Genetic code and its importance
आनुवांशिक कूट (Genetic code) या आनुवांशिक संहिता – DNA में क्षारों के अनुक्रम व अनुलेखन के बाद m-RNA में DNA के पूरक क्षारों के अनुक्रम की व्यवस्था प्रोटीन संश्लेषण प्रक्रिया में संश्लेषित प्रोटीन में अमीनो-अम्ल के अनुक्रम को निर्धारित करती है अतः क्षारों के इस अनुक्रम को आनुवांशिक कूट या आनुवांशिक संकेत कहते हैं । जो त्रिक के रूप में होता है ।
अथवा
m-RNA में उपस्थित नाइट्रोजन युक्त क्षारों की या न्यूक्लिओटाइडो की संख्या व अनुक्रम जो एक अमीनो अम्ल का विशिष्टीकरण करता है, एक कोडोन (codon) अथवा आनुवांशिक कूट कहलाता है । जबकि t-RNA का क्षार समुच्चय जो कि m-RNA के कोडोन से क्षारयुग्म (Bas-pair) बनाता है, एन्टीकोडोन (Anticodon) कहलाता है ।
नोट – खुराना, निरेन्बर्ग एवं लीडर के अध्ययनों के आधार पर 1966 तक 64 संभावित कोडोन्स का कूटवाचन या व्याख्या की गयी । 61 कोडोन्स 20 अमीनों अम्लों से संबंधित होते हैं तथा 3 कोडोन्स (UAA, UAG, UGA) पोलीपेप्टाइट श्रृंखला के समापन के लिए संकेतों का प्रतिनिधित्व करते हैं ।
आनुवांशिक कूट की मुख्य विशेषताएँ (Chief characteristics of genetic code) – इसकी प्रमुख विशेषताएँ निम्न हैं –
1. त्रिक कोड (Triple code) – प्रकूट (आनुवांशिक कूट) त्रिक के रूप में होता है । 61 प्रकूट अमीनों अम्ल का कूटलेखन करते हैं व तीन प्रकूट (UAA, UAG, UGA) लेखन नहीं करते हैं । इस कारण से प्रकूट रोध प्रकूट के रूप में कार्य करता है ।
2. संरेखता (Colinearity) – उत्परिवर्तजों (Mutants) द्वारा DNA व m-RNA तथा पॉलीपेप्टाइड श्रृंखला में संगत अमीनों अम्लों के अवशेषों में रेखित विन्यास का पता चलता है । पुनर्योगज तकनीकों द्वारा उन उत्परिवर्तजों के रैखिक अनुक्रम को प्रदर्शित किया जा सकता है, इससे आनुवांशिक कूट की संरेखता का पता चलता है ।
3. आनुवांशिक कूट में असंदिग्धता – एक प्रकूट केवल एक अमीनों अम्ल का कूटलेखन करता है इस कारण यह असंदिग्ध व विशिष्ट होता है ।
4. आनुवांशिक कूट में संदिग्धता (Ambiguity in the genetic code) – जब प्रकूट दोहरा कार्य संपन्न करता है तो असंदिग्ध कहलाता है । जैसे AUG प्रकूट पोलीपेप्टाइड श्रृंखला का आरम्भ करता है और साथ ही मीथियोनीन का कूटलेखन भी करता है ।
5. अपह्रासित कूट (Degeneracy in the genetic code) – कुछ अमीनों अम्लों का कूटलेखन एक से अधिक प्रकूटों द्वारा होता है इस कारण से इन्हें अपह्रासित कूट कहते हैं ।
6. आनुवांशिक कूट की सार्वभौमिकता या सार्वत्रिकता (Universality of genetic code) – कूट लगभग सार्वभौमिक होते हैं । उदारणार्थ – जीवाणु से मनुष्य में UUU फेनिलएलेनीन (Phe) का कूटलेखन करता है । इस नियम के कुछ अपवाद सूत्रकणिका प्रकूट व कुछ आदि जंतुओं (प्रोटोजोआ) में मिलते हैं ।
आनुवांशिक कूटों का जैविक महत्व (Biological significance of genetic code) –
i. विभिन्न प्रोटीनों के जैविक संश्लेषण हेतु आनुवांशिक संकेतों(कूटों) का उपयोग किया जाता है ।
ii. पोलिपेप्टाइड श्रृंखला का आरंभन व समापन आनुवांशिक कूट की सहायता से ही होता है ।
iii. आनुवांशिक कूट ही पॉलीपेप्टाइड श्रृंखला में अमीनों अम्लों का निर्धारण करते हैं ।
iv. जीवों में जो विविधताएँ दृष्टिगोचर होती हैं, उनका संरचनात्मक व क्रियात्मक आधार आनुवांशिक कूट ही होते हैं ।