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Nephron Function and Structure class 10 Science #वृक्काणु की संरचना तथा क्रियाविधि

वृक्काणु की संरचना तथा क्रियाविधि

नेफ्रोन की रचना (structure of Nephron) – प्रत्येक वृक्क में लगभग दस लाख अतिसूक्ष्म नलिकाएँ होती है ,जिन्हें वृक्क नलिकाएँ अथवा नेफ्रोन कहते है । नेफ्रोन को वृक्क की संरचनात्मक व क्रियात्मक इकाई कहते है । नेफ्रोन का प्रारंभिक भाग एक प्याले के समान होता है जिसे बोमेन सम्पुट (Bowman Capsule) कहते है । बोमेन सम्पुट के प्यालेनुमा खाँचे में रक्त की नलियों का गुच्छा होता है जिसे ग्लोमेरूलस (Glomerulus) कहते है । ग्लोमरूलस व बोमेन सम्पुट को मिलाकर मैलपीगी कोश (Malpighian Capsule) कहते है ।

नेफ्रोन का शेष भाग नलिका के रूप में होता है । यह नलिका तीन भागों में विभेदित होती है ,जिन्हें क्रमशः समीपस्थ कुण्डलित नलिका (Proximal convoluted duct), हेनले का लूप (Henley’s loop) एवं दूरस्थ कुण्डलित नलिका (Distal convoluted duct) कहते है । दूरस्थ कुण्डलित नलिका अन्त में संग्रह नलिका या वाहिनी में खुलती है । एक ओर की संग्राहक या संग्रह वाहिनियाँ मूत्र वाहिनी (Ureter) में खुलती है । वस्तुतः संग्रह वाहिनियाँ नेफ्रोन का भाग नहीं होती है ।

नेफ्रोन की क्रियाविधि (कार्य) – नेफ्रोन का मुख्य कार्य मूत्र निर्माण करना है । मूत्र निर्माण की क्रिया को तीन पदों में बांटा जा सकता है –
i. छानना या परानिस्यंदन (Ultrafiltration)
ii. चयनात्मक पुनः अवशोषण (Selective reabsorption)
iii. स्त्रवण (Secretion)

i. छानना या परानिस्यंदन (Ultrafiltration) – ग्लोमेरूलस में प्रवेश करने वाली अभिवाही धमनिका , उससे बाहर निकलने वाली अपवाही धमनिका से अधिक चौड़ी होती है । इसलिए जितना रूधिर ग्लोमेरूलस में प्रवेश करता है उतना रूधिर बाहर नहीं निकल पाता है । इसलिए कोशिका गुच्छ में रूधिर का दबाव बढ़ जाता है । इस दाब के कारण प्रोटीन के अलावा रूधिर प्लाज्मा में घुले सभी पदार्थ छनकर बोमेन संपुट में पहुँच जाते है । संपुट में पहुँचने वाला यह द्रव नेफ्रिक फिल्ट्रेट या वृक्क निस्यंद कहलाता है । रूधिर में घुले सभी लाभदायक एवं हानिकारक पदार्थ इस द्रव में होते है ,इसलिए इसे प्रोटीन रहित छना हुआ प्लाज्मा भी कहते है ।

ii. चयनात्मक पुनः अवशोषण – नेफ्रिक फिल्ट्रेट द्रव बोमेन संपुट में से होकर वृक्क नलिका के अग्र भाग में पहुँचता है । इस भाग में ग्लूकोज, विटामिन ,हार्मोन तथा अमोनिया आदि को रूधिर में पुनः अवशोषित कर लिया जाता है । ये अवशोषित पदार्थ नलिका के चारों ओर फैली कोशिकाओं के रूधिर में पहुँचते है । इनके अवशोषण से नेफ्रिक फिल्ट्रेट में पानी की सांद्रता अधिक हो जाती है । अब जल भी परासरण विधि द्वारा रूधिर में पहुँच जाता है ।

iii. स्त्रवण – जब रूधिर वृक्क नलिका पर फैले कोशिका जाल से गुजरता है ,तब उसके प्लाज्मा में बचे हुए उत्सर्जी पदार्थ पुनः नेफ्रिक फिल्ट्रेट में डाल दिए जाते है । इस अवशेष द्रव में केवल अपशिष्ट पदार्थ बचते है ,जो मूत्र कहलाता है । यह मूत्र ,मूत्राशय में संग्रहित होता है । और आवश्यकता पड़ने पर मूत्राशय की पेशियों के संकुचन से मूत्र मार्ग द्वारा शरीर से बाहर निकल जाता है ।

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