Hindi science

class 10 NCERT Science chapter-9 text book question and answer part-2//Heredity and Evolution

प्रश्न-8. विकासीय संबंध स्थापित करने में जीवाश्म का क्या महत्व है ।
                        अथवा
जैव विकास में जीवाश्मों के महत्व को समझाइए ।
उत्तर- विकासीय संबंध स्थापित करने में जीवाश्म का महत्व –
i. जीवाश्म से यह सिद्ध होता है कि प्राचीनकाल से ही जीव विकास हो रहा है । अभी तक केवल घोड़े, हाथी तथा मनुष्य के विकास की पूर्ण श्रंखला प्राप्त हुई है ।
ii. जीवाश्मों की उम्र भी ज्ञात की जाती है जिससे उस समय का ज्ञान हो पाता है जब वे सक्रिय थे ।
iii. इनके चिन्हों अथवा जीवाश्म के आधार पर पूर्ण प्राणी का चित्र बनाकर कल्पना की जा सकती है ।
iv. आर्किओप्टेरिस के जीवाश्म लगभग 15 करोड़ वर्ष पुरानी जुरैसिक चट्टानों से मिले हैं । यह सरीसृपों तथा पक्षियों के बीच की योजक कड़ी है । इसमें सरीसृपों की भाँति लम्बी पूँछ ,चोंच में दाँत तथा अग्रपादों की अंगुलियों पंजे थे फिर भी यह पक्षी ही था क्योंकि उसके अग्रपाद उड़ने के लिए विकसित पंखों में रूपांतरित हो चुके थे । यह स्पष्ट करता है कि पक्षियों का उद्भव सरीसृप से हुआ अर्थात् जीवों का विकास एक निश्चित क्रम में होता है ।

प्रश्न-9. किन प्रमाणों के आधार पर हम कह सकते हैं कि जीवन की उत्पत्ति अजैविक पदार्थों से हुई ।
उत्तर- एक ब्रिटिश वैज्ञानिक जे.बी.एस. हाल्डेन सबसे पहली बार सुझाव दिया था कि जीवों की उत्पत्ति उन अजैविक पदार्थों से हुई होगी ,जो पृथ्वी की उत्पत्ति के समय बने थे ।
सन् 1953 में स्टेनल एल. मिलर और हेराल्ड सी. डरे ऐसे कृत्रिम वातावरण का निर्माण किया था ,जो संभवतः प्राथमिक/प्राचीन वातावरण के समान था । इसमें अमोनिया, मीथेन तथा हाइड्रोजन सल्फाइड के अणु थे परन्तु ऑक्सीज नहीं थी । एक पात्र में जल भी था । इसमें 100 0C से कुछ कम ताप पर रखा गया । गैसों के इस मिश्रण में कृत्रिम रूप से समय-समय पर चिंगारियाँ उत्पन्न की गईं, जैसे कि आकाश में बिजली उत्पन्न होती है ।
एक सप्ताह बाद मीथेन से 15 % कार्बन सरल कार्बनिक यौगिकों में बदल जाता है । इनमें एमीनों अम्ल भी संश्लेषित हुए जो प्रोटीन के अणुओं का निर्माण करते हैं । इसी आधार पर हम कह सकते हैं कि जीवन की उत्पत्ति अजैविक पदार्थों से हुई है ।

प्रश्न-10. अलैगिंक जनन की अपेक्षा लैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न विभिन्नताएँ अधिक स्थायी होती है ,व्याख्या कीजिए । यह लैंगिक प्रजनन करने वाले जीवों के विकास को किस प्रकार प्रभावित करता है ।
उत्तर- अलैगिंक जनन की अपेक्षा लैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न विभिन्नताएँ अधिक स्थायी होती है । अलैंगिक जनन एक ही जीव से होने के कारण केवल उसी के गुण उसकी संतति में जा पाते हैं और वे बिना परिवर्तन के पीढ़ी दर पीढ़ी समान ही रहते हैं । परन्तु लैगिंक जनन नर और मादा के युग्मकों के संयोग से होता है, जिनमें भिन्न-भिन्न जीन होने के कारण संकरण के समय विभिन्नता वाली संतान उत्पन्न हो सकती है । लैंगिक जनन में गुणसूत्रों में ‘क्रॉसिंग ओवर’ होता है ,जिससे विभिन्नताएँ प्रकट होती है ।
ये वंशानुगत विभिन्नताएँ जीव की उत्तरजीविता को बढ़ाती हैं । उदाहरण स्वरूप सभी मानव युगों पहले अफ्रीका में उत्पन्न हुए थे, पर जब उनमें से अनेक अफ्रीका से बाहर चले गए और धीरे-धीरे पूरे संसार में फैल गए तो लैंगिक जनन से उत्पन्न विभिन्नताओं के कारण उनकी त्वचा का रंग, कद, आकार आदि में परिवर्तन आ गया ।

प्रश्न-11. संतति में नर एवं मादा जनकों द्वारा आनुवांशिक योगदान में बराबर की भागीदारी किस प्रकार सुनिश्चित की जाती है ।
उत्तर- सामान्यतः विकसित जीवधारियों की कोशिकाओं में विभिन्न प्रकार के गुणसूत्रों के दो जोड़े होते हैं ,जिन्हें 2n से प्रदर्शित करते हैं और ऐसी कोशिकाएँ द्विगुणित कहलाती हैं । इन गुणसूत्रों में ही आनुवांशिक पदार्थ स्थित होता है । जब अर्धसूत्री विभाजन जननांगों की जनन कोशिकाओं में होता है (वृषण -नर, अण्डाशय-मादा) तब ये मातृ कोशिकाएँ विभाजित होकर युग्मकों का निर्माण करती हैं । जिनमें अगुणित n गुणसूत्र होते हैं । लैगिंक जनन के दौरान नर एवं मादा युग्मक का निषेचन होता है तो आधे गुणसूत्र माता (मादा) से एवं आधे गुणसूत्र पिता (नर) से आते हैं । इस प्रकार प्राप्त युग्मनज द्विगुणित होता है । इस युग्मनज से बनने वाली संतति में नर एवं मादा जनकों की आनुवांशिक योगदान में बराबर की भागीदारी होती है ।

प्रश्न-12. केवल वे विभिन्नताएँ जो किसी एकल जीव (व्यष्टि) के लिए उपयोगी होती हैं, समष्टि में अपना अस्तित्व बनाए रखती हैं । क्या आप इस कथन से सहमत हैं । क्यों एवं क्यों नहीं ।
उत्तर- हाँ हम इस कथन से सहमत हैं ,क्योंकि जो विभिन्नताएँ एकल जीव (व्यष्टि) के लिए उपयोगी हैं, वे वर्तमान पर्याावरण के अनुकूल हैं, तो प्राकृतिक चयन द्वारा वे अपने अस्तित्व को बनाए रखेंगी । ये विभिन्नताएँ समय के साथ समष्टि की मुख्य विशेषता के रूप में स्थापित हो जाती हैं । जीवधारी इन विभिन्नताओं के कारण स्वयं को वातावरण से अनुकूलित किए रहते हैं और अपनी संतति को निरन्तर सृष्टि में बनाए रखते हैं ।

 

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