क्लास-10 अध्याय-8 जीव जनन कैसे करते हैं #class 10 ncert science chapter-8 part-3
⦁ मानव जनन तंत्र-
1. नर जनन तंत्र-
नर में जनन कोशिका (अथवा शुक्राणु ) उत्पादित करने वाले अंग एंव शुक्राणुओं को निषेचन के स्थान तक पहुँचाने वाले अंग संयुक्त रूप से नर जनन तंत्र का निर्माण करते है । यह जनन तंत्र शरीर के श्रोणी क्षेत्र ( पेल्विस रीजन ) में अवस्थित होता है ।
नर जनन तंत्र के भाग-
A. एक जोड़ा वृषण- शरीर में वृषण उदर गुहा के बाहर एक थैली/धानी में स्थित होते है ,जिसे वृषणकोश(स्क्रोटम) कहते है । वृषणकोश वृषणों के तापमान को (शरीर के तापमान से 2-2.5 डिग्री सेंटीग्रेड) कम रखने में सहायक होता है जो शुक्राणुजनन के लिए आवश्यक होता है । वयस्कों में प्रत्येक वृषण अंडाकार होता है ,जिसकी लंबाई 4 से 5 सेंमी. और चौड़ाई 2 से 3 सेंमी. होती है । वृषण सघन आवरण से ढ़का रहता है । प्रत्येक वृषण में लगभग 250 कक्ष होते है जिन्हें वृषण पालिका (टेस्टिकुलर लोब्युल्स) कहते है । प्रत्येक वृषण पालिका के अन्दर एक से लेकर तीन अति कुंडलित शुक्रजनन नलिकाऐं पाई जाती है जिनमें शुक्राणुओं का उत्पादन होता है । वृषणों के द्वारा स्त्रावित हार्मोन टेस्टोस्टेरॉन शुकाणु उत्पादन के नियंत्रण के अतिरिक्त, लड़कों में यौवनावस्था के लक्षणों का भी नियंत्रण करता है ।
B. सहायक नलिकाऐं –
I. वृषण जालिकाऐं(रेटे टेस्टिस)- ये शुक्राणुओं को शुक्रवाहिकओं में भेजती है ।
II. शुक्रवाहिकऐं(वास इफेरेंशिया)- ये शुक्राणुओं को अधिवृषण में भेजती है ।
III. अधिवृषण(ऐपिडिडाइमस)- ये शुक्राणुओं को शुक्रवाहक में भेजते है ।
IV. शुक्रवाहक(वास डेफेरेंस)- ये शुक्राणुओं को शुक्राशय में भेजते है ।
C. बाह्य जननेंद्रिय- शिश्न (यह शुक्राणुओं को शरीर से बाहर अथवा योनी मार्ग में भेजता है ।)
D. सहायक ग्रथियाँ-
I. एक जोड़ा शुक्राशय
II. एक पुरस्थ(प्रोस्टेट ग्रंथि)
III. एक जोड़ा बल्बोयूरेथ्रल ग्रंथियाँ
सहायक ग्रंथियों के स्त्राव शुक्राणुओं को तरल माध्यम प्रदान करते है , जिससे वीर्य का निर्माण होता है ।
2. मादा जनन तंत्र-
मादा जनन कोशिका (अथवा अण्डाणु) को उत्पादित करने वाले अंग व अण्डाणु को निषेचन के स्थान तक पहुँचाने वाले अंग संयुक्त रूप से मादा जनन तंत्र का निर्माण करते है । यह भी श्रोणी क्षेत्र में अवस्थित होता है ।
मादा जनन तंत्र के भाग-
A. एक जोड़ा अण्डाशय(ओवेरी)- मादा जनन कोशिका अथवा अण्ड कोशिका का निर्माण अण्डाशय में होता है ।अण्डाशय कुछ हार्मोन भी स्त्रावित करते है । लड़की के जन्म के समय ही अण्डाशय में हजारों अपरिपक्व अंड होते है । यौवनारंभ में इनमें इनमें से कुछ परिपक्व होने लगते है । दो में से एक अण्डाशय द्वारा प्रत्येक माह एक अंड परिपक्व होता है । परिपक्व अंड अंडाशय से महीन अंडवाहिका अथवा फेलोपियन ट्यूब में आता है । अण्डाशय के द्वारा स्त्रावित हार्मोन एस्ट्रोजन ,यौवनावस्था के लक्षणों का नियंत्रण करता है ।
B. सहायक नलिकाऐं –
I. अंडवाहिनियाँ(फेलोपियन नलिका)- ये संख्या में दो होती है । अंडाशय से अंड फेलोपियन नलिका में आता है जहां उसका निषेचन होता है ।
II. गर्भाशय( यूटेरस)- इसका आकार उल्टी रखी नाशपति के जैसा होता है । दोनों अंडवाहिकाऐं संयुक्त होकर एक लचीली संरचना का निर्माण करती है , जिसे गर्भाशय कहते है । इसकी दीवार में निषेचित अंड आरोपित होता है ।
