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Structure and function of Bacteria #जीवाणु की संरचना व कार्यप्रणाली

जीवाणु की संरचना व कार्यप्रणाली 

जीवाणु – सभी जीवाणु मोनेरा जगत के अन्तर्गत आते है । जीवाणु सूक्ष्म जीवों में सबसे अधिक संख्या में होते है ।

जीवाणु एक कोशिकीय जीव होते है । ये आकृति में गोलाकार ,छड़ाकार, कोमाकार और सर्पिलाकार होते है । ये अकेन्द्रित, कोशिका भित्तियुक्त , एक कोशिकीय सरल जीव है जो सर्वत्र पाए जाते है । ये गर्म पानी के झरनों , मरूस्थल , बर्फ में , गहरे समुद्र में , इत्यादि जगहों पर पाए जाते है । ये पेड़-पौधों व जीव जन्तुओं में भी देखे जा सकते है ।
जीवाणु की इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शीय संरचना निम्न प्रकार की होती है व इसमें निम्न संरचनाऐं दिखाई देती है –


1. कैप्सूल- कुछ में यह ढ़ीली आच्छद होती है जिसे अवपंक पर्त (slime layer) कहते है । कुछ में यह मोटी व कठोर आवरण के रूप में हो सकती है , जो संपुटिका ( कैप्सूल ) कहलाती है ।
2. कोशिका भित्ति ( cell wall ) – यह कोशिका के आकार को निर्धारित करती है । यह सशक्त संरचनात्मक भूमिका प्रदान करती है जो जीवाणु को फटने व निपातित होने से बचाती है । ग्राम पॉजिटिव जीवाणु में कोशिका भित्ति सरल एंव मोटी होती है जबकि ग्राम नेगेटिव में यह जटिल एवं पतली होती है ।
3. जीवद्रव्य झिल्लिका ( plasma membrane) – यह प्रकृति में अर्द्धपारगम्यहोती है । और इसके द्वारा कोशिका बाह्य वातावरण से संपर्क बनाए रखने में सक्षम होती है । संरचना में यह यूकेरियोट्स जैसी होती है ।
4. मीजोसोम – जीवद्रव्य झिल्ली के कोशिका में फैलाव से बनी संरचना को मीजोसोम कहते है । यह फैलाव पुट्टिका ,नलिका एंव पट्लिका के रूप में होते है । यह कोशिका भित्ति निर्माण , D.N.A. प्रतिकृति व इसके संतति कोशिका में वितरण को सहायता देता है । यह श्वसन (मुख्य कार्य ) , स्त्रावी प्रक्रिया , एंजाइम मात्रा को बढ़ाना आदि में सहायता प्रदान करता है । मीजोसोम को माइट्रोकॉन्ड्रिया के समवृति संरचना माना जाता है ।
5. राइबोसोम – यह 70 S प्रकार का होता है । यह दो उपइकाईयों ( 50 S व 30 S ) से मिलकर बना होता है । यह अपने ऊपर प्रोटीन निर्माण का कार्य करता है ।
6. पॉलीसोम – बहुत से राइबोसोम एक संदेशवाहक RNA से संबंध होकर एक श्रंखला बनाते है ,जिसे बहुराइबोसोम ( पॉलीसोम अथवा बहुसूत्र ) कहते है । बहुसूत्र का राइबोसोम संदेशवाहक RNA से संबंध होकर प्रोटीन निर्माण में भाग लेता है ।
7. कोशिकाद्रव्य (साइटोप्लाज्म ) – साइटोप्लाज्म तरल मैट्रिक्स के रूप में होता है । इसमें स्पष्ट विभेदित केंद्रक नहीं पाया जाता है । आनुवांशिक पदार्थ मुख्य रूप से नग्न व केंद्रक झिल्ली द्वारा परिबद्ध नहीं होता है ।
8. प्लाज्मिड – जिनोमिक D.N.A. के अतिरिक्त जीवाणु में सूक्ष्म D.N.A वृत जिनोमिक D.N.A के बाहर पाए जाते है । इन्हें प्लाज्मिड कहते है । ये जीवाणुओं में विशिष्ट समलक्षणों को बताते है । ये प्रतिजैविक के प्रतिरोधी होते है ।
9. रोम व झालर – ये जीवाणु की सतह पर पाए जाते है । ये गति में सहायक नहीं होते है । झालर लघुशूक जैसे तंतु है , जो कोशिका के बाहर प्रवर्धित होते है । ये चट्टाने व पोषक उत्तकों से चिपकने में सहायता करते है ।
10. कशाभिका – यह गति में सहायक होती है । यह तीन भागों में बटी होती है – तंतु , अंकुश , आधारीय शरीर । तंतु कशाभिका का सबसे बड़ा भाग है ।
11. अंतर्विष्ट पिण्ड ( Inculusion bodies ) – बचे हुए पदार्थ अंतर्विष्ट पिण्ड के रूप में संचित हो जाते है । ये झिल्ली द्वारा घिरे नहीं होते है व स्वतंत्र रूप से पाए जाते है । उदाहरण – फॉस्फेट कणिकाएँ , साइनोफाइसियन कणिकाएँ , ग्लाइकोजन कणिकाएँ ।
गैस रसधानी नील हरित , बैंगनी व हरे प्रकाश संश्लेषी जीवाणुओं में मिलती है ।
12. रोम (Pili) – यह कशाभिका की तरह जीवाणुओं की सतह पर पाई जाने वाली संरचना है । यह गति में सहायता नहीं करती है । यह लंबी नलिकाकार संरचना है । जो विशेष प्रोटीन ( Pilin ) की बनी होती है ।
13. न्यूक्लियोइड( केन्द्रकाभ ) – प्रोकेरियोट में कोई स्पष्ट विभेदित केन्द्रक नहीं पाया जाता है । इसमें केन्द्रक झिल्ली व केन्द्रिका का अभाव होता है । अतः आनुवांशिक पदार्थ कोशिकाद्रव्य में बिखरा रहता है । जीवाणु में गुणसूत्रों का अभाव होता है और इनके स्थान पर प्राक्गुणसूत्र ( प्रोक्रोमोसोम ) पाया जाता है । यहाँ हिस्टोन प्रोटीन का अभाव होता है । अतः जीवाणु का DNA नग्न प्रकृति का होता है । जीवाणु के मुख्य DNA को जीनोफोर (जीनधर) कहते है ।

अधिकांश जीवाणु में अम्लीय पदार्थ होते है ,जो सम्पूर्ण कोशिका में बिखरे रहते है । अतः अभिरंजन हेतु क्षारीय रंग जैसे मिथाइलीन ब्लू व क्रिस्टल वॉयलेट का उपयोग करते है , जो कोशिका को समान रूप से अभिरंजित कर देता है ।

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