क्लास-10 अध्याय-3 धातु एवं अधातु #class 10 ncert science chapter-3 part-3
⦁ आयनिक यौगिक-
धातु से अधातु में इलेक्ट्रॉन के स्थानान्तरण से बने यौगिकों को आयनिक या वैद्युत संयोजक यौगिक कहते है ।
आयनिक यौगिकों के गुणधर्म-
1. भौतिक प्रकृति – धन व ऋण आयन के बीच मजबूत आकर्षण बल के कारण आयनिक यौगिक ठोस व थोड़े कठोर होते है । ये ये यौगिक समान्यतः भंगुर होते है तथा दाब डालने पर टुकड़ों में टूट जाते है ।
2. गलनांक व क्वथनांक- आयनिक यौगिकों का गलनांक व क्वथनांक बहुत अधिक होता है क्योंकि मजबूत अन्तर-आयनिक आकर्षण को तोड़ने के लिए अधिक ऊर्जा की आवश्यकता पड़ती है ।
3. घुलनशीलता- आयनिक यौगिक समान्यतः जल में घुलनशील व केरोसीन, पेट्रॉल आदि जैसे विलायकों में अविलेय होते है ।
4. विद्युत चालकता- किसी विलयन से विद्युत के चालन के लिए आवेशित कणों अथवा आयनों की गतिशीलता आवशयक होती है । आयनिक यौगिकों के जलीय विलयन विद्युत का चालन करते है क्योंकि आयनिक यौगिक जल में अपघटित हो जाते है और आयन मुक्त करते है । ये मुक्त आयन धारा प्रवाहित करने पर विपरित आवेशित इलेक्ट्रॉड की तरफ गमन करते है ।
⦁ धातुओं का निष्कर्षण-
सक्रियता श्रेणी के आधार पर हम धातुओं के निष्कर्षण को तीन भागों में बांट सकते है –
1. सक्रियता श्रेणी में नीचे आने वाली धातुओं का निष्कर्षण –
सक्रियता श्रेणी में नीचे आने वाली धातुएँ कम अभिक्रियाशील होती है । इन धातुओं के ऑक्साइड को केवल गर्म करने से ही प्राप्त किया जा सकता है । उदा.
2. सक्रियता श्रेणी के मध्य में स्थित धातुओं का निष्कर्षण –
सक्रियता श्रेणी के मध्य में स्थित धातुएँ जैसे आयरन, जिंक, लेड,कॉपर आदि की अभिक्रियाशीलता मध्यम होती है । प्रकृति में यह प्रायः सल्फाइड या कार्बोनेट के रूप में पायी जाती है । सल्फाइड या कार्बोनेट की तुलना में धातु को उसके ऑक्साइड से प्राप्त करना अधिक आसान होता है । इसलिए अपचयन से पहले धातु के सल्फाइड या कार्बोनेट को धातु ऑक्साइड में परिवर्तित करना आवश्यक है ।
सल्फाइड अयस्क को वायु की उपस्थिति में अधिक ताप पर गर्म करने पर यह ऑक्साइड में परिवर्तित हो जाता है ,इस प्रक्रिया को भर्जन कहते है । उदा.
कार्बोनेट अयस्क को सीमित वायु में अधिक ताप पर गर्म करने से यह ऑक्साइड में परिवर्तित हो जाता है ,इस प्रक्रिया को निस्तापन कहते है । उदा.
इसके बाद उपयुक्त अपचायक का उपयोग कर धातु ऑक्साइड से धातु को प्राप्त किया जाता है ।
3. सक्रियता श्रेणी में ऊपर स्थित धातुओं का निष्कर्षण-
सक्रियता श्रेणी में ऊपर स्थित धातुएँ अत्यंत ही क्रियाशील होती है । इन्हें कार्बन के साथ गर्म कर इनके ऑक्साइडों से प्राप्त नहीं किया जा सकता क्योंकि इनकी बंधुता कार्बन की अपेक्षा ऑक्सीजन से अधिक होती है ।
इन धातुओं को विद्युत अपघटनी अपचयन द्वारा प्राप्त किया जाता है । उदाहरण के Na, Mg एंव Ca को उनके गलित क्लोराइडों के विद्युत अपघटन से प्राप्त किया जाता है ।
कैथोड (ऋणावेशित इलेक्ट्रॉड) पर धातुएँ निक्षेपित होती है तथा एनोड (धनावेशित इलेक्ट्रॉड) पर क्लोरीन मुक्त होती है । अभिक्रिया निम्न प्रकार है –
⦁ विद्युत अपघटनी अपचयन या विद्युत अपघटनी परिष्करण विधि-
कॉपर, जिंक, टिन, निकैल, सिल्वर, गोल्ड आदि जैसी अनेक धातुओं का परिष्करण विद्युत अपघटन द्वारा किया जाता । इस प्रक्रम में , अशुद्ध धातु को एनोड तथा शुद्ध धातु को कैथोड बनाया जाता है । जिस धातु का शुद्धिकरण किया जाता है उसी धातु का लवण विलयन विद्युत अपघटय के रूप में उपयोग किया जाता है । चित्रानुसार उपकरण को व्यवस्थित कर लेते है । जब विद्युत अपघटय से धारा प्रवाहित की जाती है तब अशुद्ध धातु का एनोड अपघटित होने लगता है ,जिससे मुक्त आयन विद्युत अपघटय के माध्यम से कैथोड पर निक्षेपित होने लगते है । कुछ अविलेय अशुद्धियाँ अपघटन के दौरान एनोड के नीचे जमा हो जाती है, जिसे एनोड पंक कहते है ।
कुछ समय बाद अशुद्ध धातु एनोड पतला व शुद्ध धातु का कैथोड मोटा हो जाता है । विद्युत अपघटन की प्रक्रिया पूर्ण होने पर शुद्ध धातु का कैथोड निकाल लेते है जो कि विद्युत अपघटनी परिष्करण से प्राप्त शुद्ध धातु है ।
⦁ मिश्रातु/मिश्रधातु –
दो या दो से अधिक धातुओं के समांगी मिश्रण को मिश्रातु/मिश्रधातु कहते है । उदा.
पीतल (Zn व Cu ), काँसा (Sn व Cu )
⦁ अमलगम-
यदि मिश्रातु में कोई एक धातु पारद(Hg) है तो इसे हम अमलगम कहते है । Zn-Hg (जिंक अमलगम) ।
⦁ शुद्ध सोने को 24 कैरेट कहते है तथा यह काफी नर्म होता है ।इसलिए आभूषण बनाने के लिए यह उपयुक्त नहीं होता है । भारत में अधिकांशतः आभूषण बनाने के लिए 22 कैरेट सोने का उपयोग होता है । इसका तात्पर्य यह है कि 22 भाग शुद्ध सोने में 2 भाग ताँबा या चाँदी का मिलाया जाता है ।
बहुत अच्छा पोस्ट है सर
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