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class 10 NCERT Science chapter-13 text book question and answer part-2//Magnetic Effects of Electric Current

प्रश्न-12. ऐसी कुछ युक्तियों के नाम लिखिए जिनमें विद्युत मोटर का उपयोग किया जाता है ।
उत्तर- विद्युत मोटर का उपयोग विद्युत पंखों ,विद्युत मिश्रकों ,रेफ्रिजरेटरों , वाशिंग मशीनों, कम्प्यूटरों ,MP3 प्लेयरों, कूलरों, एयर-कंडीशनरों आदि में किया जाता है ।

प्रश्न-13. कोई विद्युतरोधी ताँबे के तार की कुंडली किसी गैल्वेनोमीटर से संयोजित है । क्यो होगा यदि कोई छड़ चुंबक-
i. कुंडली में धकेला जाता है ।
ii. कुंडली के भीतर से बाहर खींचा जाता है ।
iii. कुंडली के भीतर स्थिर रखा जाता है ।
उत्तर- (i) जब छड़ चुंबक को कुंडली में धकलते हैं तो कुंडली में प्रेरित धारा उत्पन्न होगी तथा धारामापी (गैल्वेनोमीटर) विक्षेप प्रदर्शित करेगा –
(a) यदि उत्तरी ध्रुव कुंडली में धकलते हैं तो कुंडली में धारा की दिशा घड़ी की सुई की विपरीत दिशा में होती है ।
(b) यदि दक्षिणी ध्रुव कुंडली में धकलते हैं तो कुंडली में धारा की दिशा घड़ी की सुई की दिशा में होती है ।
(ii) इस स्थिति में प्रेरित धारा उत्पन्न होने से धारामापी में विक्षेप होगा एवं विपेक्ष की दिशा पहले से विपरीत होगी ।
(iii) इस स्थिति में कुंडली में कोई प्रेरित धारा उत्पन्न नहीं होगी और न ही धारामापी में कोई विक्षेप आएगा ।

प्रश्न-14. दो वृताकार कुंडली A तथा B एक-दूसरे के निकट स्थित हैं । यदि कुंडली A में विद्युत धारा में कोई परिवर्तन करें तो क्या कुंडली B में कोई विद्युत धारा प्रेरित होगी । कारण लिखिए ।
उत्तर- हाँ , प्रेरित धारा उत्पन्न होगी । जब कुण्डली A में धारा परिवर्तित की जाती है तब इसके परितः परिवर्तित चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है । इस क्षेत्र की बल रेखाएँ कुण्डली B से गुजरते समय बल रेखाओं की संख्या में परिवर्तन होने के कारण कुण्डली B में प्रेरित धारा उत्पन्न हो जाती है ।

प्रश्न-15. निम्नलिखित की दिशा को निर्धारित करने वाला नियम लिखिए –
i. किसी विद्युत धारावाही सीधे चालक के चारों ओर उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र
ii. किसी चुंबकीय क्षेत्र में, क्षेत्र के लंबवत् स्थित, विद्युत धारावाही सीधे चालक पर आरोपित बल
iii. किसी चुंबकीय क्षेत्र में किसी कुंडली के घूर्णन करने पर उस कुंडली में उत्पन्न प्रेरित विद्युत धारा ।
उत्तर- (i) किसी धारावाही चालक के चारों ओर चुंबकीय क्षेत्र की दिशा मैक्सवेल के दक्षिण-हस्त नियम से ज्ञात कर सकते हैं ।
मैक्सवेल का दक्षिण-हस्त नियम – यदि हम अपने दाहिने हाथ में विद्युत धारावाही चालक को इस प्रकार से पकड़े हुए हैं कि आपका अंगुठा विद्युत धारा की दिशा की ओर संकेत करता हो, तो आपकी अंगुलियाँ चालक के चारों चुंबकीय क्षेत्र की रेखाओं की दिशा में लिपटी होंगी । इसे दक्षिण-हस्त (दायाँ हाथ) अंगुष्ठ नियम कहते हैं ।
(ii) चुंबकीय क्षेत्र में धारावाही चालक पर आरोपित बल की दिशा फ्लेमिंग के वामहस्त नियम से ज्ञात की जा सकती है ।
इस नियम के अनुसार – बाएँ हाथ की तर्जनी, मध्यमा व अंगुठे को इस प्रकार फेलाते हैं कि तीनों परस्पर लंबवत रहे । यदि तर्जनी चुंबकीय क्षेत्र की दिशा ,मध्यमा चालक में प्रवाहित धारा की दिशा को प्रदर्शित करे तो अंगुठा चालक की गति की दिशा अथवा चालक पर आरोपित बल की दिशा की ओर संकेत करेगा ।
(iii) चुंबकीय क्षेत्र में गतिशील चालक में उत्पन्न प्रेरित धारा की दिशा ज्ञात करने के लिए फ्लेमिंग के दाहिने हस्त नियम का उपयोग किया जाता है ।
इस नियम के अनुसार – दाएँ हाथ की तर्जनी, मध्यमा व अंगुठे को इस प्रकार फेलाते हैं कि तीनों परस्पर लंबवत रहे । यदि तर्जनी चुंबकीय क्षेत्र की दिशा एवं अंगुठा चालक चालक में गति की दिशा को दर्शाता है तो मध्यमा अंगुली चालक में प्रेरित धारा की दिशा बताएगी ।

