क्लास-10 अध्याय-14 ऊर्जा के स्रोत #class 10 ncert Science chapter-14 part-2
⦁ जल विद्युत संयंत्र –
जल विद्युत संयंत्रों में संचित जल की स्थितिज ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में रूपांतरित किया जाता है । चूँकि ऐसे जल प्रपातों की संख्या बहुत कम है ,जिनका उपयोग स्थितिज ऊर्जा के स्रोत के रूप में किया जा सके । अतः जल विद्युत संयंत्रों को बांधों से संबंधित किया गया है । भारत में हमारी ऊर्जा की मांग के चौथाई भाग की पूर्ति जल विद्युत संयंत्रों के द्वारा की जाती है । विद्युत उत्पन्न करने के लिए नदियों के बहाव को रोककर बड़े जलाशयों में जल एकत्रित करने के लिए ऊँचे-ऊँचे बांध बनाए जाते है । इन जलाशय में जल संचित होता रहता है जिसके फलस्वरूप इनमें भरे जल का तल ऊँचा हो जाता है । और बांध के कपाट खोल दिए जाते है जिससे यह जल टरबाइनों के ब्ले़डों पर गिरता है जिससे टरबाइन के ब्लेड घूर्णन गति करते है । और जनित्र द्वारा विद्युत उत्पादन होता है ।
⦁ बायोगैस – इसे जैव गैस भी कहते है । यह अनेक गैसों का मिश्रण होती है जिसका मुख्य घटक मेथेन (CH4 ) होती है । चूँकि इस गैस को बनाने में उपयोग होने वाला आरंभिक पदार्थ मुख्यतः गोबर होता है ,इसलिए इसे गैस को गोबर गैस भी कहते है ।
बायोगैस का निर्माण – गोबर ,फसलों के कटने के पश्चात् बचे अपशिष्ट , सब्जियों के अपशिष्ट ,विभिन्न मृत पादप व वाहित मल आदि जब ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में अपघटित होते है , तब गोबर गैस का निर्माण होता है ।
⦁ बायोगैस संयंत्र –
इसे गैस को एक संयंत्र में उत्पन्न किया जाता ,जिसे बायोगैस संयंत्र कहते है । इस संयंत्र में ईंटों से बनी गुंबद जैसी संरचना होती है । जैव गैस बनाने के लिए मिश्रण टंकी में गोबर तथा जल का एक गाढ़ा घोल ,जिसे कर्दम (slurry) कहते है ,बनााया जाता है । जहाँ से इसे संपाचित्र(digester) में डाल देते है । संपाचित्र चारों ओर से बंद एक कक्ष होता है ,जिसमें ऑक्सीजन नहीं होती है । अवायुवीय सूक्ष्मजीव जिन्हें जीवित रहने के लिए ऑक्सीजन की आवश्यकता नहीं होती है ,गोबर के जटिल यौगिकों का अपघटन कर देते है । अपघटन प्रक्रम पूरा होने पर मेथेन(CH4) ,कार्बनडाइ ऑक्साइड (CO2 ) , हाइड्रोजन ( H2) तथा हाइड्रोजन सल्फाइड(H2S) जैसी गैसे उत्पन्न होने में कुछ दिन लगते है । इन गैसों के मिश्रण को ही जैव गैस कहते है । जिसे संपाचित्र के ऊपरी बनी गैस टंकी में संचित किया जाता है । जैव गैस को गैस टंकी से उपयोग के लिए पाइपों द्वारा बाहर निकाल लिया जाता है ।
जैव गैस संयंत्र में शेष बची स्लरी को समय-समय पर संपाचित्र से बाहर निकालते है । इस स्लरी में नाइट्रोजन तथा फॉस्फोरस प्रचुर मात्रा में होते है । अतः यह एक उत्तम खाद के रूप में काम आती है ।
इस प्रकार जैव अपशिष्टों व वाहित मल के उपयोग द्वारा जैव गैस निर्मित करने से हमारे कई उद्देश्यों की पूर्ति हो जाती है ।
⦁ बायोगैस संयंत्र से लाभ (बायगैस के लाभ) –
1. बायोगैस का प्रयोग भोजन पकाने में व पानी को गर्म करने में किया जाता है ।
2. बायोगैस को जलाने पर धुँआ उत्पन्न नहीं होता है अतः इससे प्रदूषण नहीं होता है ।
