CBSE/NCERT Class 11th Biology chapter-1-The Living World in Hindi part-1
अध्याय-11
जीव जगत
⦁ एरनस्ट मेयर को 20 वीं सदी का डार्विन कहा जाता है ।
⦁ जीवों के अभिलक्षण-
1. भार में वृद्धि होना – जीवों में कोशिका विभाजन(अथवा समसूत्री विभाजन) द्वारा कोशिकाओं की संख्या बढ़ती है ,जिससे भार में वृद्धि होती है । लेकिन भार में वृद्धि होना जीवों का सुस्पष्ट(विशिष्ट) अभिलक्षण नहीं है । क्योंकि निर्जीव जैसे पर्वत ,ग्लेशियर, रेत के टीले आदि के भार में वृद्धि होती है जो कि बाहरी सतह पर होती है ।
2. संख्या में वृद्धि होना- जीवों में कोशिका विभाजन( अथवा समसूत्री विभाजन) द्वारा कोशिकाओं की संख्या में वृद्धि होती है, जिससे जीव के भार में भी वृद्धि होती है । जीव जनन करके भी अपनी संख्या में वृद्धि करते है । अतः हम कह सकते है कि भार तथा संख्या में वृद्धि होना ,वृद्धि के द्वियुग्मी अभिलक्षण है । इसलिए संख्या में वृद्धि होना जीवों का सुस्पष्ट अभिलक्षण नहीं है ।
3. जनन- जनन का अर्थ है अपनी संतति उत्पन्न करना । विभिन्न जीव लैंगिक व अलैंगिक जनन द्वारा अपनी संतति उत्पन्न करते है । वृद्धि के संदर्भ में इस तथ्य की व्याख्या हो जाती है । जनन भी जीवों का सुस्पष्ट(विशिष्ट) अभिलक्षण नहीं है । क्योोंकि कई जीव जैसे खच्चर(म्यूल), बंध्य कामगार मधुमक्खी, अनुर्वर मानव युगल आदि जनन नहीं करते है । हालंकि निर्जीवों में जनन नहीं होता है ।
4. उपापचयन(Metabolism)- जीवों में जीवन यापन के लिए होने वाली रासायनिक प्रतिक्रियाओं को उपापचयन कहते है । उदा. श्वसन , प्रोटीन संश्लेषण आदि ।
यह जीवों का सुस्पष्ट(विशिष्ट) अभिलक्षण है जो केवल जीवों में ही पाया जाता है ।
5. कोशिका संगठन- सभी जीवों में एक निश्चित प्रकार का कोशिका संगठन पाया जाता है । यह भी जीवों का सुस्पष्ट( विशिष्ट) अभिलक्षण है ।
6. चेतना- प्रकृति में उपस्थित जीव (पेड़-पौधे अथवा जंतु) प्रकाश ,ताप, पानी , अन्य जीवों, प्रदूषकों आदि के प्रति संवेदनशील होते है, इसे ही चेतना कहते है । मानव ही एक ऐसा जीव है जो स्वयं से भी अवगत है अर्थात् स्वचेतन है । चेतना सभी जीवो में पाई जाती है । अतः यह जीवों का सुस्पष्ट ( विशिष्ट) अभिलक्षण है ।
⦁ उपापचय, कोशिका संगठन व चेतना जीवों के सुस्पष्ट(विशिष्ट) अभिलक्षण(गुण) हैं ।
⦁ जीव जगत में विविधता अथवा जैविक विविधता अथवा जैव विविधता – पृथ्वी पर जीवों के मध्य पाई जाने वाली विभिन्नता को ही जैव विविधता कहते है । अब तक ज्ञात स्पीशीज की संख्या 1.7 मिलियन से लेकर 1.8 मिलियन है । ( 1 मिलियन = 10 लाख )
⦁ नाम पद्धति (Nomenclature) – विज्ञान की वह शाखा जो जीवों को सुस्पष्ट और सही नाम देती है ताकि उन्हे आसानी से पहचाना जा सके तथा दूसरे जीवों से विभेदित किया जा सके, नाम पद्धति कहलाती है । पौधों के लिए वैज्ञानिक नाम का आधार ICBN(International Code of Botanical Nomainclature) है । प्राणियों (जंतुओं) के लिए वैज्ञानिक नाम का आधार ICZN (International Code of Zological Nomainclature) है ।
द्विपदनाम पद्धति (Binomial nomenclature) – जीवों के नामकरण की वह प्रणाली जिसमें प्रत्येक नाम के दो घटक होते है – वंशनाम तथा जाति संकेत पद होते है ,उसे द्विपदनाम पद्धति कहते है । इसे कैरोलस लीनियस ने दिया था ।
लीनियस ने अपनी पुस्तक स्पीशीज प्लान्टेरम में पौधों की 5900 जातियों और सिस्टेमा नेचुरी में जंतुओं की 4326 जातियों का वर्णन किया है ।
द्विपदनाम पद्धति के नियम निम्नलिखित है-
1. जैविक नाम प्रायः लैटिन भाषा में होते है और तिरछे अक्षरों में लिखे जाते है । इनका उद्भव चाहे कहीं से भी हुआ हो ,इन्हें लैटिनीकरण अथवा लैटिन भाषा का व्युत्पन्न समझा जाता है । (लैटिन एक मृत है जो दुनिया में नहीं बोली जाती है ।)
2. जैविक नाम में पहला शब्द वंशनाम होता है जबकी दूसरा जाति संकेत पद होता है ।
3. जैविक नाम को जब हाथ से लिखते है तब दोनों शब्दों को अलग-2 करके रेखांकित अथवा छपाई में तिरछा लिखना चाहिए । यह रेखांकन उनके लैटिन उद्भव को दिखाता है ।
4. पहला अक्षर जो वंश नाम को बताता है ,बड़े अक्षर में होना चाहिए जबकी जाति संकेत पद में छोटा अक्षर होना चाहिए ।
उदाहरण-
आम – Mangifera indica (छपाई में तिरछा लिखते है ।) अथवा Mangifera indica ( हाथ लिखते समय सीधा और रेखांकित करके लिखते है । )
मानव – Homo sapiens अथवा Homo sapiens
5. जाति संकेत पद के बाद अर्थात जैविक नाम के अंत में लेखक का नाम ळिखते है । और इसे संक्षेप में लिखते हैं ।
उदाहारण- Mangifera indica lin. (अर्थात् आम का वैज्ञानिक नाम कैरोलस लिनियस ने दिया )