प्रश्न-16. नामांकित आरेख खींचकर किसी विद्युत जनित्र का मूल सिद्धांत तथा कार्यविधि स्पष्ट कीजिए ।
               अथवा
प्रत्यावर्ती विद्युत जनित्र किस सिद्धांत पर कार्य करता है ,लिखिए एवं प्रत्यावर्ती धारा जनित्र की बनावट एवं क्रियाविधि को चित्र की सहायता से समझाइए ।
              अथवा
विद्युत जनित्र का नामांकित चित्र बनाइए ।

उत्तर- विद्युत जनित्र अथवा प्रत्यावर्ती धारा डायनेमो – इसमें यांत्रिक ऊर्जा का उपयोग चुंबकीय क्षेत्र में रखे किसी चालक को घूर्णी गति प्रदान करने में किया जाता है, जिसके फलस्वरूप विद्युत धारा उत्पन्न होती है ।
सिद्धांत – विद्युत जनित्र, विद्युत चुंबकीय प्रेरण के सिद्धांत पर कार्य करता है । जब किसी शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्र में किसी कुंडली को घुमाया जाता है, तो उसमें होकर गुजरने वाले चुंबकीय फ्लक्स में लगातार परिवर्तन होता रहता है । इसके कारण कुण्डली में एक विद्युत वाहक बल तथा विद्युत धारा प्रेरित हो जाती है । यही विद्युत जनित्र का सिद्धांत है ।
बनावट – विद्युत जनित्र के निम्न भाग होते हैं –
(i) क्षेत्र चुंबक – यह एक शक्तिशाली विद्युत चुंबक होता है ,जिसकी कुण्डली में दिष्ट धारा प्रवाहित करके इसको चुंबक बनाया जाता है ।
(ii) आर्मेचर – यह एक आयताकार कुण्डली होती है जिसे कच्चे लोहे के क्रोड पर पृथक्कृत ताँबे के तार को लपेटकर बनाया जाता है । चित्र में इसे ABCD से दिखाया गया है । इस कुण्डली को ध्रुवों N व S के बीच रखा जाता है ।
(iii) सर्पी वलय – कुण्डली के तार के दोनों सिरे धातु के दो वलयों R1 तथा R2 से संयोजित होते हैं एवं आर्मेचर के साथ-साथ घूमते हैं । इनको सर्पी वलय (Slip Rings) कहते हैं ।
(iv) ब्रश – सर्पी वलय दो कार्बन की पत्तियों को स्पर्श करते रहते हैं , जिन्हें ब्रश कहते हैं । चित्र में इन्हें B1 व B2 से दिखाया गया है । ये ब्रश स्थिर रहते हैं तथा इनको क्रमशः वलयों R1 तथा R2 पर दबाकर रखा जाता है । दोनों ब्रशों के बाहरी सिरे ,बाहरी परिपथ में विद्युत धारा के प्रवाह को दर्शाने के लिए गैल्वेनोमीटर से संयोजित होते हैं ।

