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परिस्थितिकी (Ecology) सामान्य अध्ययन : GK Science in HINDI

पारिस्थितिकी (Ecology)

⦁ पारिस्थितिकी – जीव विज्ञान की वह शाखा जिसके अन्तर्गत जीवधारियों और उनके वातावरण के पारस्परिक संबंधो का अध्ययन किया जाता है , उसे पारिस्थितिकी (ecology) कहते हैं ।

⦁ जैविक समुदाय – एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र या वास-स्थान में निवास करने वाली विभिन्न समष्टियों (Population) को जैविक समुदाय (Biotic community) कहते हैं ।

⦁ पारितंत्र या पारिस्थितिक-तंत्र (Ecosystem) – रचना एवं कार्य की दृष्टि से विभिन्न जीवों और वातावरण की मिली-जुली इकाई को पारिस्थितिक तंत्र कहते हैं । सर्वाधिक स्थायी पारिस्थितिक तंत्र महासागर है ।

अथवा

किसी क्षेत्र विशेष के पादप, जंतु एंव पर्यावरणीय कारक संयुक्त रूप से पारितंत्र बनाते है । अतः एक पारितंत्र में सभी जैव व अजैविक घटक होते है ।
उदाहरण – वन , तालाब, झील आदि प्राकृतिक पारितंत्र है ।
बगीचा तथा खेत मानव निर्मित पारितंत्र है ।

⦁ पारितंत्र या पारिस्थितिक तंत्र (ecological system or Ecosystem) शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम टेन्सले नामक वैज्ञानिक ने किया था ।

⦁ संरचनात्मक दृष्टि से प्रत्येक पारिस्थितिक तंत्र दो घटकों का बना होता है – अ) जैविक घटक , ब) अजैविक घटक

अ) जैविक घटक (Biotic components) – किसी पारितंत्र में जैविक घटकों के अंतर्गत पौधे, जन्तु तथा सूक्ष्मजीवी आते है । इसे तीन भागों में विभक्त किया गया है ।
1. उत्पादक
2. उपभोक्ता
3. अपघटक
1. उदपादक या स्वपोषी (Producers or Autotrophs) – पारिस्थितिक तंत्र में उपस्थित सभी सजीव हरे पौधे व नील-हरित शैवाल जिनमें प्रकाश संश्लेषण की क्षमता होती है , उत्पादक कहलाते है ।

अथवा

वे घटक जो अपना भोजन स्वयं बनाते हैं , उत्पादक कहलाते हैं । जैसे हरे पौधे ।

2. उपभोक्ता या विषमपोषी (Consumers or Heterotrophs) – वे घटक जो उत्पादक द्वारा बनाये गये भोज्य-पदार्थों का उपभोग करते हैं , उपभोक्ता कहलाते हैं । उपभोक्ता तीन प्रकार के होते हैं –
i) प्राथमिक उपभोक्ता (Primary consumers) – इसमें वे जीव आते हैं, जो हरे पौधों या उनके किसी भाग को खाते हैं । जैसे – गाय , भैंस, बकरी आदि ।

ii) द्वितीयक उपभोक्ता (Secondary consumers) – इसके अन्तर्गत वे जीव आते हैं , जो प्राथमिक उपभोक्ताओं को अपने भोजन के रूप में प्रयुक्त करते हैं । जैसे – लोमड़ी, भेड़िया, मोर आदि ।

iii) तृतीयक उपभोक्ता (Tertiary consumers) – इसके अन्तर्गत वे जीव आते हैं , जो द्वितीयक उपभोक्ताओं को खाते हैं । जैसे – बाघ, शेर, चीता आदि ।

नोट – खाद्य श्रंखला में मानव प्राथमिक एवं द्वितीयक उपभोक्ता हैं ।

3. अपघटक जीव या सूक्ष्म उपभोक्ता (Decomposers or microconsumers) – इस वर्ग में मुख्यतः कवक एवं जीवाणु आते हैं । ये मृत जीवों अथवा सड़े-गले पदार्थों के जटिल कार्बनिक पदार्थों को सरल अकार्बनिक पदार्थों में परिवर्तित करते है ।

अथवा

इस वर्ग में मुख्यतः कवक एवं जीवाणु आते हैं । ये मृत उत्पादक एवं उपभोक्ताओं का अपघटन कर उन्हें भौतिक तत्वों में परिवर्तित कर देते हैं ।

ब) अजैविक घटक (Abiotic components) – अजैविक घटक किसी पारितंत्र के पर्यावरण में निर्जीव भौतिक व रासायनिक कारक होते हैं । जैसे जल , प्रकाश, ताप , वायु, आर्द्रता, मृदा एवं खनिज तत्व ।

⦁ एक मनुष्य के जीवन को पूर्ण रूप से धारणीय करने के लिए आवश्यक न्यूनतम भूमि को पारिस्थितिकीय पदछाप कहते हैं

⦁ सर्वाधिक जैव विविधता उष्णकटिबंधीय वर्षा वन में पायी जाती है ।

जैव भू-रासायनिक चक्र – पारिस्थितिक तंत्र में तत्वों के चक्रण को जैव भू-रासायनिक चक्र कहते हैं ।

नोट- पारिस्थितिक विज्ञान केन्द्र बेंगलुरू में है ।

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