध्ययन किया, जिन्हें क्रमशः एकसंकरीय व द्विसंकरीय क्रॉस कहते हैं

⦁ एकसंकरीय क्रॉस (Monohybrid cross)
जब पौधों में एक जोड़ी विपर्यासी लक्षण को ध्यान में रखकर उनके मध्य क्रॉस करवाया जाता है तो उसे एकल संकरण प्रयोग कहते है । उदाहरण – शुद्ध लंबा व बौने पौधे के मध्य संकरण

मेंडल ने जब मटर के शुद्ध लंबे (TT) व शुद्ध बौने (tt) पौधों के मध्य संकरण कराया तो प्रथम पीढ़ी में सभी पौधे लंबे प्राप्त हुए । और जब मेंडल ने प्रथम पीढ़ी से प्राप्त पौधों में स्वपरागण होने दिया तो प्राप्त द्वितीय पीढ़ी में 75% पौधे लंबे व 25% पौधे बौने प्राप्त हुए । इससे उसे पता चला कि लक्षण प्रभावी व अप्रभावी होते है । प्रभावी कारक T , अप्रभावी कारक t को प्रकट नहीं होने देता ।

⦁ द्विसंकरीय क्रॉस (Dihybrid cross) –
मेंडल ने दो जोड़ी विपर्यासी लक्षणों वाले भिन्न पौधों के मध्य संकरण कराया , इसे ही द्विसंकरण प्रयोग कहते है ।
उदाहरण –  गोल व पीले बीज(RRYY) और झुर्रीदार व हरे(rryy) बीज वाले पौधे के मध्य संकरण

मेंडल ने जब गोल व पीले बीज (RRYY) और झुर्रीदार व हरे बीज (rryy) वाले पौधों के मध्य संकरण कराया तो प्रथम पीढ़ी में सभी पौधे गोल व पीले बीज (RrYy) वाले प्राप्त हुए । जब प्रथम पीढ़ी से प्राप्त पौधों के मध्य स्वपरागण होने दिया तो प्राप्त द्वितीय पीढ़ी में चार प्रकार के संयोजन प्राप्त हुए जिसमें फीनोटाइपिक अनुपात निम्न है –

अतः इससे निष्कर्ष निकला कि द्वितीय पीढ़ी में लक्षणों का स्वतंत्र रूप से पृथक्करण होने के कारण प्रत्येक जोड़ी के विपर्यासी लक्षण दूसरी जोड़ी के विपर्यासी लक्षणों से स्वतंत्र व्यवहार करते है । इस कारण इसे स्वतंत्र अपव्यूहन का नियम भी कहते है । इससे पता चला कि विभिन्न लक्षण स्वतंत्र रूप से वंशानुगत होते है ।

मेंडल के नियम –
प्रभाविता का नियम (Law of Dominance) – कारक युग्म में पाए जाते है । यदि कारक के दोनों सदस्य असमान हो तो इनमें से एक कारक दूसरे कारक पर प्रभावी हो जाता है । प्रभावी कारक अप्रभावी कारक के गुण को दबा देता है अर्थात् उसे प्रकट नहीं होने देता है । अतः प्रथम पीढ़ी में केवल प्रभावी कारक के गुण ही प्रकट होते हैं । इसे ही प्रभाविता का नियम कहते हैं । अप्रभावी कारक के गुण द्वितीय पीढ़ी में प्रदर्शित होते हैं ।

2. विसंयोजन का नियम अथवा युग्मकों की शुद्धता का नियम अथवा पृक्करण का नियम (Law of Segregation) – युग्मक बनने के समय कारकों के जोड़े अथवा एलील के सदस्य विसंयोजित अथवा पृथक्कृत हो जाते है । और प्रत्येक युग्मक को दो में से एक कारक प्राप्त होता है , इसे ही विसंयोजन का नियम अथवा पृथक्करण का नियमकहते है ।
प्रत्येक युग्मक में पहुँचने वाला कारक अपनी शुद्धतम अवस्था में होता है । अतः इसे युग्मकों की शुद्धता का नियम भी कहते है ।

3. स्वतंत्र अपव्यूहन का नियम (Law of Independed Assortment) – जब दो जोड़ी विपरीत लक्षणों वाले पौधों के बीच संकरण कराया जाता है, तो दोनों लक्षणों का पृथक्करण स्वतंत्र रूप से होता है – एक लक्षण की वंशागति दूसरे लक्षण को प्रभावित नहीं करती है । इसे ही स्वतंत्र अपव्यूहन का नियम कहते हैं ।

फीनोटाइप – जीवधारी के जो लक्षण प्रत्यक्ष रूप से दिखाई पड़ते हैं, उन्हें फीनोटाइप कहते हैं ।

जीनोटाइप – जीवधारी के आनुवांशिक संगठन को उसका जीनोटाइप कहते हैं , जो कि कारको (जीन) का बना होता है ।

युग्मविकल्पी (Alleles) – एक ही गुण के विभिन्न विपर्यासी रूपों को प्रकट करने वाले लक्षण कारकों को एक-दूसरे का युग्मविकल्पी या एलील कहते हैं ।

सहलग्नता (Linkage) – एक ही गुणसूत्र पर स्थित जीनों में एक साथ वंशागत होने की प्रवृति पाई जाती है ,जीनों की इस प्रवृति को सहलग्नता कहते हैं । जबकि जीन जो एक ही गुणसूत्र पर स्थापित होते हैं और एक साथ वंशागत होते हैं, उन्हें सहलग्न जीन (Linked genes) कहते हैं ।
लिंग सहलग्न जीन (Sex Linked genes) लिंग सहलग्न गुणों को एक पीढ़ी से दूसरे पीढ़ी में ले जाते हैं । वास्तव में X गुणसूत्र पर स्थित जीन ही लिंग सहलग्न जीन कहे जाते हैं, क्योंकि इसका प्रभाव नर तथा मादा दोनों पर पड़ता है । लिंग सहलग्नता की सर्वप्रथम विस्तृत व्याख्या T.H. मॉर्गन (1910) ने की थी । मनुष्य में कई लिंग सहलग्न गुण जैसे- रंगवर्णान्धता, गंजापन, हीमोफिलीया, मायोपिया, हाइपरट्राइकोसिस इत्यादि पाए जाते हैं । लिंग सहलग्न गुण स्त्रियों की अपेक्षा पुरूषों में ज्यादा प्रकट होते हैं ।

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