अध्याय-11 मानव नैत्र तथा रंग-बिरंगा संसार #class 10 ncert science chapter-11 part-2
⦁ प्रिज्म से प्रकाश का अपवर्तन-
चित्रानुसार ABC काँच का एक प्रिज्म है । इसके तल AB तथा AC पर प्रकाश का अपवर्तन दर्शाया गया है । माना एक प्रकाश किरण चित्रानुसार प्रिज्म के पृष्ठ AB पर कोण i (आपतन कोण) पर आपतित तथा कोण r (अपवर्तन कोण) पर अपवर्तित होती है । यह अपवर्तित किरण पुनः प्रिज्म के पृष्ठ AC पर आपतित होती है तथा कोण e ( निर्गत कोण ) पर पारगमित होती है । आपतित किरण PQ को आगे बढ़ाने पर तथा निर्गत किरण RS को पीछे बढ़ाने पर दोनों G बिन्दू पर मिलती है और इन दोनों किरणों के बीच बना कोण विचलन कोण कहलाता है । इसे से प्रदर्शित करते है ।
इस प्रकाश प्रिज्म से प्रकाश का अपवर्तन होता है ।
⦁ प्रिज्म द्वारा प्रकाश का वर्ण विक्षेपण(परिक्षेपण)-
न्यूटन के अनुसार सूर्य का प्रकाश कई रंगों के प्रकाश से मिलकर बना होता है । जब श्वेत प्रकाश की कोई बारीक किरण पुंज किसी प्रिज्म से होकर गुजारी जाती है तो प्रिज्म के दूसरी ओर रखे सफेद पर्दे पर प्रकाश की एक रंगीन पट्टी दिखाई देती है । इस रंगीन पट्टी को प्रकाश का स्पेक्ट्रम कहते है । इस स्पेक्ट्रम में ऊपरी सिरा लाल तथा निचला सिरा बैंगनी होता है और शेष रंग (नीला, आसमानी , हरा ,जामुनी, पीला) इनके बीच में अविरतता से फैले होते है ।
इस प्रकाश प्रिज्म से होकर श्वेत प्रकाश के गुजरने पर उसका अपने अवयवी रंगों में विभाजित होने की प्रकाशिक घटना को , प्रकाश का वर्ण विक्षेपण कहते है ।
⦁ श्वेत प्रकाश के स्पेक्ट्रम का पुनर्योजन-
चित्रानुसार जब दो प्रिज्मों को इस प्रकार व्यवस्थित किया जाता है कि उनके फलक समान्तर हो जाए । जब पहले प्रिज्म से श्वेत प्रकाश गुजरता है तो यह रंगीन स्पेक्ट्रम बनाता है और यदि इस स्पेक्ट्रम को उल्टे रखे प्रिज्म से गुजारते है तो पुनः श्वेत प्रकाश प्राप्त होता है ,इसे ही श्वेत प्रकाश के स्पेक्ट्रम का पुनर्योजन कहते है ।
⦁ इद्रधनुष का बनना-
इंद्रधनुष ,वर्षा के पश्चात आकाश में वर्षा की बूँदों में दिखाई देने वाला प्राकृतिक स्पेक्ट्रम है । जब प्रकाश चित्रानुसार वर्षा की बूँद में प्रवेश करता है तो यह अपवर्तित व विक्षेपित (अलग-अलग रंगों में बंटना ) होता है । अब यह वर्षा की बूँद के आन्तरिक पृष्ठ से टकराता है और इसका आन्तरिक परावर्तन होता है । अब यह वर्षा की बूँद से बाहर निकलते समय पुनः अपवर्तित होता है और प्रेक्षक को इन्द्रधनुष दिखाई देता है । इन्द्र धनुष देखने के लिए पीठ को सूर्य की ओर होना चाहिए ।
⦁ तारों का टिमटिमाना-
