क्लास-10 अध्याय-9 आनुवांशिकता एंव जैव विकास #class 10 ncert science chapter-9 part-1
⦁ आनुवांशिकता- जनक जीवों से संतति में लक्षणों के संचरण को आनुवांशिकता (Heredity) कहते है ।
⦁ आनुवांशिक लक्षण- जनक जीवों से संतति में संचरित होने वाले लक्षणों को आनुवांशिक लक्षण कहते है ।
⦁ आनुवांशिकी- विज्ञान की वह शाखा जिसके अन्तर्गत आनुवांशिकता के नियमों व आनुवांशिकता को नियंत्रित करने वाले कारकों का अध्ययन किया जाता है , उसे आनुवांशिकी (Genetics) कहते है ।
⦁ आनुवांशिकी का जनक ग्रेगर जॉन मेण्डल को कहा जाता है ।
जन्म- 22 जुलाई 1822
स्थान- ऑस्ट्रिया
कार्य – उद्यान मटर(Pisum setivum) के पौधों पर
⦁ विपर्यासी लक्षण(Contrasting character)- ऐसे लक्षण जिनमें भौतिक रूप से आसानी भेद किया जा सके, उन्हें विपर्यासी लक्षण कहते है ।
उदा. मटर का लंबा व बौना पौधा
⦁ मेंडल ने मटर में सात जोड़ी विपर्यासी लक्षण चुने
⦁ संकरण – जब दो विपर्यासी लक्षणों वाले पौधों को क्रॉस कराया जाता है तो उससे प्रात संतति पोधों को संकर (Hybrid) कहते है तथा इस क्रिया को संकरण (Hybridization) कहते है ।
⦁ कारक- मेंडल के अनुसार सजीवों का प्रत्येक लक्षण कारकों द्वारा नियंत्रित होता है । ये कारक जीवों का प्रत्येक कोशिका में जोड़ों या युग्म में उपस्थित होते है । मेंडलीय कारक आधुनिक आनुवांशिकी के अनुसार जीन कहलाते है जो DNA के बने होते है तथा लक्षण की अभिव्यक्ति व वंशागति के लिए उत्तरदायी होते है । उदा. TT , Tt ,tt
⦁ युग्मविकल्पी या एलीलोमोर्फ- एक गुण को प्रकट करने वाले जीन के दो विपर्यासी स्वरूपों को युग्मविकल्पी कहते है । उदा. Tt
⦁ समयुग्मजी(Homozygous)- यदि किसी लक्षण के दोनों जीन्स समरूप हो तो उसे समयुग्मजी कहते है । उदा. TT , tt
⦁ विषमयुग्मजी(Hetrozygous)- यदि किसी लक्षण के दोनों जीन्स असमान हो अर्थात विपर्यासी हो तो उसे विषमयुग्मजी कहते है । उदा. Tt
⦁ फीनोटाइप- किसी लक्षण का बाहरी स्वरूप जो हमें दिखाई देता है, उसे फीनोटाइप कहते है । उदा. लंबा ,बौना
⦁ जीनोटाइप किसी व्यष्टि(जीव) के लक्षण का आनुवांशिक संगठन जीनोटाइप कहलाता है । उदा. TT , Tt ,tt
⦁ मेंडल का एकल संकरण प्रयोग- जब पौधों में एक जोड़ी विपर्यासी लक्षण को ध्यान में रखकर उनके मध्य क्रॉस करवाया जाता है तो उसे एकल संकरण प्रयोग कहते है । उदा. शुद्ध लंबा व बौने पौधे के मध्य संकरण
पुनेट चेकर बॉर्ड द्वारा
मेंडल ने जब मटर के शुद्ध लंबे (TT) व शुद्ध बौने (tt) पौधों के मध्य संकरण कराया तो प्रथम पीढ़ी में सभी पौधे लंबे प्राप्त हुए । और जब मेंडल ने प्रथम पीढ़ी से प्राप्त पौधों में स्वपरागण होने दिया तो प्राप्त द्वितीय पीढ़ी में 75% पौधे लंबे व 25% पौधे बौने प्राप्त हुए । इससे उसे पता चला कि लक्षण प्रभावी व अप्रभावी होते है । प्रभावी कारक T , अप्रभावी कारक t को प्रकट नहीं होने देता ।
⦁ मेंडल का द्विसंकरण प्रयोग- मेंडल ने दो जोड़ी विपर्यासी लक्षणों वाले भिन्न पौधों के मध्य संकरण कराया , इसे ही द्विसंकरण प्रयोग कहते है ।
उदा. गोल व पीले बीज(RRYY) और झुर्रीदार व हरे(rryy) बीज वाले पौधे के मध्य संकरण
मेंडल ने जब गोल व पीले बीज (RRYY) और झुर्रीदार व हरे बीज (rryy) वाले पौधों के मध्य संकरण कराया तो प्रथम पीढ़ी में सभी पौधे गोल व पीले बीज (RrYy) वाले प्राप्त हुए । जब प्रथम पीढ़ी से प्राप्त पौधों के मध्य स्वपरागण होने दिया तो प्राप्त द्वितीय पीढ़ी में चार प्रकार के संयोजन प्राप्त हुए जिसमें फीनोटाइपिक अनुपात निम्न है –
अतः इससे निष्कर्ष निकला कि द्वितीय पीढ़ी में लक्षणों का स्वतंत्र रूप से पृथक्करण होने के कारण प्रत्येक जोड़ी के विपर्यासी लक्षण दूसरी जोड़ी के विपर्यासी लक्षणों से स्वतंत्र व्यवहार करते है । इस कारण इसे स्वतंत्र अपव्यूहन का नियम भी कहते है । इससे पता चला कि विभिन्न लक्षण स्वतंत्र रूप से वंशानुगत होते है ।
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