3. यह जलने के बाद कोई भी अपशिष्ट पदार्थ शेष नहीं छोड़ती है ।
4. इसकी तापन क्षमता उच्च होती है । इसका प्रयोग प्रकाश स्रोत के रूप में किया जाता है ।
5. जैव मात्रा ऊर्जा का नवीकरणीय स्रोत है ।
6. बायोगैस संयंत्र में बची स्लरी उत्तम खाद के रूप में काम आती है । इस स्लरी में नाइट्रोजन व फॉस्फोरस प्रचुर मात्रा में होते है ।
7. बायोगैस ऊर्जा का अच्छा एवं सस्ता स्रोत है । इसमें 75% तक मेथेन गैस होती है ।
8. बायोगैस संयंत्र से जैव अपघट्य अपशिष्टों का निपटान किया जा सकता है ।
⦁ पवन ऊर्जा – पवन में निहित ऊर्जा को पवन ऊर्जा कहते है । इसका उपयोग पवन चक्कियों द्वारा यांत्रिक कार्यों को करने में किया जाता है ।
⦁ पवन चक्की – वह युक्ति (या मशीन) जिसकी सहायता से पवन ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है ,उसे पवन चक्की कहते है ।
पवन चक्की की रचना –
पवन चक्की की संरचना वस्तुतः किसी ऐसे विशाल विद्युत पंखे के समान होती है जिसे किसी दृढ़ आधार पर कुछ ऊँचाई पर खड़ा कर दिया जाता है ।
पवन चक्कियों के उपयोग –
1. पनन चक्की की पंखुड़ियो की घूर्णी गति का उपयोग कुँओं से जल खींचने में होता है ।
2. झील व नदियों में नाव को चलाने में ।
3. पवन चक्कियों से गेहूँ ,मक्का आदि पीसने में ।
4. आजकल पवन चक्की का उपयोग विद्युत उत्पन्न करने में भी किया जा रहा है ।
पवन चक्कीयों से विद्युत उत्पन्न करना – किसी विशाल क्षेत्र में बहुत सी पवन चक्कियाँ लगाई जाती है , इस क्षेत्र को पवन ऊर्जा फॉर्म कहते है । ये क्षेत्र उन स्थानों पर स्थापित किए जाते है जहाँ वर्ष के अधिकांश दिनों में तीव्र पवन चलती है । टरबाइन की आवश्यक चाल को बनाए रखने के लिए पवन की चाल 15 km/h से अधिक होनी चाहिए । जब पवन चक्की चलती है तो पवन चक्की की पंखुड़ियाँ घुमती है और जिससे टरबाईन के ब्लेड्स घूर्णन गति करते है ,जिससे विद्युत जनित्र द्वारा विद्युत का उत्पादन होता है ।
पवन-चक्की पर्यावरणीय हितैषी – पवन चक्कियाँ पर्यावरणीय हितैषी होती है क्योंकि इनसे पर्यावरण प्रदूषण नहीं होता है और पवन ऊर्जा नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत है । इनसे किसी प्रकार के अपशिष्ट पदार्थ उत्पन्न नहीं होते है ।
पवन चक्की के उपयोग की सीमाएँ –
1. पवन ऊर्जा फॉर्म केवल उन्हीं स्थानों पर स्थापित किए जा सकते है जहाँ वर्ष के अधिकांश दिनों में तीव्र पवन चलती हो ।
2. टरबाइन की आवश्यक चाल को बनाए रखने के पवन की चाल 15 km/h से अधिक होनी चाहिए अन्यथा विद्युत का उत्पादन नहीं होगा ।
3. पवन चक्कीयों के दृढ़ आधार तथा पंखुड़ियाँ वायुमंडल में खुले होने के कारण अंधड़ ,चक्रवात,धूप ,वर्षा आदि प्राकृतिक थपेड़ो को सहन करते है अतः उनके लिए उच्च स्तर के रख-रखाव की आवश्यकता होती है ।
डेनमार्क को ‘पवनों का देश’ कहते है । देश की 25 प्रतिशत से भी अधिक विद्युत की आपूर्ति पवन चक्कियों के विशाल नेटवर्क द्वारा विद्युत उत्पन्न करके की जाती है । तमिलनाडू में कन्याकुमारी के समीप भारत का विशालत्तम पवन ऊर्जा फॉर्म स्थापित किया गया है । यह 380 MW विद्युत उत्पन्न करता है ।
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