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क्लास-10 अध्याय-13 विद्युत धारा के चुंबकीय प्रभाव #class 10 ncert science chapter-13 part-2

⦁ विद्युत चुंबक –

परिनालिका के भीतर उत्पन्न प्रबल चुंबकीय क्षेत्र का उपयोग किसी चुंबकीय पदार्थ जैसे नर्म लोहे को परिनालिका के भीतर रखकर चुंबक बनाने में किया जा सकता है । इस प्रकार बने चुंबक को विद्युत चुंबक कहते है ।

⦁ चुंबकीय क्षेत्र में किसी विद्युत धारावाही चालक पर चुंबकीय बल-

चुंबकीय क्षेत्र में किसी विद्युत धारावाही चालक पर लगने वाले चुंबकीय बल को फ्लेमिंग के वामहस्त (बायाँ हाथ ) नियम की सहायता से ज्ञात कर सकते है ।

इस नियम के अनुसार –
1. बाएँ हाथ की तर्जनी, मध्यमा व अंगुठे को इस प्रकार फेलाते हैं कि तीनों परस्पर लंबवत रहे ।
2. अंगुठा चुंबकीय बल को , तर्जनी चुंबकीय क्षेत्र व मध्यमा विद्युत धारा की दिशा को दर्शाते है ।
इस ही वाम हस्त का नियम कहते है ।

⦁ फ्लेमिंग का दक्षिण हस्त नियम –

इस नियम के अनुसार-
1.दाएँ हाथ तर्जनी, मध्यमा व अंगुठे को इस प्रकार फेलाते हैं कि तीनों परस्पर लंबवत रहे ।
2. तर्जनी चुंबकीय क्षेत्र को , मध्यमा चालक में प्रेरित विद्युत धारा तथा अंगुठा चालक की गति की दिशा को दर्शाते है ।

⦁ गैल्वेनोमीटर-

यह एक ऐसा उपकरण है जो किसी परिपथ में विद्युत धारा की उपस्थिति को संसूचित करता है ।

⦁ विद्युत मोटर-

विद्युत मोटर एक ऐसी युक्ति होती है जिसमें विद्युत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में रूपांतरण होता है ।
विद्युत मोटर का उपयोग विद्युत पंखों ,रेफ्रिजरेटरों, विद्युत मिश्रकों ,वॉशिंग मशीन, कंप्यूटरों तथा MP-3 प्लेयरों आदि में किया जाता है ।

विद्युत मोटर की कार्य प्रणाली –

विद्युत मोटर में विद्युतरोधी पदार्थ की एक आयताकार कुंडली होती है,जो चुंबकीय क्षेत्र के दो ध्रुवों के मध्य इस प्रकार व्यवस्थित होती है कि इसकी AB व CD भुजाऐं चुंबकीय क्षेत्र के लंबवत रहे । कुंडली के दोनों सिरे विभक्त वलयों के दो अर्धभागों P व Q से संयोजित होते है । इन अर्धभागों की भीतरी सतह विद्युतरोधी होती है तथा धुरी से जुड़ी होती है । P तथा Q क्रमशः स्थिर चालक ब्रशों X व Y से संपर्कित रहते है । दोनों चालक ब्रश X व Y विद्युत स्रोत( विद्युत बैट्री) से जुड़े होते है ।
जब धारा प्रवाहित होती है तो यह X से होते हुए भुजा AB में पहुँचती है ,तो इस भुजा पर नीचे की ओर बल आरोपित होता है । आरोपित बल की दिशा फ्लेमिंग के वाम हस्त नियम की सहायता से ज्ञात करते है । जब धारा भुजा CD में आती है तो धारा की दिशा बदल जाती है जिससे लगने वाले बल की दिशा परिवर्तित होकर ऊपर की ओर हो जाती है ।
इस प्रकार किसी अक्ष पर घूमने के लिए स्वतंत्र कुंडली तथा धुरी वामावर्त घूर्णन करते है । आधे घूर्णन में Q का संपर्क ब्रश X से तथा P का संपर्क ब्रश Y से हो जाता है । अतः कुंडली में विद्युत धारा उत्क्रमित होकर पथ DCBA के अनुदिश प्रवाहित होती है जिससे AB व CD भुजाओं पर लगने वाले बलों की दिशा भी उत्क्रमित हो जाती है । अतः कुंडली तथा धुरी उसी दिशा में अब आधा घूर्णन और पूरा कर लेती है । प्रत्येक आधे घूर्णन के पश्चात विद्युत धारा के उत्क्रमित होने का क्रम बार-बार चलता रहता है । जिसके फलस्वरूप कुंडली तथा धुरी का निरंतर घूर्णन होता रहता है ।

⦁ व्यवसायिक विद्युत मोटरों में निम्न परिवर्तन किये जाते है –

1. स्थायी चुंबकों के स्थान पर विद्युत चुंबक प्रयोग किये जाते है ।
2. विद्युत धारावाही कुंडली में फेरों की संख्या अधिक होती है ।
3. कुंडली नर्म लोहे क्रोड पर लपेटी जाती है ।

⦁ दिक् परिवर्तक –

वह युक्ति जो परिपथ में विद्युत धारा के प्रवाह को उत्क्रमित कर देती है , उसे दिक् परिवर्तक कहते है । जैसे विद्युत मोटर में विभक्त वलय दिक् परिवर्तक का कार्य करते है ।

⦁ आर्मेचर-

नर्म लौह क्रोड व उस पर लपेटी गई कुंडली दोनों मिलकर आर्मेचर कहलाते है ।

⦁ प्रत्यावर्ती धारा –

ऐसी विद्युत धारा जो समान काल -अंतरालों के पश्चात अपनी दिशा में परिवर्तन कर लेती है ,उसे प्रत्यावर्ती धारा (ac) कहते है । जो युक्ति इस धारा को उत्पन्न करती है उसे ac जनित्र कहते है ।

⦁ दिष्ट धारा –

ऐसी विद्युत धारा जो समय के साथ अपनी दिशा परिवर्तित नहीं करती है ,उसे दिष्ट धारा (dc) कहते है । जो युक्ति इस धारा को उत्पन्न करती है उसे dc जनित्र कहते है ।

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