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Digestion in Human Class 10 Science #मानव में पाचन क्रिया

मानव में पाचन

⦁ पाचन (Digestion) – जटिल पोषक पदार्थों को जल अपघटन द्वारा सरल पोषक पदार्थों में बदलने की क्रिया को पाचन कहते हैं ।
⦁ मानव में पाचन क्रिया (Digestion in Human) – मनुष्य के पाचन तंत्र में एक लंबी आहार नलिका होती है । इस आहार नाल के विभिन्न भागों में निम्न प्रकार से भोजन का पाचन होता है –

1. मुख में पाचन – मुँह में दांत भोजन को छोटे-छोटे कणों में तोड़ते है और जीह्वा लार की मदद से भोजन को अच्छी तरह मिलाती है एवं भोजन को लसलसा बनाती है । यहाँ लार में उपस्थित एंजाइम लार एमाइलेस या टायलिन , मंड या स्टार्च कणों को शर्करा में बदल देते है अथवा इनका पाचन करते हैं ।

2. ग्रसिका (Oesophagus) – यह भोजन को आमाशय के भीतर धकेलने में सहायता करती है । ग्रसिका की पेशियों का क्रमवत् फैलना एवं सिकुड़ना क्रमाकुंचन कहलाता है । ग्रसिका में किसी भी प्रकार का पाचन नहीं होता है ।

3. आमाशय में पाचन (Digestion in Stomach) – भोजन के आमाशय में प्रवेश करने पर जठर ग्रंथियाँ उत्तेजित होकर जठर रस का स्त्रावण करती हैं । जठर रस में 97.99 % जल, श्लेष्म ,HCl तथा पेप्सिन, जठर लाइपेज एवं रेनिन एंजाइम होते हैं । वयस्क मनुष्य में रेनिन का अभाव होता है । HCl की उपस्थिति के कारण जठर रस अम्लीय होता है ।
HCl निम्न कार्य करता है –

i. HCl निष्क्रिय पेप्सिनोजन को सक्रिय पेप्सिन में बदलता है ।
ii. भोजन के साथ आये जीवाणु एवं सूक्ष्म जीवों को मारता है ।
iii. यह भोजन को सड़ने से रोकता है । एवं भोजन के कठोर भागों को घोलता है ।

पेप्सिन एंजाइम प्रोटीन को प्रोटिओजेज तथा पेप्टोन्स में बदल देता है ।

जठर लाइपेज वसाओं का आंशिक पाचन करता है ।

रेनिन एंजाइम प्रोरेनिन के रूप में स्त्रावित होता है । यह HCl के प्रभाव से सक्रिय रेनिन में बदल जाता है । रेनिन दूध की कैसीन प्रोटीन को अघुलनशील कैल्सियम पैरा-कैसीनेट में बदलता है ।
आमाशय में भोजन 3-4 घंटे तक रूकता है । जठर निर्गमी अवरोधनी द्वारा अधपचा भोजन धीरे-धीरे ग्रहणी में धकेल दिया जाता है ।

4. क्षुद्रांत्र में पाचन क्रिया (Digestion in Small Intestine) – भोजन का पाचन मुख्यतः क्षुद्रांत्र के ग्रहणी भाग में होता है । ग्रहणी में पित्त रस एवं अग्न्याशयी रस भोजन में मिल जाते हैं । क्षुद्रांत्र में स्थित लिबरकुहन की दरारों से आंत्रीय रस का स्त्रावण होता है ।

अ) पित्त रस – यह वसा का इमल्सीकरण करता है । यह काइम (भोजन की लुग्दी) की अम्लता को समाप्त करके उसे क्षारीय बनाता है तथा आंत्र की क्रमाकुंचन गति को बढ़ाता है । पित्त लवण ,कोलेस्ट्रोल को घुलनशील बनाए रखता है ।

ब) अग्न्याशयी रस – इसका PH 7.5-8.3 तक होता है । इसमें 96 % तक जल और शेष पाचक एंजाइम तथा लवण होते हैं । इसमें निम्न एंजाइम होते हैं –
i. प्रोटीन पाचक एंजाइम – ट्रिप्सिन एवं काइमोट्रिप्सिन ।
ii. कार्बोहाइड्रेट पाचक एंजाइम – अग्न्याशयी रस में अग्न्याशयी एमाइलेज एंजाइम पॉलीसैकेराइड (स्टार्च) को डाइसैकेराइड (माल्टोस) में बदलता है ।


iii. वसा पाचक एंजाइम – अग्न्याशयी लाइपेज या स्टिऐप्सिन इमल्सीकृत वसा का पाचन करता है ।

iv. न्यूक्लिएजेज – ये न्यूक्लिक अम्लों का पाचन करते हैं ।

स) आंत्रीय रस – यह क्षुद्रांत्र की ग्रंथियों से स्त्रावित होता है । इसमें निम्न एंजाइम होते हैं –
i. प्रोटीन पाचक एंजाइम – यह सामूहिक रूप से इरैप्सिन कहलाते हैं । ये पॉलीपेप्टाइड्स को अमीनों अम्लों में तोड़ते हैं ।
ii. कार्बोहाइड्रेट पाचक एंजाइम – माल्टोज ,लैक्टोज तथा सुक्रोज ।
iii. वसा पाचक एंजाइम – अवशेष वसा का पाचन आंत्रीय लाइपेज करता है ।
iv. न्युक्लियोटाइड्स का पाचन – न्युक्लिओटाइडेज न्यूक्लिओटाइड्स को न्युक्लिओसाइड्स तथा फॉस्फेट में तोड़ता है तथा न्युक्लिओसाइडेज न्युक्लिओसाइड्स को नाइट्रोजनी क्षारकों तथा शर्करा में तोड़ते हैं ।

इस प्रकार पचित भोजन को आंत्र की भित्ति अवशोषित कर लेती है ।

5. बृहद्रांत्र(बड़ी आंत्र) – बिना पचा हुआ भोजन बृहद्रांत्र में भेज दिया जाता है जहाँ अधिसंख्य दीर्घरोम इसमें उपस्थित जल का अवशोषण कर लेते है । शेष पदार्थ गुदा द्वार द्वारा शरीर के बाहर मल के रूप में त्याग दिया जाता है, इस क्रिया को बहिःक्षेपण कहते है ।

 

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