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HIV Virus and AIDS with structure #HIV and AIDS full form

HIV Virus and AIDS

AIDS पूरा नाम “उपार्जित प्रतिरक्षा न्यूनता संलक्षण(acquired immune deficiency syndrome = एक्वायर्ड इम्यून डिफिसियेंसी सिंड्रोम)” है । यह HIV (Human immunodeficiency viruses = ह्यूमन इम्यूनों डिफिसियेंसी वायरस) के द्वारा होता है । यह वायरस रिट्रोवायरस समूह में आता है । यह एक यौन संचारित रोग है ।

HIV की खोज –  In 1983, Luc Montagnier’s team at the Pasteur Institute in Paris discovered HIV‑1

इतिहास- एड्स की खोज अमेरिका में जून 1981 में की गई, जब कैलिफोर्निया के कुछ डॉक्टर पाँच समलैंगिक प्रवृति के मनुष्यों की जाँच कर रहे थे तब उन्होने एक बहुत कम पाये जाने वाले न्यूमोनिया की खोज की, जिसे बाद में एड्स कहा गया और जो HIV विषाणु/वायरस के द्वारा होता है ।

HIV की संरचना-

यह आवरण युकत विषाणु है । ये 90 से 120 n.m. व्यास के होते है । ये गोलाकार वास्तव में बहुतलीय होते है । इन्हें इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप से देखा जा सकता है । इसके मध्य में न्यूक्लियो प्रोटीन का एक कोर होता है ,जिसमें एक स्ट्रेंड RNA तथा प्रोटीन पाया जाता है । विषाणु RNA के साथ ट्रांसक्रिप्टेज एंजाइम भी पाया जाता है । कोर एक प्रोटीन खोल केप्सिड से घिरा रहता है, यह खोल कई छोटी-2 इकाइयों का बना होता है जिन्हें केप्सोमीयर कहते है । कोर व कैप्सिड को मिलाकर न्यूक्लियो-कैप्सिड कहते है । HIV के कैप्सिड के बाहर लिपिड व प्रोटीन का बना एक आवरण पाया जाता है ।

HIV विषाणु को प्राप्त करने के स्थल-

1. रूधिर- कुछ मोनोसाइट व लिम्फोसाइट से
2. कोशिका में स्वतंत्र रूप से उपस्थित प्लाज्मा से
3.सीमन(वीर्य) व सर्वाइकल द्रव्य से
4. लार व दुग्ध से
5.आंसु से
6.त्वचा कोशिकाओं से
7.फुफ्फुस द्रव व कोशिकाओं से

एड्स का संक्रमण-

1. असुरक्षित यौन संपर्क से
2. रोगी या संवाहक व्यक्ति से रूधिराधान(Blood transfussion)
3. संक्रमित उत्तक या अंगों के दान से
4.संक्रमित माँ से उसके द्वारा पैदा किए गए शिशु को ।
5. रोगी द्वारा उपयोगित सुई का, स्वस्थ मानव द्वारा औषध या नशीली दवा का प्रेक्षेपण करने से ।
इसमें विषाणु ‘सहायक टी लिम्फोसाइट कोशिकाओं’ को समाप्त कर प्रतिरक्षा तंत्र को कमजोर या निष्क्रिय कर देता है । जिससे हमारा शरीर विभिन्न प्रकार के रोगों से ग्रसित हो जाता है ।

HIV विषाणु द्वारा स्वयं की प्रतिकृति बनाना-

एड्स के लक्षण- शरीर में HIV के प्रवेश के बाद, रोग के चिन्ह और लक्षण प्रकट होने का समय कुछ माह से लेकर 8 से 10 वर्ष तक हो सकता है । HIV के प्रवेश के समय से इसकी पुष्टी होने तक की अवधि को विन्डोपीरियड कहते हैं । इसके लक्षण
1. वजन का काफी हद तक घट जाना
2. खांसी आते रहना
3.नाड़ो में सूजन
4. एक हफ्ते से अधिक समय तक पतले दस्त होना
5. रात को पसीना आना
6. शरीर पर निशान बनना
7. चमड़ी पर गुलाबी रंग के धब्बे होना
8. मानसिक रोग और याददाश का कमजोर होना
9. शरीर में दर्द होना
10. बार-बार बुखार आना

एड्स का परीक्षण-  HIV की उपस्थिति शरीर में है या नहीं इसका पता रूधिर परीक्षण से किया जाता है । इसका एक विशेष परीक्षण होता है, जिसे “एलाइजा” (Enzyme Linked Immuno Sorbent Assay) कहते हैं । एलाइजा परीक्षण धनात्मक आने पर एक और पुष्टी परीक्षण “वेस्टनेब्लॉट” कराया जाता है ।

एड्स से बचाव-

1. जब भी इंजेक्शन लगवाने की आवश्कता हो तो डिस्पोजेबल सुई या फिर साफ निर्जमीकृत (स्टिरिलाइज्ड) सुई का प्रयोग करें ।
2. अधिकृत रक्त बैंकों से ही एड्स के लिए परीक्षित रूधिर आदान हेतु उपयोग में लाये ।
3.यौन संबंध सिर्फ एक विश्वसनीय साथी तक सीमित रखें । सुरक्षित यौन संबंध के लिए निरोध (कण्डोम) का प्रयोग करे । निरोध के प्रयोग से पर्याप्त सीमा तक एड्स से बचा जा सकता है ।
4. दूसरे मनुष्य द्वारा उपयोगित सुई से, नशीली दवाओं का सेवन न करे ।
5. एड्स से पीड़ित महिलाऐं गर्भ धारण न करे । क्योंकि उनके शिशु भी एड्स से पीड़ित हो जायोंगे ।
एड्स का उपचार- अभी तक एड्स का कोई उपचार नहीं है । यह रोग हो जाने पर सदा घातक होता है । इसकी रोकथाम के लिए कोई टीका भी उपलब्ध नहीं है ।
एड्स के उपचार के लिए हाल ही में एक दवाई की खोज हुई है जिसका नाम एजिडोथाइमिडिन (AZT) है । AZT उत्क्रमित ट्रांसक्रिप्टेज एंजाइम की क्रिया को संदमित करता है ।

एड्स इन कारणों से नहीं फैलता है-

1. HIV संक्रमित या एड्स ग्रसित व्यक्ति से हाथ मिलाने से
2. HIV संक्रमित या एड्स ग्रसित व्यक्ति के साथ खाना खाने या उसके साथ खाना बनाने से
3. HIV संक्रमित या एड्स ग्रसित व्यक्ति का तौलिया या टॉयलेट यूज करने से

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