जब तारों का प्रकाश पृथ्वी के वायुमण्डल में प्रवेश करता है तो इसका लगातार अपवर्तन होता रहता है ,क्योंकि ऊपरी वायुमण्डल से नीचे पृथवी सतह तक परतों की संघनता अथवा घनत्व बढ़ता जाता है । अतः तारे के प्रकाश का अनेक बार अपवर्तन होने के कारण वह अभिलम्ब की ओर झुकता या मुड़ता जाता है । जिससे तारे की आभासी स्थिति बनती है जो वास्तविक स्थिति से कुछ ऊँचाई पर प्रतीत होती है और क्षितिज से देखने पर तारे टिमटिमाते हुए प्रतीत होते है ।
⦁ अग्रिम सूर्योदय तथा विलंबित सूर्यास्त-
वायुमण्लीय अपवर्तन के कारण सूर्य हमें वास्तविक सूर्योदय से लगभग 2 मिनिट पूर्व दिखाई देने लगता है तथा वास्तविक सूर्यास्त के लगभग 2 मिनिट पश्चात तक दिखाई देता है । वास्तविक सूर्योदय से तात्पर्य सूर्य द्वारा वास्तव में क्षितिज को पार करना है तथा वास्तविक सूर्यास्त का तात्पर्य सूर्य का क्षितिज के नीचे जाना है । वास्तविक सूर्योदय व आभासी सूर्योदय अथवा वास्तिक सूर्यास्त व आभासी सूर्यास्त के बीच का समय अंतराल लगभग दो मिनिट होता है । इस प्रकार दिन की अवधि में 4 मिनिट की वृद्धि हो जाती है । इसी परिघटना के कारण ही सूर्योदय तथा सूर्यास्त के समय सूर्य की चक्रिका चपटी प्रतीत होती है ।
⦁ प्रकाश का प्रकीर्णन-
जब प्रकाश की किरणें किसी वस्तु से टकराकर अपनी दिशा बदल लेती है परन्तु परावर्तन के नियमों का पालन नहीं करती हैं तो इस प्रकाशिक घटना को प्रकाश का प्रकीर्णन कहते है । टिण्डल नामक वैज्ञानिक ने इसकी खोज की ,इसलिए इसे टिण्डल प्रभाव भी ककहते है ।
⦁ आकाश का रंग नीला होना –
जब सूर्य का श्वेत प्रकाश वायुमण्डल से गुजरता है तो वायु के अणु छोटी की किरणों (जैसे नीली, बैंगनी ) का प्रकीर्णन अधिक मात्रा में करते है जबकी बड़ी वाली लाल रंग की प्रकाश किरणों का प्रकीर्णन कम मात्रा में होता है । अतः प्रकीर्णन के पश्चात नीली व बैंगनी रंग की प्रकाश किरणें पृथ्वी तक अधिक मात्रा में पहुँचती है । जिसके कारण ऊपर का आकाश नीला दिखाई देता है ।
यदि पृथवी के चारों ओर वायुमण्डल नहीं होता तो प्रकीर्णन ना होने के कारण आकाश काला दिखाई देता ।
⦁ उगते व छिपते सूर्य का लाल (रक्ताभ) दिखाई देना –
सूर्योदय व सूर्यास्त के समय प्रकाश की किरणें अधिक दूरी तय करके हमारी आँख तक पहुँचती है । इन किरणों के मार्ग में धूल के कणों तथा वायु अणुओं द्वारा प्रकाश किरणों का अधिक प्रकीर्णन होता है ।
इस प्रकीर्णन के कारण नीली व बैंगनी किरणें निकल (बिखर) जाती है क्योंकि इनका प्रकीर्णन सबसे अधिक होता है । इस प्रकार हमारी आँख तक लाल किरणें ही पहुँच पाती है । फलस्वरूप सूर्य उदय व अस्त होते समय लाल दिखाई देता है ।
Nice posts!
बहुत अच्छा है।