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क्लास-10 अध्याय-13 विद्युत धारा के चुंबकीय प्रभाव #class 10 ncert science chapter-13 part-1

⦁ विद्युत धारा के चुंबकीय प्रभाव की खोज सन् 1820 में वैज्ञानिक हैंस क्रिश्चियन ऑर्स्टेड ने की । इन्होंने ने अकस्मात् ही देखा कि धातु के चालक से विद्युत धारा प्रवाहित कराने पर दिक्सूचक सुई विक्षेपित होती है । इन्हीं के सम्मान में चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता का मात्रक ऑर्स्टेड रखा गया ।
⦁ दिक्यूचक सूई- यह एक छोटी छड़ चुंबक के समान होती है । यह एक ऐसी युक्ति होती है जो दिशा का ज्ञान कराती है । चुंबकीय दिक्सूचक उत्तरी ध्रुव दिशा की ओर संकेत करता है । यह यंत्र क्षैतिज दिशा का ज्ञान करवाता है ।
“समान ध्रुवों में परस्पर प्रतिकर्षण और असमान ध्रुवों में परस्पर आकर्षण होता है” ,यह चुंबकीय दिक्सूचक का सिद्धांत है ।
⦁ दिक्सूचक सूई का विक्षेपित होना –
यह एक छोटी छड़ चुंबक के समान होती है । जब इसे धातु के तार में प्रवाहित विद्युत धारा के समीप लाते है तो विद्युत धारा के चुंबकीय प्रभाव के कारण दिक्सूचक सूई पर एक बलयुग्म कार्य करता है , जिसके कारण दिक्सूचक सूई में विक्षेप उत्पन्न होता है ।

⦁ चुंबक-

वह पदार्थ या वस्तु जो चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करे और अन्य चुंबक या चुंबकीय पदार्थों को अपनी ओर आकर्षित या प्रतिकर्षित करे ,उसे चुंबक कहते है ।
चुंबक के दो ध्रुव होते है –
1. उत्तर दिशा की ओर संकेत करने वाले ध्रुव को उत्तरोमुखी ध्रुव अथवा उत्तर ध्रुव (N) कहते है ।
2. दक्षिण दिशा की ओर संकेत करने वाले ध्रुव को दक्षिणोमुखी ध्रुव अथवा दक्षिण ध्रुव (S) कहते है ।
⦁ चुंबकीय क्षेत्र- किसी चुंबक के चारों ओर का वह क्षेत्र जिसमें उसके बल का संसूचन किया जाता है, उस चुंबक का चुंबकीय क्षेत्र कहलाता है ।
⦁ चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं का निरूपण-

ड्रॉइंग बोर्ड पर एक सफेद कागज लगाते है । इसके बीचोंबीच एक छड़ चुंबक को रखते है । अब लौह चूर्ण को चुंबक के चारों ओर समान रूप से छितरावक की सहायता से छितराते (बिखराते) हैं तो हम देखते हैं कि लौह चूर्ण स्वयं चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं के अनुदिश संरेखित हो जाताहै ,इसे ही चुंबकीय चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं निरूपण कहते है ।
⦁ चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं के गुण या विशेषताएं या गुणधर्म-

1. चुंबक के बाहर चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं की दिशा उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव की ओर होती है ।
2. चुंबक के भीतर चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं की दिशा दक्षिणी ध्रुव से उत्तरी ध्रुव की ओर होती है ।
3. ये सदैव बंद वक्र बनाती है अर्थात् ये वक्राकार होती है ।
4. ये परस्पर एक दूसरे को कभी नहीं काटती है ।
5. जहाँ चुंबकीय क्षेत्र रेखाएं अपेक्षाकृत अधिक निकट होती है ,वहाँ चुंबकीय क्षेत्र अधिक प्रबल होता है ।
6. जहाँ चुंबकीय क्षेत्र रेखाएं अपेक्षाकृत दूर-दूर होती है ,वहाँ चुंबकीय क्षेत्र दुर्बल होता है ।
⦁ दक्षिण-हस्त अंगुष्ठ नियम-
जब दक्षिण-हस्त का अंगुठा विद्युत धारा की दिशा में होता है तो अंगुलियाँ चालक के चारों ओर चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं की दिशा में लिपट जाती है ,इसे ही दक्षिण-हस्त अंगुष्ठ नियम कहते है ।

इस प्रकार हम दक्षिण-हस्त अंगुष्ठ नियम की सहायता से किसी धारावाही चालक में उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं की दिशा ज्ञात कर सकते है ।
⦁ किसी विद्युत धारावाही चालक के कारण चुंबकीय क्षेत्र- किसी धारावाही चालक में चुंबकीय क्षेत्र की दिशा या पैटर्न को ज्ञात किया जा सकता है । इसे हम निम्न क्रियाकलापों (प्रयोगों) की सहायता से समझ सकते है –
1. सीधे चालक से विद्युत धारा प्रवाहित होने के कारण चुंबकीय क्षेत्र-

किसी सीधे धारावाही चालक तार के कारण उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र संकेंद्र वृतों के रूप में होता है । जब चालक तार समीप वाले संकेंद्र वृत के किसी बिन्दू P पर दिक्सूचक को रखते है तो दिक्सूचक अधिक विक्षेप उत्पन्न करता है लेकिन जब दिक्सूचक को अधिक दूरी पर स्थित संकेंद्र वृत के किसी बिन्दू Q पर रखते है तो दिक्सूचक का विक्षेप घट जाता है । अतः हम कह सकते है कि चालक तार के समीप उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र प्रबल होता है व दूर जाने पर घटता जाता है क्योंकि चालक तार के समीप संकेंद्र वृत छोटे व पास-पास होते है जबकि दूर स्थित संकेंद्र वृत साइज में बड़े व दूर-दूर होते है ।
2. विद्युत धारवाही वृताकार पाश के कारण चुंबकीय क्षेत्र –

दक्षिण हस्त अंगुष्ठ नियम की सहायता से यदि दाहिने हाथ की अंगुलियाँ तार के ऊपर इस प्रकार लपेटी जाएँ कि अंगुठा तार में प्रवाहित धारा की दिशा में हो , तब अंगुलियों के मुड़ने की दिशा चुंबकीय क्षेत्र को प्रदर्शित करेगी ।
अतः वृताकार पाश के अन्दर चुंबकीय क्षेत्र मेज के तल के लम्बवत् तथा उर्ध्वाधरतः नीचे की दिशा में है जबकी पाश के बाहर चुंबकीय क्षेत्र मेज के लम्बवत् तथा उर्ध्वाधरतः ऊपर की ओर क्रियाशील होगा ।
3. परिनालिका में प्रवाहित विद्युत धारा के कारण चुंबकीय क्षेत्र –

पास-पास लिपटे विद्युतरोधी ताँबे के तार की बेलन की आकृति की अनेक फेरों वाली कुंडली को परिनालिका कहते है ।
किसी विद्युत धारावाही परिनालिका के कारण उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं का पैटर्न चित्र में दर्शाए गए पैटर्न के समान होता है । यह पैटर्न छड़ चुंबक के कारण उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं के पैटर्न के समान होता है ।
परिनालिका के भीतर चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ समांतर सरल रेखाओं की भाँती होती है । यह निर्दिष्ट करता है कि किसी परिनालिका के भीतर सभी बिन्दूओं पर चुंबकीय क्षेत्र समान होता है अर्थात् परिनालिका के भीतर एकसमान चुंबकीय क्षेत्र होता है ।

 

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