कार्यविधि – चित्रानुसार विद्युत जनित्र में एक आयताकार कुंडली ABCD होती है, जिसे स्थायी चुंबक के दो ध्रुवों के बीच रखा जाता है । इस कुंडली के दोनों सिरे वलय R1 व R2 से संयोजित होते है । दोनों वलय धुरी के साथ संयोजित होती है । वलय R1 व R2 क्रमशः दो स्थिर चालक ब्रशों B1 व B2 से संपर्कित रहती है और दोनों ब्रशों को गैल्वेनोमीटर से संपर्कित कर दिया जाता है ।
जब धुरी को बाहरी यांत्रिक कार्य की सहायता से घुमाया जाता है तो कुंडली की AB भुजा ऊपर की ओर के व CD भुजा नीचे की ओर के चुंबकीय क्षेत्र को काटती हुई गति करती है । फ्लेमिंग के दक्षिण- हस्त नियम की सहायता से दोनों भुजाओं में धारा की दिशा ज्ञात की जा सकती है । अतः धारा ABCD दिशा में प्रवाहित होगी ।
अर्धघूर्णन के पश्चात AB भुजा नीचे की ओर तथा CD भुजा ऊपर की ओर गति करेगी, जिससे कुंडली में प्रवाहित होने वाली धारा की दिशा परिवर्तित होकर DCBA के अनुदिश हो जाती है ।
अतः इस प्रकार प्रत्येक आधे घूर्णन के पश्चात विद्युत धारा की दिशा क्रमिक(लगातार) बदलती रहती है । और यह धारा गैल्वेनोमीटर में विक्षेप उत्पन्न करती है ।
यदि कुंडली में फेरों की संख्या बढ़ा दी जाए है तो शक्तिशाली विद्युत धारा उत्पन्न की जा सकती है ।
ऐसी विद्युत धारा जो अपनी दिशा समय के साथ परिवर्तन कर लेती है ,उसे प्रत्यावर्ती धारा (ac) कहते है । जो युक्ति इस धारा को उत्पन्न करती है उसे प्रत्यावर्ती जनित्र( ac जनित्र) कहते है ।
ब्रशों का कार्य- विद्युत जनित्र में ताँबे की दो पत्तियाँ B1 तथा B2 सर्पी वलयों (R1 व R2 ) से जुड़ी रहती हैं ,इन्हें ब्रश कहते हैं । ये घूमने वाली कुण्डली में प्रत्येक आधे चक्कर के बाद बाह्य परिपथ में धारा की दिशा बदल देते हैं ।

प्रश्न-17. किसी विद्युत परिपथ में लघुपथन कब होता है ।
उत्तर- जब विद्युन्मय तार तथा उदासीन तार परस्पर सम्पर्क में आते हैं तो परिपथ लघुपथित हो जाता है । इस स्थिति में परिपथ का प्रतिरोध अचानक शून्य हो जाता है तथा धारा का मान बहुत अधिक बढ़ जाता है ।

प्रश्न-18. भूसंपर्क तार का क्या कार्य है । धातु के आवरण वाले विद्युत साधित्रों को भूसंपर्कित करना क्यों आवश्यक है ।
उत्तर- भूसंपर्क तार – यह काले रंग के विद्युतरोधी आवरण से ढके रहने वाला एक सुरक्षा तार होता है ,जो घर के निकट भूमि के भीतर बहुत गहराई पर स्थित धातु की प्लेट से संयोजित होता है । यह तार विद्युत धारा के लिए अल्प प्रतिरोध का चालन पथ प्रस्तुत करता है । इससे साधित्र के धात्विक आवरण में विद्युत धारा का कोई क्षरण होने पर उस साधित्र (उपकरण) का विभव भूमि के विभव के बराबर हो जाएगा । फलस्वरूप इस साधित्र को उपयोग करने वाला व्यक्ति तीव्र विद्युत आघात से सुरक्षित बचा रहता है ।
इस तार का उपयोग विशेषकर विद्युत इस्तरी, टोस्टर ,मेज का पंखा, रेफ्रिजरेटरों आदि धातु के आवरण वाले विद्युत साधित्रों (उपकरणों) में सुरक्षा के उपाय के रूप में किया जाता है ।
धातु के आवरण वाले विद्युत साधित्रों को भू-संपर्कित करना आवश्यक होता है । इससे साधित्रों तथा उनका प्रयोग करने वालों की सुरक्षा हो जाती है । धातु के आवरणों से संयोजित भू-संपर्क तार विद्युत धारा के लिए अल्प प्रतिरोध का चालन पथ प्रस्तुत करता है । धात्विक साधित्रों का भूमि से संपर्क हो जाने के कारण क्षरण के समय धारा उन साधिरों का उपयोग करने वालों के शरीर से नहीं गुजरती है, जिससे वे गंभीर झटके से बच जाते है ।

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