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Dialysis or hemodialysis in Human #मानव में अपोहन अथवा कृत्रिम वृक्क

अपोहन (डायलेसिस)(कृत्रिम वृक्क)

डायलेसिस-

जब व्यक्ति के दोनों वृक्क कार्य करना बंद कर देते है या कार्यहीन हो जाते है ,ऐसा सामान्यतः CRF(Cronic renal feiliar) में होता है । CRF में लंबे समय के बाद किडनी धीरे-धीरे कार्य करना बंद कर देती है ,मधुमेह पीड़ित व्यक्तियों में यह अवस्था पाई जाती है । जब किडनी कार्यहीन हो जाती है तो ऐसी स्थिति में रक्त में यूरिया की मात्रा बढ़ जाती है , इसे यूरिमिया कहते है । यूरिया की अत्यधिक मात्रा शरीर के लिए हानिकारक है । अतः इससे रिलीफ पाने के लिए रक्त का डायलेसिस किया जाता है इसे हीमोडायलेसिस भी कहते है । यह एक कृत्रिम मशीन की सहायता से किया जाता है । इस मशीन को हीमोडाइलाइजर कहा जाता है । पीड़ित व्यक्ति की एक बड़ी धमनी को इस मशीन की नलिकाओं से जोड़ा जाता है । मशीन की ये नलिकाएँ सेलोफेन नामक पदार्थ की बनी होती है । सेलोफेन से बनी नलिकाएँ अर्द्धपारगम्य झिल्ली के रूप में व्यवहार करती है । हीमोडाइलाइजर में प्रविष्ट होने वाले रक्त में हिप्पेरिन मिलाया जाता है ताकि रक्त स्कंदित न हो । सेलोफेन की नलिकाओं के बाहर हीमोडाइलाइजर में एक द्रव भरा होता है जिसे अपोहन द्रव कहते है । इस द्रव की आयन सांद्रता रक्त प्लाज्मा के समान होती है , अन्तर केवल इतना होता है कि रक्त में यूरिया की मात्रा अधिक होती है जबकी अपोहन द्रव में यूरिया नहीं होता है । हीमोडाइलाइजर के अन्दर सेलोफेन ट्यूब में परिवहित होने वाले रक्त में से यूरिया अपोहन द्रव में आ जाता है । यरिया युक्त इस द्रव को अन्य पात्र में इकट्ठा कर लिया जाता है । और शुद्ध अपोहन द्रव की आपूर्ति हीमोडाइलाइजर में अन्य पात्र से की जाती है । अब इस शुद्ध रक्त को पुनः पीड़ित व्यकित की बड़ी शिरा में पहुँचा दिया जाता है । शरीर में पहुँचने से पहले रक्त में एन्टीहिप्पेरिन मिलाया जाता है । इस प्रकार डायलेसिस की प्रक्रिया पूर्ण होती है ।
CRF का स्थायी उपचार वृक्क प्रत्यारोपण है । वृक्क प्रत्यारोपण के दौरान पीड़ित व्यक्ति के प्रतिरक्षी तंत्र को संदमित किया जाता है क्योंकि किसी भी डोनर के वृक्क की ग्रहण क्षमता पीड़ित व्यक्ति में तभी हो सकती है जब दाता व ग्राही दोनों में प्रतिरक्षी तंत्र एक सा हो जो कि मोनोजाइगोटिक जुड़वा में ही संभव है । यदि दो व्यक्तियों के बीच प्रतिरक्षी तंत्र असमान है तो ग्राही में अंग प्रत्यारोपण तभी हो सकता है जब उसके प्रतिरक्षी तंत्र को कमजोर बनाया जाए । ऐसा करने के लिए व्यक्ति को प्रतिरक्षा संदमक दवाएँ दी जाती है । जिससे प्रत्यारोपित होने वाले उत्तक को व्यक्ति का शरीर ग्रहण कर लें । साइक्लोस्पोरिन व ग्लूकोकॉर्टिकॉइड्स इस प्रकार की दवाएँ है ।

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