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Food chain and Food web with Definition // खाद्य श्रृंखला एवं खाद्य जाल

खाद्य श्रृंखला एवं खाद्य जाल

(अ) खाद्य श्रृंखला (Food chain ) – ” जीवों की एक श्रृंखला जिसके अन्तर्गत खाने व खाए जाने की पुनरावृत्ति द्वारा खाद्य ऊर्जा का प्रवाह होता है, खाद्य श्रृंखला कहते हैं । ”

अथवा

” पादप स्रोत से विभिन्न जीवों की श्रृंखला द्वारा खाद्य ऊर्जा का संचरण खाद्य श्रृंखला कहलाता है । ”


खाद्य श्रृंखला के प्रत्येक स्तर अथवा कड़ी या जीव को पोषण स्तर (Trophic level) या ऊर्जा स्तर (Energy level) कहते हैं । इस श्रृंखला के एक किनारे पर हरे पादप अर्थात् उत्पादक जबकि दूसरे किनारे पर अपघटक होते हैं । इन दोनों के मध्य विभन्न स्तर के उपभोक्ता स्थित होते हैं । एक खाद्य श्रृंखला के विभिन्न पोषण स्तरों को क्रमशः T1 , T2 , T3 ….. अथवा प्रथम पोषण स्तर, द्वितीय पोषण स्तर, तृतीय पोषण स्तर…..आदि से प्रदर्शित किया जाता है ।

खाद्य श्रृंखला के प्रकार – प्रकृति में खाद्य श्रृंखलायें तीन प्रकार की होती हैं –

1. परभक्षी खाद्य श्रृंखला या शाकवर्ती खाद्य श्रृंखला (Predator food chain or Grazing food chain)
2. परजीवी खाद्य श्रृंखला (Parasitic food chain)
3. मृतजीवी या अपरदी खाद्य श्रृंखला (Saprophytic or Detritus food chain)

1. परभक्षी खाद्य श्रृंखला या शाकवर्ती खाद्य श्रृंखला (Predator food chain or Grazing food chain) – वह खाद्य श्रृंखला जो पौधों से प्रारंभ होकर शाकाहारी (प्राथमिक उपभोक्ताओं) जंतुओं के माध्यम से मांसाहारी (द्वितीयक या तृतीयक उपभोक्ता) जंतुओं में समाप्त होती है, परभक्षी खाद्य श्रृंखला या शाकवर्ती खाद्य श्रृंखला कहलाती है ।
यह खाद्य श्रृंखला प्रत्यक्ष रूप से सौर ऊर्जा पर आधारित होती है । प्रकृति में अधिकांशतः इसी प्रकार की खाद्य श्रृंखलाएं पाई जाती है । इस खाद्य श्रृंखला में प्रत्येक स्तर की प्रगति के साथ-साथ परभक्षी के शरीर के आकार में वृद्धि होती जाती है । प्राथमिक उपभोक्ता, द्वितीयक उपभोक्ता से छोटे होते हैं ।
उदाहरण –
i. घास → टिड्डा→ मेढ़क → साँप
ii. घास → टिड्डा →छिपकली→ बाज
iii. हरे पौधे → चूहे → साँप → बाज
iv. घास → बकरी→ भेड़िया→ शेर

2. परजीवी खाद्य श्रृंखला (Parasitic food chain) – वह खाद्य श्रृंखला जो शाकाहारी प्राणियों से प्रारंभ होती है और जिसमें ऊर्जा क्रम बड़े आकार के प्राणियों से छोटे से आकार वाले प्राणियों की ओर होता है, परजीवी खाद्य श्रृंखला (Parasitic food chain) कहलाती है । अतः बड़े आकार के प्राणी अतिथेय या परपोषी या पोषिता (Host) तथा छोटे आकार के प्राणी परजीवी (Parasite) कहलाते हैं ।
उदाहरण –
i. मानव → जूँ
ii. चिड़ियां→ कीड़े → जीवाणु

3. मृतजीवी या अपरदी खाद्य श्रृंखला (Saprophytic or Detritus food chain) – वह खाद्य श्रृंखला जो मृत सड़े-गले (पादप या जन्तु) कार्बनिक पदार्थों से प्रारंभ होकर सूक्ष्मजीवों (Microorganisms) (कवक या जीवाणु) के माध्यम से अपरद ( Detritus) जीवों को खाने वाले अपरदहारी (Detritivores) तथा उनका भक्षण करने वाले अपरदभक्षी (Detritus feader) जीवों की ओर बढ़ती है , मृतजीवी खाद्य श्रृंखला कहलाती है । मृत पादप पदार्थ (अपरद) एवं उसमें उपस्थित जीवाणुओं का भक्षण करने वाले जंतुओं को डेट्रीटीवोर्स कहते हैं । अतः यह खाद्य श्रृंखला अपरद खाद्य श्रृंखला भी कहलाती है ।
उदाहरण –
i. मृत कार्बनिक पदार्थ (अपरद) → केंचुआ → मेढ़क → सर्प→ चिड़िया
ii. अपरद →घोंघा → झाऊ चूहा → उल्लू

(ब) खाद्य जाल (Food web) – पारिस्थितिक तंत्र में एक से अधिक खाद्य-श्रृंखलायें आपस में किसी न किसी खाद्य क्रम (पोषण स्तर) में जुड़कर एक जटिल जाल सा बना लेती हैं जिसे खाद्य जाल कहते हैं ।

खाद्य जाल जीवों के समुदाय में बहुदिशीय संबंध को प्रकट करता है । इस प्रकार खाद्य जाल में ऊर्जा का प्रवाह एक दिशा में होते हुए भी कई पथों से होकर होता है । किसी भी पारिस्थितिक तंत्र में खाद्य जाल जितना जटिल होगा उतना ही वह तंत्र अधिक स्थायी होगा क्योंकि जटिल खाद्य जाल में किसी भी उपभोक्ता के लिए अधिक तरह के जीव उपयोग के लिए उपलब्ध होंगे ।
पारिस्थितिक तंत्र की स्थिरता या स्थायित्व एवं संतुलन बनाए रखने में खाद्य जालों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है । उदाहरण के लिए किसी पारिस्थितिक तंत्र में अचानक किसी प्रथम स्तर के उपभोक्ताओं जैसे खरगोश की संख्या में कमी होने पर अन्य प्रथम स्तर के उपभोक्ताओं (जैसे चूहों) की संख्या में वृद्धि हो जाती है । चूहे द्वितीयक उपभोक्ता को अधिक प्रिय हो सकते हैं, तब इनकी संख्या शीघ्र ही कम होना प्रारंभ हो जाती है । इस दौरान प्रथम स्तर के पूर्व उपभोक्ता (खरगोश) अपनी संख्या में पुनः वृद्धि कर लेता है । इस प्रकार वह पारिस्थितिक तंत्र अधिक स्थायी होगा जिसमें ऊर्जा प्रवाह के वैकल्पिक परिपथ (Alternative pathways) अधिक होंगे ।

खाद्य जाल को प्रभावित करने वाले कारक – खाद्य जाल को तीन कारक प्रभावित कर सकते हैं –
i. खाद्य श्रृंखला की लंबाई
ii. भोजन प्रवृतियों के कारण जीवों में मिलने वाली विविधताएँ ।
iii. खाद्य श्रृंखला में विभिन्न उपभोक्ता स्तरों पर भिन्न-भिन्न विकल्प ।

 

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