III. योनि(वेजाइना)- अंड निषेचित नहीं होने पर योनि मार्ग के द्वारा शरीर से बाहर त्याग दिया जाता है ।
C. बाह्य जननेद्रिय-
I. जघन शैल(मोंस प्यूबिस)
II. बृहद भगोष्ठ(लेबिया मैजोरा)
III. लघु भगोष्ठ(लेबिया माइनोरा)
IV. योनिच्छद(हाइमेन)
V. भगशेफ(क्लाइटोरिस)
⦁ मानव में निषेचन या लैंगिक जनन-
जब नर व मादा मैथुन करते है तो नर के शुक्राणु शिश्न से होते हुए मादा की योनि में त्याग दिए जाते है और यहाँ शुक्राणु योग्यतार्जन प्राप्त करते है ।
इसके पश्चात शुक्राणु फेलोपियन नलिका तक पहुँचते है । और इसी समय अंड फेलोपियन नलिका में पहुँचते है ,ताकि शुक्राणु व अंड(अंडाणु) का संलयन हो सके । इस दौरान शुक्राणु, अंड को निषेचित करता है । इसे ही मानव में लैगिंक जनन कहते है ।
निषेचित अंड युग्मनज में परिवर्तित होता है । यह युग्मनज गर्भाशय की दीवार में आरोपित हो जाता है और उसके साथ संबंध स्थापित करता है व यहाँ युग्मनज भ्रूण में परिवर्धित तथा विकसित होता है ।
गर्भाशय में परिवर्धित हो रहे भ्रूण को पोषण एक विशेष संरचना द्वारा प्राप्त होता है , जिसे प्लेसेंटा कहते है । इसकी संरचना तश्तरीनुमा होती है जो गर्भाशय की भित्ति में धँसी होती है । इसकी सहायता से भ्रूण को ग्लूकोज , ऑक्सीजन आदि पोषक पदार्थ मिलते है और इसी की सहायता से अपशिष्ट पदार्थ माँ के रूधिर में डाल दिए जाते है ।
लगभग 9 माह बाद प्रसव होता है और शिशु का जन्म होता है ।
⦁ यदि अंडकोशिका का निषेचन नहीं हो तो क्या होगा अथवा ऋतुस्राव क्यों होता है ?
यदि अंडकोशिका का निषेचन नहीं होता है तो यह लगभग एक दिन(24 घंटे) तक जीवित रहती है । गर्भाशय की अंतः भित्ति मांसल होती है जो निषेचित अंड के पोषण में सहायक होती है ।अतः निषेचन नहीं होने पर अंतः भित्ति की परत टूट जाती है और योनि मार्ग से रूधिर एंव म्यूकस के रूप में निष्कासित होती है । इस चक्र में लगभग एक मास का समय तगता है तथा इसे ही ऋतुस्राव या रजोधर्म कहते है ।
⦁ जनन स्वास्थ्य-
जनन स्वास्थ्य का तात्पर्य जनन के सभी पहलुओं जैसे शारीरिक, भावनात्मक,व्यावहारिक तथा सामाजिक स्वास्थ्य से है ।
⦁ यौन संचारित रोग-
कोई भी रोग या संक्रमण जो मैथुन द्वारा संचारित होते है उन्हें सामूहिक तौर पर यौन संचारित रोग(S.T.D.) कहते है ।
उदाहरण- जीवाणु जनित यौन संचारित रोग- गोनेरिया, सिफलिस
वाइरस जनित यौन संचारित रोग- AIDS (एक्वायर्ड इम्यून डेफिशिएन्सी सिंड्रोम) जो HIV वायरस(ह्यूमन इम्यून डेफिशिएन्सी वायरस) द्वारा फैलता है ।
⦁ गर्भधारण को रोकने की विधियाँ-
कंडोम- महिला व पुरूष के लिए
लूप व कॉपर-टी- महिला के लिए
बंध्यकरण(Castration)- यह मानव में निम्न प्रकार का होता है –
1. शुक्रवाहक उच्छेदन(वैसेक्टोमी)- पुरूषों में शुक्रवाहक का उच्छेदन करके अथवा कट लगाकर, कटे हुए सिरों को फोल्ड करके रबर बैंड से बाँध दिया जाता है ,इसे ही शुक्रवाहक उच्छेदन(वैसेक्टोमी) कहते है ।
2. नलिका उच्छेदन (ट्यूबेक्टोमी)- महिलाओं में फेलोपियन नलिका का उच्छेदन करके अथवा कट लगाकर, कटे हुए सिरों को फोल्ड करके रबर बैंड से बाँध दिया जाता है ,इसे ही नलिका उच्छेदन (ट्यूबेक्टोमी) कहते है ।
Iska part 1 aur part 2 Kahan hai
view in archieve in the bottom
Sir part 1 or 2 h
go down and watch in archieve
same my question where is part 1 and part 2….?
Nice posts!
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